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पहाड़ी पर बनना था भवन, बालाजी स्वंयभू प्रकट हुए तो बना मंदिर, इस मंदिर में 7 साल बाद आता है चोला चढ़ाने का नंबर - HANUMAN JAYANTI 2024

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 23, 2024, 5:20 PM IST

अजमेर का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर,  OLD HANUMAN TEMPLE OF AJMER
पहाड़ी पर बनना था भवन, बालाजी स्वंयभू हुए प्रकट हुए तो बन गया मंदिर.

हनुमान जयंती विशेष : अजमेर शहर के बीच बारादरी से सटी पहाड़ी पर 300 साल पुराना हनुमान मंदिर है. यह मंदिर और पहाड़ी बजरंग गढ़ के नाम से विख्यात है. हनुमान भक्तों का मंदिर में दर्शन करने के लिए तांता लगा रहता है. लोगों की गहरी आस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि कोई श्रद्धालु आज बालाजी के चोला चढ़ाने के बुंकिंग करता है, तो उसका नंबर 7 साल बाद आएगा.

पहाड़ी पर बनना था भवन, बालाजी स्वंयभू हुए प्रकट हुए तो बन गया मंदिर.

अजमेर. भगवान श्रीराम के परम भक्त अंजनी के लाल हनुमान का आज मंगलवार को जन्मोत्सव है. देश और प्रदेश में हनुमान जन्मोत्सव बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा है. समस्त हनुमान मंदिरों में भक्तों का तांता लगा है. हनुमान जन्मोत्सव को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह है. अजमेर में बजरंग गढ़ बालाजी तीर्थ के रूप में विख्यात है. सुभाष उद्यान के पास ढाई सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित बजरंगगढ़ बालाजी का मंदिर जन आस्था का बड़ा केंद्र है. खास बात यह है कि बजरंग गढ़ की पहाड़ी और मंदिर निजी संपत्ति है. बजरंग गढ़ बालाजी मंदिर की स्थापना को लेकर भी एक रोचक कहानी है. 300 साल पहले यहां पहाड़ी पर रिहायशी घर बनाया जाना था, लेकिन यहां स्वयंभू बालाजी की प्रतिमा प्रकट हो गई, ऐसे में यहां घर की बजाय बालाजी का मंदिर बन गया. यह मंदिर कवल नैन हमीर सिंह लोढ़ा ने बनवाया था. वर्तमान में उनके वंशज रणजीत मल लोढ़ा बजरंग गढ़ बालाजी मंदिर के व्यवस्थापक हैं.

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बनान था घर, बन गया मंदिर : रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि उनके पूर्वज सेठ कवल नैन हमीर सिंह लोढ़ा पहाड़ी पर घर बनाना चाहते थे. घर बनाने के लिए काम भी शुरू किया गया. मगर पहाड़ी पर खुदाई के दौरान स्वयंभू बालाजी की प्रतिमा प्रकट हुई, ऐसे में यहां घर बनाने का इरादा उन्होंने टाल दिया. घर के लिए सेठ कवल नैन हमीर सिंह ने नजदीक पहाड़ी को खरीदा और वहां भव्य घर का निर्माण किया गया. उन्होंने जो भव्य निवास बनाया था वह वर्तमान में अजमेर का सर्किट हाउस है. उन्होंने बताया कि मराठा काल से भी पहले पहाड़ी पर बालाजी का मंदिर बनाया गया था. सन 1950 से पहले तक मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां नहीं थी. वर्तमान में मंदिर में पहुंचने के लिए 3 जगहों पर सीढ़ियां हैं. उस दौर में मंदिर में वर्षा का जल संग्रहण करने के लिए कुंड बनाया गया था. इस कुंड के अलावा और कोई पेयजल का स्त्रोत वहां नहीं था. हालांकि, अब पेयजल की व्यवस्था मंदिर पर होने के बाद कुंड को बंद कर दिया गया है.

सुबह की आरती रुकवाना पड़ गया था भारी : लोढ़ा बताते हैं कि अंग्रेज हुकूमत के समय एक अंग्रेज अधिकारी मंदिर के पास अपनी पत्नी के साथ रहने लगा था. ब्रिटिश अधिकारी ने सुबह मंदिर की पूजा-अर्चना और घंटा बजाने पर रोक लगा दी. दरअसल, अंग्रेज अधिकारी की पत्नी को मंदिर के घंटे की आवाज पसंद नही थी. मंदिर में पूजा के बाद से ही अंग्रेज अधिकारी की पत्नी की तबीयत बिगड़ने लगी. तब एक अन्य अफसर के कहने पर उसने यहां से स्थान छोड़ना ही उचित समझा. यहां से जाने के बाद ही पत्नी की हालत ठीक हुई. लोढ़ा बताते हैं कि मराठा काल के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने दूसरी पहाड़ी पर बने उनके पूर्वजों के घर को किराए पर लिया था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने घर को ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया. ब्रिटिश हुकूमत के बाद यह घर 1956 में राजस्थान सरकार को 5 लाख 50 हजार में बेच दिया. वर्तमान में वही लोढ़ा परिवार का घर आज सर्किट हाउस के रूप में है.

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बालाजी पूरी करते हैं मनोकामना : स्थानीय लोगों के लिए कई पीढ़ियों से बजरंग गढ़ बालाजी का मंदिर आस्था का केंद्र रहा है. स्थानीय लोगों के घर आने वाले मेहमान यहां दर्शन के लिए जरूर आते हैं. बताया जाता है कि बजरंग गढ़ बालाजी के दर्शन मात्र से ही कष्ट दूर हो जाते हैं. हनुमान जन्मोत्सव को लेकर भी युवाओं में काफी क्रेज दिखा. मंदिर पर चढ़ाई की वजह से बुजुर्ग यहां नहीं आ पाते हैं. विद्यार्थी और युवा मंदिर में काफी आते हैं.

आज बुंकिंग की, तो 7 साल बाद आएगा नंबर : बजरंग गढ़ बालाजी के मंदिर में हनुमान जन्मोत्सव धूम धाम से मनाया जा रहा है. सुबह सुंदरकांड का पाठ मंदिर में हुआ. दोपहर 12 बजे बजरंगगढ़ बालाजी की महाआरती हुई. वहीं, मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसादी का वितरण भी हुआ. व्यवस्थापक रणजीत मल लोढ़ा ने बताते हैं कि बजरंग गढ़ बालाजी के मंदिर में लोगों की गहरी आस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि कोई श्रद्धालु आज बालाजी के चोला चढ़ाने के बुंकिंग करता है, तो उसका नंबर 7 साल बाद आएगा. यानी इतने लोग बालाजी के चोला चढ़ाने के लिए कतार में हैं. उन्होंने बताया कि प्रत्येक बुकिंग में पारदर्शिता रहती है. कोई कितना भी वीवीआईपी, वीआईपी क्यों ना हो, उसका नंबर बालाजी के चोला चढ़ाने के लिए सूची के अनुसार ही आएगा.

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