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हिंदू धर्म में शादी से पहले यज्ञोपवीत का प्रावधान, जनेऊ धारण करने वाले नोट कर लें यह नियम - Upanayana Sanskar

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 5, 2024, 6:46 AM IST

Importance Of Janeu: हिंदू धर्म में जनेऊ का महत्व बहुत है. शादी से पहले सभी लोग इसे धारण करते हैं. हिंदू धर्म में 16 संस्कार में एक संस्कार यज्ञोपवीत भी होता है. यज्ञोपवीत के बाद जनेऊ पहनने वालों को कई तरह के नियम का पालन करना होता है. इसके प्रत्येक धागे की कुछ मान्यताएं हैं. पढ़ें पूरी खबर.

Upanayana Sanskar
Upanayana Sanskar (ETV Bharat)

पटना: हिंदू धर्म में 16 संस्कार में एक संस्कार यज्ञोपवीत है. इसका खास महत्व है. हिंदू धर्म को मानने वाले सभी लोग धर्म शास्त्रों के अनुसार अपनी मांगलिक कार्यक्रम करते हैं. सनातन धर्म में हर किसी की शादी से पहले जनेऊ किया जाता है. इसके कई धार्मिक महत्व है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि यज्ञोपवीत क्या है और यह कब करना चाहिए. इसे धारण करने पर क्या-क्या नियम का पालन करना होता है?

यज्ञोपवीत की सही उम्रः पटना के आचार्य रामशंकर दूबे ने इसके बारे में खास जानकारी दी. उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में जनेऊ को बहुत पवित्र माना गया है. किसी भी बालक का जनेऊ तभी करना चाहिए जब वह उसका पालन करने के लिए सक्षम हो. 10 साल की उम्र में जनेऊ का सही उम्र माना जाता है. बच्चा इस अवस्था में तमाम चीजों को समझता है और नियमों का पालन भी कर सकता है.

"जनेऊ धारण करने का बड़ा विशेष महत्व है. हिंदू धर्म में तीन धागे वाले जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. इसमें ब्रह्मा विष्णु महेश के प्रतीक के साथ-साथ देवऋण, पितृऋण ऋषिऋण का. इसलिए घर में जब कोई शुभ मांगलिक कार्यक्रम हो तो पूर्व में धारण किए जनेऊ को उतार कर नए जनेऊ धारण कर लेना चाहिए. बिना जनेऊ का विवाह नहीं होता है. विवाह के बाद 6 धागों वाला जनेऊ पहनने का विधान है." - रामशंकर दूबे, आचार्य

तीन धागे वाले जनेऊ का महत्वः रामशंकर दूबे ने बताया कि हिंदू धर्म में प्रत्येक हिंदुओं का कर्तव्य है कि जनेऊ धारण करें और इसका पालन करें. किसी भी बालक का जब जनेऊ होता है तो तीन धागे वाले पहनाए जाते हैं. इस तीन धागे का भी महत्व है. तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा विष्णु महेश के प्रतीक होते हैं. तीन सूत्रों वाले इस जनेऊ को गुरु दक्षिणा के बाद पहनाया जाता है. इसके लिए नियम निष्ठा के साथ अनुष्ठान किया जाता है.

जनेऊ पहनने का नियमः हिन्दू धर्म के मुताबिक जनेऊ को हमेशा बाएं कंधे से दाएं कमर की तरफ मंत्र के साथ पहना जाता है. मल मूत्र के समय में इसको दाहिने कान पर दो बार लपेटा जाता है. अगर मल मूत्र के समय में इसको कान पर नहीं चढ़ाते हैं तो यह अशुद्ध माना जाता है. ऐसे में मल मूत्र के बाद जनेऊ को तुरंत बदल लेना चाहिए. नहीं तो इसका गलत प्रभाव पड़ता है.

कैसे अशुद्ध होता है जनेऊः रामशंकर दूबे ने कहा कि जनेऊ कब-कब अशुद्ध हो जाता है इस बात को सब लोगों को जानना चाहिए. जब आप मल मूत्र के समय में जनेऊ कान पर नहीं चढ़ाते हैं तो यह अशुद्ध हो जाता है. इसके अलावे श्राद्ध कर्म करने के बाद, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण के बाद अशुद्ध हो जाता है. इसलिए इसके नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए. इसके अलावा तीन भागों में से एक धागा भी अगर टूट जाता है तो वह अशुद्ध हो जाता है. इसलिए अधिकांश लोग हर पूर्णिमा पर जनेऊ बदल लेते हैं.

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