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बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग बड़ी चुनौती, किसे मिल सकती है कितनी सीट?

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 15, 2024, 7:41 PM IST

Bihar NDA Seat Sharing: बिहार में एनडीए के समर्थन से नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं, लेकिन इंडिया गठबंधन में जिस सीट शेयरिंग को लेकर नीतीश नाराज चल रहे थे वही एनडीए में भी बड़ी चुनौती है, पेंच यहां भी फंसने के पूरे आसार हैं. क्योंकि सीट शेयरिंग को लेकर सभी दलों को संतुष्ट करना टेढ़ी खीर है.

लोकसभा में 400 और बिहार विधानसभा में 200 के पार, बिहार में सीट शेयरिंग एक बड़ी चुनौती
लोकसभा में 400 और बिहार विधानसभा में 200 के पार, बिहार में सीट शेयरिंग एक बड़ी चुनौती

बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग बड़ी चुनौती

पटना: एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में एनडीए के 400 के पार का दावा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के 40 लोकसभा सीट पर जीत के साथ आने वाले विधानसभा चुनाव में 200 के पार की बात कहने लगे हैं. एनडीए को 2010 में 200 से अधिक सीट मिली थी, 115 सीट पर जदयू को जीत मिली थी और 92 सीट बीजेपी ने जीता था.

एनडीए में सीट शेयरिंग एक बड़ी चुनौती: उस समय जदयू बिहार में अधिक सीटों पर विधानसभा का चुनाव लड़ी थी. 2019 और 2020 में जदयू और बीजेपी ने बिहार में लोकसभा और विधानसभा में बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा. अब इस बार भी नीतीश कुमार सीट बंटवारे के लिए एक तरह से प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत बयान देना शुरू कर दिए हैं. लेकिन एनडीए में अभी 5 दल हैं और राजनीतिक विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि जदयू को इस बार सीटों का नुकसान होना तय है.

"सम्मानजनक समझौता है. किसी को एतराज नहीं है. सब के सब आपसी सहमति के आधार पर सम्मानजतक समझौता हो चुका है."- हेमराज राम, जेडीयू प्रवक्ता

सभी दलों की अपने-अपने तर्क: बिहार में नीतीश कुमार एक बार फिर से एनडीए में आ गए हैं और बीजेपी के साथ सरकार बना ली है. लोकसभा चुनाव में दोनों साथ लड़ेंगे यह भी तय है. भाजपा जदयू के अलावा एनडीए में चिराग पासवान और पशुपति पारस का लोजपा गुट, जीतन मांझी का हम और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल भी शामिल है.

बड़े भाई की भूमिका में बीजेपी: कभी बिहार में नीतीश कुमार अपनी मनमानी सीटों के बंटवारे में भी करते थे, लेकिन आज परिस्थितियां बदली हुई हैं. बीजेपी आज विधानसभा में बड़े भाई की भूमिका में ही नहीं है बल्कि लोकसभा में भी है जदयू से अधिक सीट बीजेपी के पास है. हालांकि नीतीश कुमार चतुर राजनीतिज्ञ माने जाते हैं और अपनी शर्तों पर ही समझौता करते रहे हैं.

"नीतीश कुमार यदि 2010 वाली स्थिति चाहते हैं क्योंकि बयान भी दे रहे हैं विधानसभा चुनाव में 200 के पार तो अब वह स्थिति आने वाली नहीं है. एक तरह से उनके तरफ से प्रेशर पॉलिटिक्स है. जदयू को इस बार लोकसभा चुनाव में भी सीटों का नुकसान होना तय है क्योंकि एनडीए के अन्य घटक दलों के बीच भी सीट का बंटवारा करना होगा."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ

"अब तो हम लोग एनडीए में आ गए हैं. लोकसभा चुनाव में 400 के पार तो जीत होगी ही. बिहार में 40 की 40 सीट पर जीत होगी और विधानसभा चुनाव में 200 से अधिक सीट आएगी."- चेतन आनंद, बागी राजद विधायक

गया सीट पर मांझी की नजर: 40 लोकसभा सीटों में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल और जीतन राम मांझी की पार्टी हम की तरफ से भी दावेदारी हो रही है. उपेंद्र कुशवाहा खुद काराकाट से चुनाव लड़ना चाहते हैं तो वहीं जीतन मांझी अपने बेटे को गया से चुनाव लड़ाना चाहते हैं.

हाजीपुर सीट को लेकर चाचा-भतीजे में जंग: वहीं चिराग पासवान का गुट और पशुपति पारस का गुट अपनी अपनी दावेदारी कर रहा है. उसी में हाजीपुर सीट विवाद में फंस गया है. बीजेपी के लिए दोनों को खुश करना आसान नहीं होगा.

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16 सीटिंग सीट पर नीतीश की दावेदारी: वहीं नीतीश कुमार 16 सीटिंग सीट पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं, जबकि बीजेपी इस बार 20 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. ऐसे में तय है कि 2010 का फार्मूला तो बिहार में लागू इस बार नहीं होगा 2019 का भी फार्मूला लागू होगा कि नहीं इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है.

किस पार्टी को मिल सकती है कितनी सीट: एनडीए में अभी तक सीट शेयरिंग को लेकर घटक दलों से कोई बातचीत नहीं हुई है. ऐसे घटक दलों का कहना है कि सब कुछ हो गया है कहीं कोई परेशानी नहीं होगी. लेकिन जो वर्तमान स्थिति है उसमें न केवल जदयू को बल्कि लोजपा को भी कम सीट देने की तैयारी हो रही है. एनडीए में बीजेपी 20 तो जदयू 13 लोजपा गुट को 4, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी दो और एक पर जीतन मांझी की पार्टी चुनाव लड़ सकती है.

2014 में जदयू को हुआ था नुकसान: ऐसे अब तक का रिकॉर्ड रहा है कि भाजपा जदयू जब भी एक साथ रहे हैं तो एनडीए को लाभ पहुंचा है. बीजेपी बहुत ज्यादा लाभ में नहीं रही है हां जदयू और अन्य घटक दलों को जरूर इसका फायदा हुआ है. 2014 का चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. बीजेपी को उस समय लोकसभा में 22 सीट पर जीत हासिल हुई थी. लोजपा को 6 सीटों पर जीत मिली थी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को तीन सीटों पर जबकि जदयू अकेले चुनाव लड़ी थी. 38 सीटों पर चुनाव लड़ी जीत केवल दो सीटों पर मिली थी.

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लोजपा ने जदयू को पहुंचाया था नुकसान: 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू को 15.39% वोट मिला था. भाजपा जदयू सहित अपने सहयोगी दलों के साथ 35% वोट हासिल किया था जबकि महागठबंधन राजद को 23.11% कांग्रेस को 9.48 प्रतिशत और वाम दलों को मिलाकर को 33% वोट मिला था. लोजपा को 5.66% वोट मिला था. लोजपा के अलग चुनाव लड़ने के कारण जदयू को काफी नुकसान हुआ और एनडीए को 122 सीट के बहुमत के आंकड़ा से कुछ ही सीट अधिक मिल पाया. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी है और महागठबंधन सरकार बनाते-बनाते रह गयी.

2019 का वोटिंग प्रतिशत: 2019 लोकसभा चुनाव में जदयू को 22.26% भाजपा को 24.05% और लोजपा को 8.06% वोट मिला था. 39 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं राजद कांग्रेस हम और रालोसपा को 27% वोट मिला था और केवल एक सीट पर जीत मिली है. उससे पहले 2015 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को 41.84% जिसमें राजद को 18.35% जदयू को 16.83% और कांग्रेस को 6.6% वोट मिला था. एनडीए को 32% वोट मिला था. भाजपा को 24.42%, लोजपा को 4.83%, हम को 2.27%, रालोसपा को 2.56% वोट मिला था.

बिहार में जदयू लंबे समय तक बड़े भाई की भूमिका में रहा है ,लेकिन अब बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में दिखने लगी है. ऐसे तो 2014 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ था बीजेपी को 22 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी और फिर 2019 में जब समझौता हुआ जदयू के साथ तो पांच सीट बीजेपी को छोड़ना पड़ा था. हालांकि 17 सीट पर बीजेपी चुनाव लड़ी और सभी 17 सीट जीत गयी.

जेडीयू को मिल सकती है कम सीट: जदयू भी 17 सीट पर चुनाव लड़ी एक सीट छोड़ 16 सीट पर जीत मिली थी. अभी विधानसभा और लोकसभा दोनों जगह बीजेपी की संख्या अधिक है. अब लोकसभा चुनाव होने वाला है. nda में फिलहाल 5 दल है और सबको संतुष्ट करना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा और कहीं ना कहीं जदयू को भी इस बार कम सीट पर संतोष करना पड़ सकता है.

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