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आखिर क्यों बंद कर दिया गया पयविहिर का ऐतिहासिक कुआं? जानकर चौंक जाएंगे आप - Stepwell And Payvihir Village

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 14, 2024, 11:03 PM IST

History of Stepwell And Payvihir Village: मेलघाट की तलहटी में एक आदिवासी बहुल गांव में चार-पांच सौ साल पुराना एक कुआं था, जिसे अब बंद कर दिया गया है. ऐतिहासिक अष्टकोणीय आकार के कुएं के कारण ही गांव का नाम पयविहिर पड़ा. इस कुएं के बंद होने के पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है.

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फोटो (Etv Bharat)

अमरावती: किसानों के लिए खेती उनकी उम्मीद होती है. इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए पानी का होना बेहद जरूरी है. इसलिए खेत के पास कुएं का होना आवश्यक है. वैसे सभी जानते हैं कि कुएं के पानी से खेतों में फसलें लहलहाती हैं. हालांकि, महाराष्ट्र के एक किसान ने जल से भरे एक ऐतिहासिक कुएं को बंद कर दिया. सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? ऐसी क्या मजबूरी थी, जिसके कारण किसान को ऐसा कठोर कदम उठाना पड़ गया. बता दें कि, पयविहिर महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है जो राज्य के अमरावती, अचलपुर जिले में स्थित है. यह मुंबई से 641 किमी दूर है.

जब 'ईटीवी भारत' ने इस बारे में जानने की कोशिश की तो खेत के मालिक राधेलाल मोरले से चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. उन्होंने कहा कि, इस कुएं के कारण ही खेत नष्ट हो गया था. इस क्षेत्र में भूमिगत जल का भण्डार प्रचुर मात्रा में है. जानकारी के मुताबिक, इस ऐतिहासिक कुएं में बारह महीने भरपूर पानी रहता था. बरसात के दिनों में यह कुआं इतना भर जाता था कि राधेलाल मोरले का खेत बह जाता था. पूरे बरसात के मौसम में खेतों में इधर-उधर पानी जमा रहता था. परेशान होकर राधेलाल मोरले ने इस कुएं को बंद करने का फैसला किया. क्योंकि कुएं में पानी होने के कारण उन्हें खेती करने में काफी परेशानी हो रही थी.

इस प्रकार अष्टकोणीय आकार का कुआं, जो इस क्षेत्र की कभी पहचान थी, खेत के नष्ट हो जाने के कारण बंद कर दिया गया. जानकारी के मुताबिक इस कुएं से प्रसिद्ध 'पयविहिर' गांव के लोगों अन्य किसी दूसरे स्थान में पानी नहीं मिलता था. इसलिए गांव के सभी लोग इसी कुएं से पानी लेते थे. खबर के मुताबिक, अष्टकोणीय आकार के इस कुएं में नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं.

राधेलाल मोरले की बहन सरोज मोरले ने अपने पुराने दिनों के यादों को ताजा करते हुए ईटीवी भारत को बताया कि सीढ़ियों से नीचे उतरने के बाद वह कुएं में पानी लेने जाती थीं और सीढ़ियों से वापस आ जाती थीं. राधेलाल मोरले के खेत में बने ऐतिहासिक और खूबसूरत कुएं को घास-फूस और लकड़ी से ढक दिया गया है. जिस स्थान पर कुआं था आज वहां एक आम का पेड़ है. अब यह कुआं इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गई है.

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