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गुरु गोविंद सिंह की तपोस्थली हेमकुंड साहिब के 25 मई को खुलेंगे कपाट, तैयारियों में जुटा गुरुद्वारा ट्रस्ट

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 22, 2024, 3:20 PM IST

Hemkund Sahib Kapat Opening Date Announced सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह की पवित्र तपोस्थली हेमकुंड साहिब के कपाट आगामी 25 मई 2024 को खोल दिए जाएंगे. यह सिखों का पवित्र तीर्थ स्‍थल है. जो सबसे ऊंचाई में स्थित गुरुद्वारों में से एक है. जो अपने आप में काफी खास है.

Hemkund Sahib Kapat
हेमकुंड साहिब

देहरादून: सिखों के पवित्र तीर्थ स्‍थल हेमकुंड साहिब के कपाट खुलने की तिथि घोषित हो चुकी है. आगामी 25 मई को गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब के कपाट खोल दिए जाएंगे. इसी कड़ी में गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा ने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से मुलाकात की. साथ ही कपाट खोलने की तिथि की जानकारी दी. वहीं, सरकार की ओर से सहयोग का आश्वासन दिया गया.

दरअसल, आज सचिवालय में गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा ने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से भेंट की. इस दौरान नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा ने सीएस रतूड़ी को बताया कि गुरुद्वारा ट्रस्ट की ओर से 25 मई को हेमकुंड साहिब की यात्रा का शुभारंभ किया जा रहा है. जबकि, 10 अक्टूबर को कपाट बंद किए जाने की तिथि घोषित की कर दी गई है. जिस पर राज्य सरकार की ओर से सहमति दी गई. वहीं, मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि प्रशासन की ओर से पूरा सहयोग किया जाएगा.

सिखों का पवित्र तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब है खास: बता दें कि चमोली में स्थित हेमकुंड साहिब में सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी. यह दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारा है. जो समुद्र तल से करीब 15,225 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. हेमकुंड साहिब में ही हिंदू धर्म का प्रमुख मंदिर लोकपाल लक्ष्मण मंदिर भी है, जो हेमकुंड झील के तट पर बसा है.

कैसे पड़ा हेमकुंड का नाम? हेमकुंड संस्कृत का शब्द है. जिसका अर्थ होता है बर्फ का कुंड. जो बर्फ की ऊंची-ऊंची चोटियों से घिरा है. जिस वजह से इसका नाम हेमकुंड पड़ा. हेमकुंड में साल के 7-8 महीने बर्फ जमी रहती है. हिमालय की गोद में बसे पवित्र स्थल हेमकुंड साहिब में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. हेमकुंड साहिब का सफर काफी मुश्किल भरा होता है. यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को बर्फीले रास्तों से होकर सफर करना पड़ता है.

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