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मूलभूत सुविधाओं से महरूम प्रसिद्ध कालीशिला मंदिर, कोर आश्वासनों से श्रद्धालु और संतों में नाराजगी - Maa Kalishila Temple

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 23, 2024, 4:46 PM IST

Updated : Apr 23, 2024, 8:19 PM IST

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Maa kalishila temple रुद्रप्रयाग स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां कालीशिला मंदिर सुविधाओं से महरूम है. दरअसल मां काली के दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों और संतों के लिए बिजली, शौचालय और रहने की कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है. जिससे कालीशिला मंदिर अपनी पहचान खोने की कगार पर है.

मूलभूत सुविधाओं से महरूम प्रसिद्ध कालीशिला मंदिर

रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड): कालीशिला मंदिर प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक सिद्धपीठ है, जिसको लेकर कहा जाता है कि इस शिला में देवी के 64 यंत्र हैं और मां दुर्गा को इन्हीं यंत्रों से शक्ति मिली थी. इसके बाद उन्होंने शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज दानवों का वध किया था. कालीशिला से बाबा केदारनाथ, मदमहेश्वर और तुंगनाथ के साथ-साथ चन्द्रशिला के भी दर्शन होते हैं. भाजपा नेत्री उमा भारती से लेकर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज और पूर्व वन मंत्री डाॅ. हरक सिंह रावत यहां आकर साधना कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद इस स्थल में बिजली, शौचालय और रहने की कोई उचित सुविधा नहीं है, जो सरकार के मठ-मंदिरों को विकसित करने के दावों की पोल खोल रहे हैं.

केदारखंड के 62 अध्याय में मां काली के मंदिर का वर्णन: बता दें कि स्कन्द पुराण के केदारखंड में 62 अध्याय में मां काली के मंदिर का वर्णन है. कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है, जिसे कालीशिला के नाम से जाना जाता है. इस शिला में आज भी देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं. कालीशिला के बारे में मान्यता है कि मां भगवती ने शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज दानव का वध करने के लिए कालीशिला में 12 साल की बालिका का रूप धारण किया था. दैत्यों का वध करने के बाद काली मां इसी जगह पर अंतर्ध्यान हो गई थी. आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला और चंद्रशिला स्थित है.

समुद्र तल से 3,463 मीटर की ऊंचाई पर है कालीशिला मंदिर: धर्म के जानकारों का भी मानना है कि उत्तराखंड का ये वो सिद्धपीठ है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती. कालीशिला मंदिर समुद्र तल से 3,463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. कालीशिला मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. कालीशिला मां को ज्ञान की देवी कहा जाता है. यहां आकर साधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है.

कालीशिला पहुंचने के लिए तीन पैदल मार्ग: कालीशिला पहुंचने के लिए वर्तमान समय में ब्यूंखी, जग्गी और राऊलैंक से तीन पैदल मार्ग हैं, जो दयनीय हालत में हैं. पैदल मार्गों में शौचालय और पेयजल से लेकर बिजली तक की कोई व्यवस्था नहीं है. भक्त किसी तरह से तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद कालीशिला तो पहुंच जाते हैं, लेकिन उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कालीशिला में श्रद्धालुओं के लिए शौचालय, पेयजल और रहने की कोई भी सुविधा नहीं है. यहां रह रही माई सरस्वती गिरी व थानापति मणि महेश गिरी ही श्रद्धालुओं के लिए अपनी टूटी-फूटी कुटिया में प्रबंध करते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता ने अनदेखी का लगाया आरोप: सामाजिक कार्यकर्ता विजय सिंह रावत ने कहा कि कालीशिला में आकर पूर्व वन मंत्री डाॅ. हरक सिंह रावत ने बिजली व्यवस्था की घोषणा की थी, लेकिन उनकी यह घोषणा आज तक पूरी नहीं हुई है. सेंचुरी एरिया की बात कहकर वन विभाग कालीशिला में निर्माण कार्य नहीं करने दे रहा है. उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम के लिए उड़ाने भरने वाली हेली कंपनियां कालीशिला क्षेत्र के पर्यावरण के साथ ही वन्य जीवों को नुकसान पहुंचा रही हैं, जबकि कालीशिला में एक शौचालय निर्माण करने पर सीधा साधु संतों को जेल भेज दिया जाता है.

धामी सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत: राजस्थान से कालीशिला पहुंचे भक्त दिव्यांश भट्ट ने कहा कि धामी सरकार को कालीशिला को विकसित करने की जरूरत है, क्योंकि यहां पर रोजगार की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं. शौचालय, होम स्टे, पेयजल व बिजली की समुचित व्यवस्था होने से सरकार को राजस्व मिलेगा. उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ कालीशिला की पहचान को देश-दुनिया तक पहुंचाने के लिए यहां विकास कार्य करने चाहिए, जिससे यहां का तीर्थाटन बढ़ें और यहां के लोगों को रोजगार मिल सके.

सिद्धपीठ स्थल की दुर्दशा, सनातन धर्म का अपमान: मध्यप्रदेश के उज्जैन से पहुंचे महंत बुद्ध गिरी ने कहा कि देवभूमि के मठ-मंदिरों की मान्यताएं विश्व विख्यात है. इसलिए इन सिद्ध स्थलों के विकास को लेकर कार्य करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कालीशिला दिव्य स्थल होने के बावजूद भी अपनी पहचान खोता जा रहा है. यहां रह रहे साधु संतों के पास ना रहने के लिए कोई सुविधा है और ना ही खाना बनाने की कोई सुविधा. ऐसे में सिद्धपीठ स्थल की ऐसी दुर्दशा होना, सनातन धर्म का अपमान है.

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Last Updated :Apr 23, 2024, 8:19 PM IST
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