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पहली नवरात्रि पर करें मां महामाया देवी के दर्शन, ये है शक्तिपीठों का केंद्र, डाकिनी-शाकिनी-पिशाचिनी से करती हैं रक्षा - Navratri 2024

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 9, 2024, 10:49 AM IST

Updated : Apr 9, 2024, 12:00 PM IST

Darshan of Maa Mahamaya Devi Temple
मां महामाया देवी मंदिर दर्शन

Darshan of Maa Mahamaya Devi Temple during Navratri in Haridwar आज 9 अप्रैल 2024 से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई हैं. सनातन या हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है. चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ होने के साथ ही आज से हिंदू नववर्ष भी शुरू हो गया है. चैत्र नवरात्रि पर 9 दिन तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. आज हम आपको नवरात्रि के पहले दिन मां के शक्तिपीठों के केंद्र मां महामाया देवी मंदिर के दर्शन कराते हैं. इस खबर में जानिए, मां महामाया देवी की पौराणिक कथा और इस मंदिर का महत्व.

नवरात्रि में मां महामाया देवी के दर्शन

हरिद्वार: पूरे देश में नवरात्रि की धूम मची हुई है. सुबह से ही हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी कही जाने वाली मां मायादेवी मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. मान्यता है कि नवरात्र के दिनों में मां महामाया देवी के दर्शन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. यहां आकर श्रद्धालु सच्चे मन से मां की उपासना करते हैं.

नवरात्रि में मां महामाया देवी के दर्शन: हरिद्वार के महामाया देवी मंदिर को 52 शक्तिपीठों का केंद्र माना जाता है. इसी मंदिर के नाम पर पूर्व में हरिद्वार को मायापुरी के नाम से जाना जाता था. नवरात्र के अवसर पर यहां माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है. हरिद्वार की अधिष्ठात्री मां मायादेवी मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की नाभि गिरी थी. इसलिए इसे संपूर्ण ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है.

हरिद्वार की अधिष्ठात्री हैं मां महामाया देवी: महामाया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी भी कहलाती हैं. नवरात्र पर महामाया देवी मंदिर में विशेष तरह का श्रृंगार किया जाता है. इस श्रृंगार को करने के लिए अलग-अलग तरह के फूल और अलग-अलग तरह के फलों की आवश्यकता पड़ती है. सुबह के समय माता को फूलों से सजाया जाता है. शाम को मां महामाया देवी का श्रृंगार अलग-अलग फलों से किया जाता है.

दक्ष प्रजापति के यक्ष से जुड़ी है कहानी: महंत सुरेशानंद सरस्वती बताते हैं कि राजा दक्ष की पुत्री माता सती जब भगवान शिव के मना करने पर भी अपने पिता के यज्ञ में भाग लेने पहुंच गईं, तब वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों और देवों ने उन्हें अपमानित किया. राजा दक्ष ने जहां छोटे-छोटे देवताओं, यक्ष, गंधर्वों का भाग यज्ञ स्थल पर रखा था, वहीं भगवान शंकर का न कोई भाग था और न कोई आसन बिछाया गया था. यह देख माता सती बहुत दुखी हुईंं. पिता ने उनकी इतनी उपेक्षा की कि उन्होंने अपमान की अग्नि में प्राणों का उत्सर्ग कर दिया. कालांतर में शिव सती की देह को कंधे पर उठाए पूरे लोक में घूमते रहे. इस दौरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चला दिया. जिससे माता सती की देह के टुकड़े-टुकड़े हो गए. जिस स्थल पर सती की नाभि गिरी, वही स्थल माया देवी के नाम से विख्यात है.

यहीं गिरी थी माता सती की नाभि: माया देवी भगवती के 52 शक्तिपीठों का केंद्र है. चूंकि हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी. अत: इस स्थल को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है. माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण डाकिनी, शाकिनी, पिशाचिनी आदि अला बलाओं से तीर्थ की रक्षा करती हैं. कहा जाता है कि यहां दर्शन करे बिना तीर्थों की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती.

मां महामाया देवी मंदिर से शुरू करते हैं शुभ कार्य : आपको बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी हरिद्वार पहुंचने पर सबसे पहले हरिद्वार की अधिष्ठात्री मां मायादेवी की पूजा अर्चना की थी. इसी के साथ जब हरिद्वार लोकसभा सीट पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का टिकट तय हुआ, तो उन्होंने भी यहां पर पूजा अर्चना की और यहीं से ही उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रसिद्ध छड़ी यात्रा की शुरुआत की थी, जो कि काफी समय से रुकी हुई थी. वहीं कई बड़े नेता इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना कर चुके हैं.
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Last Updated :Apr 9, 2024, 12:00 PM IST
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