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हरिद्वार: भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है मां माया देवी

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Published : Oct 6, 2019, 2:33 PM IST

माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. जहां नवरात्रियों में भक्तों का तांता लगा हुआ है.

हरिद्वार माया देवी मंदिर.

हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में नवरात्रि के आठवें दिन मां भगवती के महागौरी रूप की पूजा के लिए भक्तों का मंदिरों में तांता लगा हुआ है. वहीं, हरिद्वार में नवरात्रि के मौके पर मां मायादेवी मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी हुई है. माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. मान्यता है कि माता सती की यहां नाभि गिरी थी. इसलिए इस धाम को मां भगवती के 51 शक्तीपीठों में एक माना जाता है.

भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है मां माया देवी.

हरिद्वार का नाम भी मायादेवी के नाम पर ही पड़ा हुआ है माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी है. जिन पर लोगों की अटूट आस्था है. मान्यता है कि इस मंदिर आने वाले भक्तों की मां हर मुराद पूरी करती है. वहीं नवरात्रि में हरिद्वार के सभी मंदिरों में दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं. मां माया देवी मंदिर का पुराणों में भी विस्तार से उल्लेख मिलता है. पौराणक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन कराया. जिसमें उन्होंने सभी देवी देवीताओं और ऋषि मुनियों को आंमत्रित किया. लेकिन अपने दामाद भगवान शंकर को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया.

पढ़ें-नैनीताल में दुर्गा महोत्सव का आगाज, मां के दर्शन के लिए उमड़े श्रद्धालु

जब माता सती को इस बात का पता चलता है तो वे भगवान शिव से यज्ञ में जाने का आग्रह करती है.भगवान शिव के मना करने पर भी माता सती इस आयोजन में पहुंचती है. जहां माता सती ने उनके पिता द्वारा किये यज्ञ में जब अपने पति शिव का अपमान होता देखा तो क्रोधित हो गई. साथ ही यज्ञ कुण्ड में कूद गई. जब भगवान शिव को इस घटना का पता चलता है वे माता सती के जले हुए शरीर को देखकर विलाप करने लगते हैं. भगवान शिव माता सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माणड में चक्कर लगा रहे थे.

तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े कर दिए. जिससे भगवान शिव शांत हो सके.माना जाता है कि इसी दौरान देवी सती के शरीर का दिल और नाभि इस स्थान पर गिरे थे. बाद मे इस स्थान पर माया देवी मंदिर का निर्माण किया गाया.इसलिए इस धाम को मां भगवती के 51 शक्तीपीठों में एक माना जाता है.मायापुरी इसी के बाद से सप्तपुरियों में सातवीं पुरी बन गई.वहीं हरिद्वार का माया देवी मंदिर लक्ष्मी के रूप में भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है.

मंदिर में नवरात्रों में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं.माना जाता है कि मां के दर्शन से भक्तों की धन संपदा बनी रहती है. क्योंकि माता लक्ष्मी का दूसरा नाम माया है. जिसका वर्णन दुर्गा सप्तसती में भी मिलता है. यहां पूजा करने से धन तो मिलता ही है साथ ही दुश्मनों से भी छुटकारा मिल जाता है. जहां देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं.

Intro:हरिद्वार में नवरात्र के मौके पर माँ मायादेवी मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी है हरिद्वार का नाम भी मायादेवी के नाम पर ही पड़ा हुआ है माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी है और प्राचीन मान्यता है कि माँ सती का एक अंग नाभि यहाँ गिरी थी और जहा जहा उनके अंग गिरे वे स्थान सिद्धपीठ के रूप में विख्यात हुए दुनिया में ऐसे 51 स्थान है जहा पर सती के अंग गिरे थे और यह सभी स्थान सिद्धपीठ के रूप में जाने जाते है और इन स्थानों पर जो भी आराधना करता है उसकी मनोकामनाये पूरी हो जाती है हरिद्वार अधिकांश लोग हर रोज माता के दर्शन करने के लिए माया देवी मंदिर आते है माँ स्वयं ही मन की मुराद को जान लेती है और उनको पूरा कर देती है नवरात्र के चलते हरिद्वार के सभी देवी के मंदिरों में नवरात्रों के दिनो में विशेष पूजा के साथ साथ भक्तों की भारी भीड़ लगी है Body:माँ माया देवी मंदिर के लिए पुराणों मैं वर्णन है कि राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ कराने के लिए यज्ञ कुंङ का निर्माण कराया था उन्होने यज्ञ में तमाम देवी देवताओं व ऋषिमुनियों को आंमत्रित किया था मगर अपने दामाद भगवान शंकर को इस यज्ञ में नही बुलाया था यज्ञ होने की जानकारी मिलने पर सती ने भी भगवान शंकर से वहाँ जाने की इच्छा जताई जिस पर भगवान शंकर ने उन्हें बिन बुलाये नही जाने की सलाह दी इसके बाद भी पिता प्रेम की वजह से सती यज्ञ में चली गई उन्होने वहाँ यज्ञ में अपने पति का आसन नही देखकर इसे अपने पति और खुद का अपमान समझा और वह इसी जगह पर यज्ञ कुंङ में कूद पङी बाद में क्रोधित होकर शंकर भगवान ने रौद्र रूप धारण कर लिया उनके निर्देश पर उनके गणों ने दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर ङाला सती का दग्ध शरीर लेकर रौद्र रूप में ब्रह्मांङ की चिंता छोङ ब्रह्मांङ में ही घूमते रहे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के टुकङे करने शुरू कर दिये पुराणों में कहा गया है कि जहाँ जहाँ सती के शरीर के अंग गिरते गए वह जगह ही शक्ति पीठ बन गई सती की नाभि इसी स्थान पर हरिद्वार में गिरी थी हरिद्वार में जिस जगह पर सती की नाभि गिरी थी उस जगह पर आज भी मायादेवी मंदिर स्थित है सती की नाभि गिरने से इस जगह को ब्रह्रमांङ का केन्द्र भी माना जाता है इसी के बाद हरिद्वार का नाम मायापुरी पङा और मायापुरी इसी के बाद से सप्तपुरियों में सातवीं पुरी बन गई थी।

बाइट--मुख्य पुजारी----माया देवी मंदिर

रिद्वार का माया देवी मंदिर लक्ष्मी के रूप में भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है मंदिर में नवरात्रों में जों भी दर्शन करने आता है उसके यहाँ धन सम्पदा बनी रहती है क्योकि लक्ष्मी का दूसरा नाम माया है इसका वर्णन दुर्गा सप्तसती में भी मिलता है यहाँ पूजा करने से धन तो मिलता ही है साथ ही दुश्मनों से भी छुटकारा मिल जाता है ओर मनोकामनाये पूरी होती है माया देवी मंदिर में दर्शन कर जो भी कार्य किया जाता है वो हमेशा सफल होता है और माता से कुछ भी मांगे वो पूरा कर देती है ।

बाइट--मुख्य पुजारी----माया देवी मंदिर

हरिद्वार का माया देवी मंदिर लक्ष्मी के रूप में भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है मंदिर में नवरात्रों में जों भी दर्शन करने आता है उसके यहाँ धन सम्पदा बनी रहती है क्योकि लक्ष्मी का दूसरा नाम माया है इसका वर्णन दुर्गा सप्तसती में भी मिलता है यहाँ पूजा करने से धन तो मिलता ही है साथ ही दुश्मनों से भी छुटकारा मिल जाता है ओर मनोकामनाये पूरी होती है माता के भक्तों का मानना है कि माया देवी मंदिर में दर्शन कर जो भी कार्य किया जाता है वो हमेशा सफल होता है और माता से कुछ भी मांगे वो पूरा कर देती है ।

बाइट--मधु----श्रद्धालु Conclusion:धर्मनगरी हरिद्वार विश्व में ऐसा पहला स्थान है जहा सिद्ध देवियो के तीन मंदिर का त्रिकोण है यह तीनों मंदिर चंडी देवी मनसा देवी और माया देवी मिलकर एक त्रिकोण बनाते है इस त्रिकोण के उत्तरी कोनो में माँ मनसा देवी दक्षिण में माया देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी का मंदिर है इस तीनों मंदिर में वो शक्ति है जों भी दर्शन करता है वह सभी इच्छाओ को प्राप्त कर लेता है यही बजह है कि नवरात्र में माया देवी मंदिर में माँ के भक्तों का ताता लगा रहता है
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