उत्तराखंड

uttarakhand

उफनती भागीरथी और जानलेवा पत्थरों के सहारे पार हो रही 'जिंदगी', देखें पहाड़ की हकीकत

By

Published : Jul 27, 2019, 8:27 PM IST

उत्तरकाशी के जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्युणा गांव के लोग आज भी जान जोखिम में डालकर भागीरथी नदी को पार करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शासन-प्रशासन से कई बार गुहार लगा चुके हैं, लेकिन आज तक इस ओर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

उफनती नदी पार करने को मजबूर हैं ग्रामीण

उत्तरकाशी:बरसात के कारण भागीरथी नदी उफान पर है. ऐसे में कोई पुलिया न होने के कारण उत्तरकाशी के स्युणा गांव के लोग खण्डिचों (नदी के छोर पर रखे पत्थर) के सहारे नदी पार करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि कई बार शासन-प्रशासन को इस समस्या से अवगत कराया जा चुका है. बावजूद इस ओर कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

उफनती भागीरथी नदी को पार करने को मजबूर ग्रामीण.

गौरतलब है कि बरसात के दौरान भागीरथी नदी उफान पर होती है. ऐसे में पुलिया के सहारे भी इस नदी को पार करने में काफी खतरा होता है. लेकिन जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्युणा गांव के लोग अपनी जान जोखिम में डाल इस नदी को कुछ खण्डिचों (नदी के छोर पर रखे पत्थर) के सहारे पार करने को मजबूर हैं. वहीं, नदी को पार करते वक्त अगर किसी का पैर फिसल गया तो भागीरथी नदी के तेज बहाव में उसका बचना मुश्किल है. साथ ही पहाड़ी से पत्थर गिरने का डर भी लगातार बना रहता है.

पढ़ें:यमुनोत्री हाईवे पर सड़क टूटने से नदी में गिरी पोकलैंड मशीन, चालक की मौत

ग्रामीणों का कहना है कि बच्चों को स्कूल भेजने में भी डर लगता है. अगर कोई प्रसव या बीमार हो जाए तो यह सोचना पड़ता है कि बीमार को अस्पताल कैसे पहुंचाया जाए. ग्रामीणों का कहना है कि नदी में पानी कम होने पर गंगोरी से गांव के लिए भागीरथी नदी के ऊपर वैकल्पिक पुल बनाकर आवाजाही करते हैं. लेकिन गर्मियां शुरू होते ही नदी का बहाव बढ़ जाता है और फिर रोजमर्रा की चीजों के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है.

बता दें कि स्युणा गांव में 35 से 40 परिवार निवास करते हैं. जिनका कहना है कि उन्होंने गंगोरी से स्युणा गांव के लिए एक अदद झूला पुल की मांग थी. लेकिन न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि सुनते हैं और न ही प्रशासन. हर बार सिर्फ कोरे आश्वासन ही मिले हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अब उन्होंने जीवन और मौत के बीच के इस सफर को अपनी नियति समझ ली है और इंतजार कर रहे हैं कि कभी तो कोई उनकी गुहार सुनेगा.

Intro:जिला मुख्यालय से महज 5 किमी की दूरी पर स्थित स्युणा गांव के लोग आज भी जान जोखिम में डालकर भागीरथी नदी को पार कर गांव पहुंचते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि शासन प्रशासन के पास गुहार लगाकर थक चुके हैं। लेकिन गांव के लिए अभी तक एक अदद पैदल मार्ग भी नहीं बन पाया है। उत्तरकाशी। बरसात के दौरान नीचे तेज उफान पर बह रही भगीरथी नदी के बीच बिछे खण्डिचों के ऊपर से आवाजाही करनी और साथ ही ऊपर से पहाड़ी से चू रहे बरसाती पानी के साथ पत्थर आने का खतरा। यह तस्वीर सीमान्त जनपद के किसी दूरस्थ गांव की नहीं, बल्कि जिला मुख्यालय से महज 5 किमी की दूरी पर स्थित स्युणा गांव की है। जो कि आज भी बरसात में जान जोखिम में डालकर अपने गांव पहुंचते हैं। हल्का पैर फिसल जाए,तो भागीरथी नदी के तेज बहाव से कोई नहीं बचा सकता और ऊपर से पहाड़ी से लगातार पत्थर गिरने का भय। शासन प्रशासन के पास कई वर्षों से एक अदद पुल और क्षतिग्रस्त पैदल मार्ग की मरम्मत के लिए गुहार लगा चुके ग्रामीण थक चुके हैं और इसे अपनी किस्मत समझकर जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं। Etv Bharat की ground report स्युणा गांव के ग्रामीणों की जुबानी।


Body:वीओ-1, बच्चों को स्कूल भेजने में डर लगता है। कोई प्रसव या बीमार हो जाये। तो यह सोचना पड़ता है कि कैसे बीमार को अस्पताल पहुंचाया जाए। अब तो थक गए। कोई नहीं सुनता है। कभी ऊपर से जाओ तो वहां खतरा,नीचे से जाओ तो वहां नदी का खतरा। हम जाएं तो जाएं कहां से। यह कहना है स्युणा गांव के 60 वर्षीय कुशला प्रसाद उनियाल का। जो कि अपनी पोती को गोद मे लिए भागीरथी नदी के बीच मे बने पुस्ते के ऊपर से अपने गांव स्युणा जा रहे हैं। ग्रामीण नदी कम होने पर गंगोरी से गांव के लिए भागीरथी नदी के ऊपर वैकल्पिक पुल बनाकर आवाजाही करते हैं। तो गर्मियां शुरू होते ही नदी का बहाव बढ़ते ही पुल बह जाता है और फिर स्युणा गांव के लोगों का तेखला से शुरू हो जाता है,गांव तक का बरसात के दौरान जिंदगी और मौत के बीच का सफर।


Conclusion:वीओ-2, स्युणा गांव के ग्रामीणों का कहना है कि गांव में 35 से 40 परिवार निवास करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी गंगोरी से स्युणा गांव के लिए एक अदद झूला पुल की मांग थी। लेकिन न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि सुनते हैं और न ही प्रशासन। कई बार गुहार लगा चुके हैं। लेकिन हर बार कोरे आश्वासनों के चलते अब वह थक चुके हैं। अब जीवन और मौत के बीच के इस सफर को अपनी नियति समझकर ग्रामीण इंतजार कर रहे हैं कि कभी तक कोई उनकी गुहार सुनेगा। स्युणा गांव की स्थिति हमारे विकासशील देश की उस तस्वीर को बयां कर रहा है। जो कि विकास के दावे करने वाले लोगों की हकीकत को प्रत्यक्ष धरातल पर दिखा रही है। बाईट- कुशला प्रसाद उनियाल,ग्रामीण स्युणा। बाईट- सुरेंद्र प्रसाद भट्ट,ग्रामीण स्युणा। बाईट- देवी प्रसाद,ग्रामीण।

ABOUT THE AUTHOR

...view details