उत्तराखंड

uttarakhand

Ghantakarna Puja: रुद्रप्रयाग में 24 साल बाद हुई घंटाकर्ण की जात, आशीर्वाद लेने पहुंची बहू बेटियां

By

Published : Jan 30, 2023, 1:16 PM IST

रुद्रप्रयाग में घंटाकर्ण की जात 24 साल बाद आयोजित हुई है. इसमें बड़ी तादाद में लोग दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं बहू-बेटियां अपने कुल देवता के दर्शन के लिए अपने मायके पहुंच रही हैं. साथ ही जात में शामिल होकर सुख समृद्धि का आशीष मांग रही हैं.

Etv Bharat
Etv Bharat

घंटाकर्ण की जात

रुद्रप्रयाग: देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास माना जाता है. लोगों की अटूट आस्था इस विश्वास को प्रगाढ़ करती है. वहीं रुद्रप्रयागमेंपट्टी बडियारगढ़ के सुपार (बडियारगढ़) में आयोजित घंटाकर्ण की जात (धार्मिक अनुष्ठान) में बड़ी संख्या में धियाणियां (बहू-बेटियां) अपने कुल देवता के दर्शन के लिए अपने मायके पहुंच रही हैं. 24 वर्षों बाद आयोजित हो रही नौ दिवसीय जात का दो फरवरी को विधिवत समापन हो जाएगा. घंटाकर्ण देवता को धियाणियों का भी देवता माना जाता है.

मंदिर की पौराणिक कथा:श्रीघंटाकर्ण की उत्पति के बारे में कई लोककथा, पौराणिक प्रमाण एवं जनश्रुतियां हैं. श्रीघंटाकर्ण को महादेव शिव के भैरव अवतार में एक माना जाता है. टिहरी, पौड़ी और बदरीनाथ में श्रीघंटाकर्ण को क्षेत्रपाल देवता माना जाता है. बदरीनाथ में घंटाकर्ण का मंदिर है और उसे देवदर्शनी (देव देखनी) कहते हैं. भगवान बदरीनाथ की पूजा से पहले श्रीघंटाकर्ण की पूजा का विधान है. घंटाकर्ण को बदरीनाथ धाम का क्षेत्रपाल (रक्षक) माना जाता है. इसलिए बदरीनाथ के कपाट से पहले घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुलते हैं जो बदरीनाथ के कपाट बंद होने के बाद ही बंद किए जाते हैं.
पढ़ें-Uttarkashi Snowfall: गंगोत्री में बर्फ की फुहारें गिरने से दिलकश हुआ नजारा, देखें वीडियो

पूजा में दूर-दूर से आते हैं लोग:सुपार में घंटाकर्ण देवता की पूजा-अर्चना जोशी जाति के लोग करते हैं. ढोल वादक, कंडी वाहक, निज्वाला (देवताओं के निशान ले जाने वाले) आदि का कार्य करने वाले लोग वंशानुगत अपने-अपने कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं. घंडियाल, मसाण, हीत, नागराजा, काली आदि देवी-देवता अनुष्ठान में अवतरित होते हैं. उनके पश्वा एक निश्चित जाति के ही हैं. देव पूजन समिति के अध्यक्ष मोहन लाल चमोली का कहना है कि 24 वर्षों बाद हो रहे इस धर्मिक अनुष्ठान में देश ही नहीं विदेश से भी लोग आ रहे हैं. कई ऐसे परिवार भी हैं, जो चालीस साल बाद अपने गांव आए हैं. घंटाकर्ण देवता की कृपा-दृष्टि से गांव में मेला लगा है. वर्षों पूर्व मिले लोगों का पुनर्मिलन हो रहा है. उन्होंने बताया कि सुपार गांव में सुबह, दोपहर और रात के समय भंडारे का आयोजन किया जा रहा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details