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सदियां गुजरीं, पर नहीं बदला माइग्रेशन का स्वरूप, भोटिया जनजाति के पास पहुंचा ETV BHARAT

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Published : Jul 18, 2021, 8:13 PM IST

भोटिया जनजाति के लोग आज भी साल में दो बार पलायन करने को मजबूर हैं.

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पिथौरागढ़:उत्तराखंड के उच्च हिमालयी इलाकों में निवास करने वाली भोटिया जनजाति के लोग आज देशभर में वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. लेकिन इस जनजाति के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि इस जनजाति में कई गरीब परिवार ऐसे भी हैं, जो आज भी घुमंतू जीवन जीने को मजबूर हैं. परंपरागत रूप से कृषि और पशुपालन का कार्य करने वाले भोटिया समुदाय के लोग आज भी साल में दो बार पलायन करने को मजबूर हैं.

बता दें, भोटिया जनजाति के लोग सर्दियों के सीजन में बर्फबारी से बचने के लिए ये लोग अपने परिवार और पशुओं के साथ घाटी वाले इलाकों का रुख करते हैं, जबकि गर्मियों के सीजन में कृषि और पशुपालन के लिए अपने मूल गांवों की ओर जाते हैं. माइग्रेशन में इन लोगों को 10 से 15 हजार फीट की ऊंचाई वाले इलाकों से ढाई से तीन हजार फिट की ऊंचाई वाली घाटियों में आना होता है.

पिथौरागढ़ में भोटिया जनजाति के लोग.

आज भी ये लोग सदियों पुराने ढंग से ही जानवरों को साथ लेकर पैदल ही तराई और भाबर की ओर रवाना होते हैं. 150 से 200 किमी तक की दूरी को पूरा करने में इस समुदाय को 10 से 15 दिन का समय लगता है. इस दौरान इन्हें जंगल में बने उड्यारों (छोटी गुफाओं) में दिन गुजारने पड़ते हैं, जबकि बकरियों को खुले आसमान के नीचे रहती हैं.

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गर्मियों के सीजन में ये लोग उच्च हिमालयी इलाकों में स्थित बुग्यालों का रुख करते हैं, जहां इन्हें 3 से 4 माह तक जंगलों में टेंट लगाकर या उड्यारों (छोटी गुफाओं) में रहना पड़ता है. हालांकि, भेड़, बकरियों समेत पलायन करने के दौरान तेंदुए के हमले का खतरा बना रहता है. इसके अलावा रात के समय मौका पाते ही चोर भी बकरियों को चुरा ले जाते हैं. बर्फबारी के दौरान भी कई भेड़ें बीमार होकर मर जाती हैं, जिससे भेड़पालकों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है.

भेड़पालक मोहन दताल ने बताया कि वो पंचाचूली की तलहटी में स्थित बुग्यालों में अपनी 150 भेड़ों के साथ 3 माह तक रहते हैं. इस दौरान छोटी गुफाओं या टेंटों के सहारे रहना पड़ता है. रात के समय जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है.

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वहीं स्थानीय मामलों के जानकार शालू दताल का कहना है कि नई पीढ़ी में भेड़पालन के प्रति रुझान कम हो रहा है. पहले एक ही व्यक्ति के पास सैकड़ों भेड़ें होती थीं, लेकिन अब यह संख्या सिमटती जा रही हैं, जिस कारण भेड़पालन का व्यवसाय प्रभावित होता जा रहा है.

धारचूला के व्यास घाटी में स्थित बूंदी, गर्ब्यांग, नपलच्यू, गुंजी, नाबी, रोंगकांग और कुटी गांव के भोटिया जनजाति के लोग पलायन करते हैं. तो वहीं, दारमा घाटी नागलिंग, बौन, बौगलिंग, चल, दांतू, दुग्तू, ढाकर, सौंग, सीपू, तिदांग, मार्छा और गो गांव के लोग पलायन करते हैं. वहीं, मुनस्यारी के रालम, मिलम, ल्वां, खैलाच, टोला, बुर्फू, रिलकोट, गनघर और मर्तोली गांवों के भोटिया जनताति के लोग पलायन करते हैं.

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