उत्तराखंड

uttarakhand

बाघों की मौत पर आंख मिचौली करता है वन विभाग, खाल-हड्डी के साथ तस्कर तो पकड़े लेकिन नहीं पता कहां हुआ शिकार!

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 7, 2023, 10:51 AM IST

Updated : Oct 7, 2023, 2:15 PM IST

Tiger death cases in Uttarakhand बाघों की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड का देश में तीसरा स्थान है. ये तो बाघों को लेकर उत्तराखंड का चमकदार पक्ष है. दूसरी तरफ उत्तराखंड बनने के बाद से 23 साल में 181 बाघों की मौत ने इस राज्य के स्याह पक्ष को भी उजागर किया है. पिछले 9 महीने के दौरान ही उत्तराखंड में 18 बाघ दम तोड़ चुके हैं. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि वन विभाग को पता ही नहीं होता कि बाघ की मौत कहां हुई या बाघ को कहां मारा गया.

Tiger death cases in Uttarakhand
उत्तराखंड टाइगर

बाघों की मौत पर आंख मिचौली करता है वन विभाग

देहरादून:उत्तराखंड में जब भी बाघों की मौत होती है तो वन महकमा इस पर खुलकर बात रखने के बजाय आंख मिचौली शुरू कर देता है. स्थिति यह है कि अब तक बाघों की खाल के साथ कई तस्कर पकड़े जा चुके हैं, लेकिन कभी महकमे ने ये स्पष्ट नहीं किया कि इन बाघों का शिकार कहां हुआ था.

इस साल तस्करों से तीन बाघों की खाल बरामद हुई: इसी साल पिछले कुछ महीनों में ही तीन बाघों की खाल तस्करों से बरामद की गई, लेकिन इस पर भी विभाग केवल जांच की बात कहने तक ही सीमित दिखाई दिया है. ईटीवी भारत के पास मौजूद जानकारी के अनुसार वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया दो बाघों की खाल की पहचान कर चुका है.

बाघों की मौत कब-कब हुई

क्या कहता है वन विभाग का रिकॉर्ड? उत्तराखंड में लगातार वन्य जीव तस्करों की धर पकड़ भी हो रही है. इनसे वन्यजीवों के अंग भी बरामद किए जा रहे हैं. लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद वन विभाग कभी इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाया है कि आखिरकार तस्करों ने इन वन्य जीवों का शिकार कहां और कैसे किया. जबकि वन विभाग का रिकॉर्ड उत्तराखंड में बाघों का कहीं भी शिकार होने की पुष्टि नहीं करता. वन विभाग की इसी आंख मिचौली को देखते हुए ईटीवी भारत ने देश भर के वन्यजीवों पर रिसर्च करने और नजर रखने वाले वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों से बात की. उनसे तस्करों से बरामद होने वाली खालों के आधार पर शिकार हुए बाघों की मौजूदगी का पता करने की कोशिश की गई. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने बाघों पर काम कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक कमर कुरैशी से सवाल किया. कमर कुरैशी ने कहा कि दो बाघों की खाल की पहचान की गई है. इसमें एक बाघ हरिद्वार क्षेत्र के बाहर का है. दूसरा बिजनौर के अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व का है.
ये भी पढ़ें: पर्यावरण प्रेमी मनवीर ने कॉर्बेट प्रशासन को भेंट किए प्लास्टिक के टाइगर, कहा- आज नहीं जागे तो यही होगा भविष्य!

कुमाऊं बना बाघों की कब्रगाह! उत्तराखंड में लगातार बाघों की मौत का आंकड़ा बढ़ता चला जा रहा है. हालांकि अधिकतर बाघ कुमाऊं क्षेत्र में ही मरे हैं. लेकिन जून महीने में इसी साल राजाजी टाइगर रिजर्व के चीला क्षेत्र में भी एक बाघ की मौत हुई थी. उधर वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक कमर कुरैशी के अनुसार पहचान के रूप में उसका हरिद्वार के पास का होना बताया गया, जो यह साबित करता है कि हरिद्वार के बाहर के क्षेत्र में न केवल तस्कर सक्रिय हैं, बल्कि यहां पर उनके द्वारा शिकार के प्रयास भी हो रहे हैं. सबसे पहले जानिए कि उत्तराखंड में बाघों को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े.

उत्तराखंड में बाघों की मौत का आंकड़ा
प्रदेश में पिछले 9 महीने के दौरान 18 बाघों की हो चुकी है मौत
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और इसके आसपास के क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाघ मरने की घटनाएं हुई हैं
रिपोर्ट के अनुसार राज्य स्थापना से अब तक कुल 181 बाघों की हुई है मौत
साल 2023 में पिछले 9 महीने के दौरान देशभर में 148 बाघ मरे
साल 2022 में हुई बाघों की गणना में उत्तराखंड 560 बाघों के साथ देश में तीसरे स्थान पर
पिछले 9 महीने में बाघों की मौत का कारण वन विभाग आपसी संघर्ष, प्राकृतिक मौत और अज्ञात बताता रहा
पिछले 4 महीने में 7 तस्करों की हो चुकी है गिरफ्तारी
इस साल तस्करों को तीन बाघों की खालों और 50 किलो हड्डी के साथ किया जा चुका है गिरफ्तार

विभाग देता है गोलमोल जवाब! ऐसा नहीं है कि वन विभाग बाघों की मौत को लेकर चिंतित ना हो, या इसके लिए प्रयास न कर रहा हो. लेकिन न जाने ऐसी क्या बात है कि जब बाघ की मौत होती है तो इसे स्पष्ट तौर पर सामने रखने की बजाय अधिकारी जवाब देने से बचने की कोशिश करते हैं. यही नहीं ऐसे मामलों की जांचों को भी या तो ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है, या फिर इन्हें गोपनीय बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी जाती है. कुमाऊं क्षेत्र में लगातार हो रही बाघों की मौत को लेकर भी कुमाऊं चीफ पीके पात्रो को जांच दी गई थी, लेकिन कभी इस जांच के तथ्यों पर सवाल पूछे जाने के बाद भी इन्हें स्पष्ट नहीं किया गया. इसी को लेकर वन मंत्री सुबोध उनियाल से भी सवाल पूछा गया और बाघों की जो खाल बरामद की जा रही है, उन्हें कहां से लाया गया, इस सवाल पर वह भी केवल जांच की बात कहकर इतिश्री करते नज़र आये.
ये भी पढ़ें: Alert: उत्तराखंड में इंसान को बढ़ा खतरा तो टाइगर भी नहीं सुरक्षित, आंकड़ों के साइड इफेक्ट ने डराया!

अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल: कॉर्बेट नेशनल पार्क और इसके आसपास के क्षेत्र में जिस तरह बाघों की मौत हो रही है, उससे यहां तैनात अफसरों की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठना लाजिमी है. सीसीएफ कुमाऊं से लेकर डायरेक्टर कॉर्बेट और संबंधित डीएफओ भी इसके लिए जवाबदेह हैं. क्योंकि बाघों समेत अन्य वन्य जीवों की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्हीं अफसरों की है.
ये भी पढ़ें: International Tiger Day पर जारी किए गए बाघों के आंकड़े, तीसरे स्थान पर उत्तराखंड

Last Updated : Oct 7, 2023, 2:15 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details