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महाराष्ट्र संकट: उत्तराखंड में बच गई थी सरकार, कब कहां गिरी जानिए पूरी हिस्ट्री

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Published : Jun 23, 2022, 8:05 PM IST

Updated : Jun 24, 2022, 2:37 PM IST

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महाराष्ट्र के ताजा राजनीतिक संकट ने एक बार फिर उत्तराखंड के उस राजनीतिक घटनाक्रम की याद दिला दी है, जब उत्तराखंड में मजबूत कांग्रेस सरकार को बीजेपी ने 'ऑपरेशन लोटस' चलाकर गिराने की कोशिश की थी. हालांकि, तब हरीश रावत जैसे दिग्गज नेता के सामने बीजेपी का ये 'ऑपरेशन' सफल नहीं हो सका था और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी थी. हरीश रावत अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए थे.

देहरादून: महाराष्ट्र में बीते 4 दिनों से चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम को देखकर एक बार फिर उत्तराखंड सहित उन दूसरे राज्यों की याद ताजा हो गई, जहां पर बीजेपी ने जोड़-तोड़ कर अपनी सरकारें बनाई हैं. हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं है कि शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर बीजेपी महाराष्ट्र में कुछ 'खेल' कर सकेगी या नहीं, लेकिन अभी तक के घटनाक्रम को देखते हुए राजनीतिक जानकार यही मान रहे हैं कि अगर ऐसा ही रहा तो बहुत जल्द एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में तख्तापलट करवा सकते हैं. आइए हम आपको बताते हैं कि जोड़-तोड़ की राजनीति का ये सफर कब और कहां से शुरू हुआ.

सबसे पहले उत्तराखंड में चला ऑपरेशन लोटस: ये साल था 2016, केंद्र में अपनी सत्ता बनाने के बाद बीजेपी ने नजर उत्तराखंड की तरफ की. उस समय उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी. विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री का पदभार सौंपा गया था. तमाम विरोध के बीच हरीश रावत अपनी सरकार चला ही रहे थे कि पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, मंत्री हरक सिंह रावत सहित 9 कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी से बगावत कर दी और एकाएक बीजेपी में शामिल हो गए. ये होना भर था और रातों-रात उत्तराखंड देशभर की सुर्खियों में आ गया.
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राज्य में गरमाने लगाराजनीतिक संकट: आलम ये था कि एक तरफ हरीश रावत 'अपनों' के दिए सदमे से जूझ रहे थे और सरकार बचाने की कवायद में जुटे थे कि तभी उनका एक स्टिंग ऑपरेशन देशभर के चैनलों पर चलने लगा, जिसमें विधायकों की खरीद-फरोख्त को लेकर बातचीत हो रही थी. इस स्टिंग ऑपरेशन के दम पर बीजेपी को और ज्यादा हमलावर होने का मौका मिल गया. हरीश रावत पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे.

विजय बहुगुणा संग हरीश रावत.

हालांकि, बीजेपी उत्तराखंड में विधायक तोड़ने में तो कामयाब रही लेकिन हरीश रावत ने किसी तरह से अपनी सरकार बचा ली. उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को दूर रखते हुए शक्ति परीक्षण कराया गया. 11 मई 2016 को बहुमत परीक्षण में हरीश रावत की जीत हुई. सुप्रीम कोर्ट के चलते यहां भी विधायकों को तोड़ने का बीजेपी का 'खेला' काम नहीं आया.

वो बात अलग है कि साल 2017 में हुए चुनावों में बीजेपी ने हरीश रावत के स्टिंग ऑपरेशन और तमाम मुद्दों को जनता के बीच रखा और नतीजा ये रहा कि उत्तराखंड में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और पहली बार बीजेपी ने उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई.
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अरुणाचल में मिली सफलता, बना ली सरकार: 2014 चुनाव के बाद अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. हालांकि, कांग्रेस के नेताओं के बीच की रंजिश सामने आती रही, लेकिन 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने ही अपने 42 विधायको के साथ पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (PPA) ज्वाइन कर ली और BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद साल 2019 में विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ एक बार फिर से बीजेपी ने वहां पर सरकार बनाई.

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू.

सत्ता पक्ष में फूट का सीधा फायदा उठाती है बीजेपी:कहते हैं जब-जब किसी राज्य में सत्ता पक्ष में फूट हुई है उसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ है. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक की बारी थी. साल 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में काफी बड़ा खेल देखने को मिला. 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 225 सीटों में से 105 सीटें मिली. 105 सीट के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी. BJP नेता बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ले ली, लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए और सरकार गिर गई.

ऐसे में कांग्रेस के पास सुनहरा अवसर था. अपने 78 विधायकों के साथ कांग्रेस ने दूसरे दल जेडीएस को मिलाया, जिसके पास 37 सीटें थी और राज्य में सरकार बना ली. लेकिन दो साल भी पूरे नहीं हुए थे कि कांग्रेस पार्टी में बगावती तेवर बाहर आने लगे. फिर 2019 में कांग्रेस के 14 विधायकों सहित तीन जेडीएस के विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया. अब कर्नाटक में बहुमत के हिसाब से बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी. लिहाजा एक बार फिर से बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और 106 विधायकों के साथ वो सरकार बनाकर सत्ता में काबिज हो गई. इसके बाद उपचुनाव हुए और उपचुनावों में भी बीजेपी ने बेहद शानदार प्रदर्शन किया और कर्नाटक में बीजेपी की सरकार अस्तित्व में आ गई.

कमलनाथ के साथ 'कमल' ने किया सबसे बड़ा खेला:साल 2018 में मध्य प्रदेश में भी कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी. 230 सीटों वाली इस विधानसभा में कांग्रेस के 114 विधायक जीत कर आए थे. बीजेपी के पास 109 विधायक थे. दोनों ही पार्टियां बहुमत से दूर थी, लेकिन कांग्रेस के पास सपा-बसपा के साथ कुछ अन्य निर्दलीयों का समर्थन भी था. ऐसे में कमलनाथ ने तमाम दलों को साथ में लेकर सरकार बना ली.
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कमलनाथ की सरकार चल ही रही थी कि अचानक से कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच टकराव पैदा हो गया. ये टकराव इतना बड़ा बन गया कि ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और साल 2020 में अपने 22 विधायकों के साथ उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली. हैरानी की बात ये थी कि 20 विधायकों में से 6 कमलनाथ सरकार में मंत्री भी थे. इसके बाद कमलनाथ की सरकार गिरी और बीजेपी की ओर से शिवराज सिंह चौहान ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. एक बार फिर से मध्य प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार बन गई. शायद यही कारण भी रहा कि मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में मदद करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्र में मंत्री भी बनाया गया.

गोवा की राजनीति में कांग्रेस को सबसे बड़ी पटखनी: साल 2017 किस को याद नहीं होगा, जब छोटे से राज्य गोवा में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी के खाते में 13 सीटें आई थीं. किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए 21 सीटों का आंकड़ा पार करना था. सत्ता की चाबी छोटे दलों और निर्दलियों के हाथ में थी. ऐसे में बीजेपी ने मनोहर पर्रिकर को आगे किया और राज्य में सरकार बनाने का दावा किया. कुछ और दलों के साथ बीजेपी ने वहां पर सरकार भी बना ली.

गोवा के पूर्व सीएम स्व0 मनोहर पर्रिकर.

गोवा में हैरान करने वाली बात ये भी थी कि कांग्रेस की सीटें बीजेपी से अधिक थी लेकिन कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता ही नहीं मिला. वहीं, जो जीएफपी पार्टी कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ रही थी उसने अंत समय में बीजेपी का साथ देकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा दी.

मणिपुर में कांग्रेस विधायक ने ही बीजेपी को बना दिया सबसे बड़ी पार्टी: साल 2017 में मणिपुर में भी कुछ ऐसा ही हुआ. यहां पर हुए चुनावों में बीजेपी बहुमत से काफी पीछे थी. मणिपुर में 60 विधानसभा सीटें हैं. बीजेपी के पास उस समय 21 सीटें थी जबकि कांग्रेस के पास 28 सीटें थी. लिहाजा कांग्रेस के पास सरकार बनाने का मौका था, लेकिन आखिरी समय में बीजेपी ने घेराबंदी शुरू कर दी और नेशनल पीपल्स पार्टी के 4 विधायकों ने उनको समर्थन दे दिया. बीजेपी को नागा पीपल्स फ्रंट के 4 विधायकों और लोजपा के एक विधायक ने समर्थन दिया. इस तरह से बीजेपी ने मणिपुर में भी सरकार बनाने का दावा पेश किया. मणिपुर में एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया. बाद में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने मणिपुर में भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. हैरानी की बात ये रही कि बीजेपी को समर्थन देने वालों में एक कांग्रेस का विधायक भी शामिल था.
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बिहार में नीतीश ने किया गठबंधन: बिहार में भी साल 2015 में बीजेपी को हराने के लिए गठबंधन करने के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इस महागठबंधन ने बिहार में बीजेपी को बुरी तरह से शिकस्त दी, लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार के साथ लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव की खटपट लगातार जारी रही. ऐसे में नीतीश कुमार ने गठबंधन का साथ छोड़ा और बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर राज्य में एक बार फिर से बीजेपी और जेडीयू की सरकार बना दी.

पीएम नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार.

यहां नहीं चला बीजेपी का प्लान: महाराष्ट्र में आज जो स्थिति है वो 2019 चुनाव के वक्त भी थी. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर 2019 को घोषित हुए थे. तब बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को साफ बहुमत मिला था. बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं. वहीं, NCP को 54 और कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन बीजेपी-शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर पेंच फंसा और दोनों अलग हो गए. इसके बाद शिवसेना ने शरद पवार की एससीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की, लेकिन इसके एक दिन बाद नाटकीय घटनाक्रम के बीच 23 नवंबर 2019 को ही सीएम के रूप में बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली. बीजेपी का दावा था कि उनको NCP का सहयोग है. यहां तक कि फडणवीस के साथ अजित पवार ने भी डिप्टी CM पद की शपथ ली.

विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे

तभी NCP प्रमुख शरद पवार ने किंगमेकर के रूप में एंट्री ली और पार्टी के विधायकों को अजित के साथ जाने से रोक लिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. बीजेपी को लगा कि वो बहुमत हासिल नहीं कर पाएंगे तो फडणवीस ने 72 घंटे में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अगले ही दिन उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली. यहां बीजेपी का गुणा गणित ऐसा था कि वो एनसीपी को तोड़कर सरकार बनाने की जुगत में थी, लेकिन वो फेल हो गई.

बाबा साहेब ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे.

देखा जाए तो 2016 में उत्तराखंड हो या 2019 में महाराष्ट्र यहां पर बीजेपी की वो रणनीति कामयाब नहीं हुई जो अन्य राज्यों में रही. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि फिर से महाराष्ट्र में हो रही उठापटक के बीच क्या बीजेपी इस दफा कामयाब हो जाएगी?

Last Updated :Jun 24, 2022, 2:37 PM IST

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