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वेस्ट यूपी में लोकदल की सक्रियता के क्या हैं सियासी मायने, राष्ट्रीय लोकदल पर इसका कितना पड़ेगा प्रभाव ?, पढ़िए डिटेल

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 10, 2023, 7:06 PM IST

हाल ही में हुए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद सियासी दलों ने तेजी से लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसी के साथ लोकदल की सक्रियता (West UP Lok Dal Activism) वेस्ट यूपी में बढ़ गई है, इसके कई सियासी मतलब भी निकाले जाने लगे हैं.

लोकसभा चुनाव को लेकर लोकदल की सक्रियता बढ़ गई है.
लोकसभा चुनाव को लेकर लोकदल की सक्रियता बढ़ गई है.

लोकसभा चुनाव को लेकर लोकदल की सक्रियता बढ़ गई है.

मेरठ :हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद सियासी दलों की निगाहें अब लोकसभा चुनाव पर हैं. यूपी की सियासत में पश्चिमी यूपी में लोकदल की सक्रियता अचानक से बढ़ गई है. इसकी चर्चाएं भी होनी शुरू हो गईं हैं. वेस्ट यूपी में किसानों की पार्टी के तौर पर स्थापित रालोद के गढ़ में लोकदल की इस सक्रियता के कई मायने भी निकाले जाने लगे हैं. क्या है इसका कारण, लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी ने क्या रणनीति बना रखी है, इन सवालों ने नई बहस छेड़ दी है.

लोकसभा चुनाव बेहद नजदीक है. तमाम दल अपने-अपने स्तर से अपनी-अपनी पावर बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे हैं. वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोकदल सक्रिय दिखाई दे रहा है. आमतौर पर यूपी वेस्ट में राष्ट्रीय लोकदल की पैठ किसानों में मानी जाती है, लेकिन ऐसे में अब लोकदल की सक्रियता भी यहां दिखने लगी है. राष्ट्रीय लोकदल और लोकदल दोनों ही पार्टियां अलग हैं. पिछले माह से वेस्ट यूपी की राजनीति का केंद्रबिंदु माने जाने वाले मेरठ में सड़कों पर लोकदल के होर्डिंग लगाए गए हैं. प्रमुख चौक चौराहों पर भी लोकदल के चुनाव चिन्ह (आगे बैल पीछे किसान) को दर्शाते हुए झंडे लगाए गए. एक कार्यक्रम भी हुआ. इसमें पार्टी के कई नेता शामिल हुए. इतना ही नहीं कुछ नए चेहरों को भी बड़े-बड़े पदों पर इस दल में जिम्मेदारी मिली.

कभी रहे थे रालोद में अब लोकदल दे रही पद :कभी रालोद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले कुछ नेताओं ने भी लोकदल में जाकर सभी को हैरान कर दिया है. लोकदल के पश्चिमी यूपी के प्रभारी बनाए गए गजेंद्र सिंह नीलकंठ कहते हैं कि लोकदल किसानों, कामगारों के हितों के लिए जनता के बीच जाएगी और उन्हीं के लिए पार्टी अब सक्रिय होकर प्रदेशभर में एक्टिव हो रही है. वह कहते हैं कि लोकदल पुरानी पार्टी है. चौधरी चरण सिंह ने जो सपना देखा था कि हिन्दुस्तान की समृद्धि का रास्ता खेत और खलियानों से होकर जाता है, किसान की एक नजर खेत में होनी चाहिए और एक नजर दिल्ली पर होनी चाहिए. उसी सपने को साकार करने के लिए लोकदल का प्रदेश भर में विस्तार किया जा रहा है. प्रदेश में सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य लेकर पार्टी चल रही है.

लोकदल इन मुद्दों को उठा रही :लोकदल नेता गजेंद्र सिंह नीलकंठ बताते हैं कि लोकदल की मुख्यतः तीन मांगें हैं. एमएसपी नहीं तो वोट नहीं, किसानों का गन्ना मिल पर पहुंचते ही हाथोंहाथ पेमेंट होना चाहिए, किसान जब ट्रैक्टर लेने जाते हैं तो जमीन गिरवी रखी जाती है, पार्टी इसके विरोध में है. बकौल गजेंद्र पार्टी पुरानी है. चौधरी चरण सिंह के हम फॉलोअर हैं. पार्टी तेजी से विस्तार कर रही है. किसानों के सम्मान में लोकदल मैदान में आई है. वहीं राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान लोकदल की सक्रियता पर तंज कसते नजर आए. कहा कि रालोद सदैव किसान, वंचित बेरोजगार युवाओं के मुद्दे पर सक्रिय रही है. रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने हर वर्ग के मुद्दों पर सवाल उठाने का काम किया है. हम तो एक ही लोकदल को जानते हैं, वह है राष्ट्रीय लोकदल.

रालोद नेताओं का दावा, लोकदल से नहीं पड़ेगा कोई फर्क :रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ कहते हैं कि देश के पीएम रहे चौधरी चरण सिंह के द्वारा लोकदल की स्थापना की थी. षड्यंत्र के तहत उस पार्टी के मुखिया कोई और हो गए. उस लोकदल को लोकदल सुनील सिंह कह सकते हैं. सुनील सिंह शिक्षा उद्यमी हैं. उन्होंने लोगों को मुफ्त शिक्षा देने का काम तो किया नहीं है. वह कहते हैं कि जब हम भारतीय जनता पार्टी से नहीं घबराए तो इनसे क्या फर्क पड़ेगा. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि लोकदल और राष्ट्रीय लोकदल का शाब्दिक अर्थ अलग-अलग समझ सकते हैं. लोकदल को खासतौर पर वेस्ट यूपी में लोग चौधरी चरण सिंह, चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी से जोड़कर मानकर चलते हैं. काफी समय से सुनील सिंह लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. लोकदल की कोई पहचान नहीं है. वेस्ट यूपी में लोग लोकदल का नाम सुनते हैं तो उनके जेहन में सिर्फ अजित सिंह, जयंत चौधरी आते हैं.

लोकदल के नेताओं को मिल रही तवज्जो :सादाब रिजवी ने कहा कि पिछले दिनों से देखा जा रहा है कि वेस्ट यूपी में इस दल की सक्रियता बढ़ी है. जिस तरह से प्रदेश में छोटी-छोटी पार्टियां हैं, अगर उनके लीडर्स कहीं जाते हैं तो प्रशासन की तरफ से कोई खास तवज्जो नहीं मिलती है. ऐसे दलों के लिए सर्किट हाउस में जगह नहीं मिल पाती है मीटिंग के लिए. पिछले दिनों मेरठ में नवंबर माह में जो देखने को मिला था, वह वाकई हैरान करने वाला था.

अमिताभ ठाकुर को सर्किट हाउस में प्रवेश से रोक दिया गया था :गौरतलब है कि पिछले माह आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को मेरठ प्रशासन ने सर्किट हाउस में प्रेस कांन्फ्रेंस तक नहीं करने दी थी, जबकि लोकदल जिसका कुछ माह पूर्व तक पश्चिमी यूपी में कोई नाम लेने वाला भी नहीं था, अचानक से उसके नेताओं के लिए सर्किट हाउस तक के दरवाजे खुलने लगे.


किसानों को लुभाने की कोशिश में लोकदल :बता दें कि पश्चिमी यूपी में सबसे बड़े मेले के तौर पर कार्तिक मेले की अपनी अलग पहचान है. गंगा के खादर क्षेत्र में हापुड़ जिले में लगने वाले मेले में लगभग 20 से 25 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं, इस बार इस मेले में सर्वाधिक प्रचार लोकदल का हुआ. बता दें कि यह ऐसा मेला है जिसमें सबसे ज्यादा किसान एकत्र होते हैं. गंगा के खादर में लोकदल ने पार्टी का खूब प्रचार किया. झंडे तक बांटे गए. गंगा किनारे पार्टी ने शिविर लगाकर लोगों के लिए भोजन की भी व्यवस्था कराई. 10 दिसंबर को लोकदल ने दिल्ली से बिजनौर तक ट्रैक्टर ट्रॉलियों के साथ रैली निकाली.

सादाब रिजवी कहते हैं कि प्रदेश में बीजेपी की तरफ राष्ट्रीय लोकदल को साथ लाने की कोशिश की जा चुकी है, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. जब से किसान आंदोलन चला उसके बाद से रालोद की पावर भी लगातार बढ़ रही है. 2022 में पार्टी जीरो से वेस्ट यूपी में काफी मजबूत हुई है. पश्चिमी यूपी में बीजेपी के ग्राफ में गिरावट दिखी तो ऐसा माना जाता है कि यह रालोद की वजह से ही हुआ है.सादाब रिजवी कहते हैं कि रालोद का गठबंधन यूपी में सपा से है.

पुरानी पार्टी को नए रूप में किया जा रहा पेश :सादाब बताते हैं कि कहीं न कहीं जाट समाज, किसान समाज और कामगार समाज को जोड़ने के लिए पुरानी पार्टी लोकदल को एक नए रूप में पेश किया जा रहा है. राजनीतिक लाभ पाने के लिए सत्ताधारी दल चौधरी जयंत सिंह की रालोद में सेंध मारने की कोशिश कर सकती है. काफी लम्बे समय से लोकदल भी है लेकिन यह पार्टी कभी सक्रिय नहीं रहती है. आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह कयास लगाए जा सकते हैं कि लोकदल को सत्ता की तरफ से कुछ सहारा मिला है. हालांकि लोकदल की सक्रियता से राष्ट्रीय लोकदल के नेता या उनकी पार्टी पर कोई प्रभाव पड़ेगा. लोकदल में कोई ऐसा बड़ा चेहरा भी नहीं है.

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