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चुनाव अभियान के बीच लखनऊ की सीटों पर सपा के बागियों ने भरी हुंकार

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Published : Feb 3, 2022, 11:02 PM IST

आज यानी गुरुवार को सिराथू में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रामलला का जिक्र कर उन नेताओं पर निशाना साधा जो मंदिरों में दर्शन-पूजन कर खुद को हिंदुओं का हिमायती बताना चाहते हैं. वहीं समाजवादी पार्टी एक ऐसा दल है, जहां टिकट वितरण में सबसे ज्यादा बगावत देखने को मिल रही है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए यह असंतोष रोक पाना सबसे बड़ी चुनौती है. यहां देखिए आज की बड़ी खबरें एक नजर में.

आज का घटनाक्रम
आज का घटनाक्रम

लखनऊ: पहले चरण के मतदान में अब एक सप्ताह शेष है. जैसे-जैसे मतदान की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, वैसे-वैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी घमासान अपने चरम पर पहुंच रहा है. आज गृहमंत्री अमित शाह, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल से प्रमुख जयंत चौधरी बुलंदशहर में मतदाताओं को लुभाने जुटे हैं. भाजपा के प्रदेश प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान व भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कौशांबी की सिराथू सीट पर सभा कर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लिए वोट मांगे. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. कांग्रेस की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने भी प्रचार अभियान में अपनी ताकत झोंकी. इन गतिविधियों के बीच राजधानी की दो सीटों पर समाजवादी पार्टी के बागी सामने आए और विरोध में चुनाव लड़ने का फैसला किया.

सिराथू में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रामलला का जिक्र कर उन नेताओं पर निशाना साधा जो मंदिरों में दर्शन-पूजन कर खुद को हिंदुओं का हिमायती बताना चाहते हैं. दरअसल भाजपा के प्रचार अभियान में हिंदुत्व और धार्मिक पर्यटन स्थलों का जिक्र जरूर होता है. पार्टी को लगता है कि यही वह मुद्दा है, जो उसे दोबारा सत्ता शीर्ष पर पहुंचा सकता है. इस चुनाव में विकास की बातें बेहद सीमित हैं. विपक्षी दल भी विकास से इतर बेटियों की सुरक्षा और सरकार की मनमानी के मुद्दे उठाते हैं. बुलंदशहर में अखिलेश यादव ने कहा कि इस सरकार में बेटियां सुरक्षित नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सपा सरकार आने पर युवाओं, किसानों और महिलाओं समेत हर वर्ग का ध्यान रखने वाली नीतियां बनाई जाएंगी. दरअसल चुनाव के आरंभ से भी भाजपा ने इस तरह का माहौल बना दिया था कि विकास के बजाय अन्य विषयों पर ही चुनावी अभियान चल पड़ा है.

अब बात सपा में टिकट वितरण को लेकर असंतोष की. राजधानी लखनऊ की सरोजनी नगर सीट से समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे शारदा प्रताप शुक्ला ने निर्दलीय नामांकन कर दिया है. शुक्ला प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. शुक्ला को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन सपा ने इस सीट से पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा को अपना प्रत्याशी बनाया है. यहां से भाजपा ने प्रवर्तन निदेशालय में निदेशक रहे राजेश्वर सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है. इसी प्रकार मलिहाबाद सीट से टिकट न मिलने से आहत सपा नेता और पूर्व विधायक इंदल कुमार रावत में पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा है. अब कांग्रेस पार्टी ने उन्हें इस सीट से उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से सपा ने सोनू कनौजिया को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भारतीय जनता पार्टी से इस सीट पर केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर की पत्नी चुनाव लड़ रही हैं. वह इस सीट से मौजूदा विधायक भी हैं.

यह दोनों सीटें तो सिर्फ बानगी हैं. इस बार प्रमुख दलों में समाजवादी पार्टी एक ऐसा दल है, जहां सबसे ज्यादा बगावत देखने को मिल रही है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए यह असंतोष रोक पाना सबसे बड़ी चुनौती है. यदि वह पार्टी के कार्यकर्ताओं का असंतोष रोक पाने में नाकाम रहे तो निश्चय ही पार्टी के अरमानों पर पानी फिर सकता है. बाहर से सपा में आने वालों और सहयोगी दलों के उम्मीदवारों का समायोजन सपा के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है. जो सीटें सहयोगी दलों अथवा बाहर से आए नेताओं के खातों में चली गई हैं, उन सीटों पर ही सबसे ज्यादा असंतोष दिखाई दे रहा है.

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इस बीच कांग्रेस पार्टी में भी असंतोष की खबरें सामने आई हैं. कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी मुख्यालय पर प्रदर्शन किया. नेताओं का कहना है कि तमाम सीटों पर विपरीत परिस्थिति में पार्टी के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं की जगह एकदम नए प्रत्याशियों को प्रत्याशी बनाया गया है. चालीस फीसद महिलाओं को मैदान में उतारने की घोषणा का भी नुकसान हुआ है. नेताओं की यह बात तर्कसंगत प्रतीत होती है. बिना जमीन वाले नेताओं को प्रत्याशी बनाने से पार्टी को कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. दलों की अहमियत तो सीटें जीतने से ही तय होती है और रणनीतिकारों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया. स्वाभाविक है कि इस चुनाव के बाद आने वाले परिणामों की समीक्षा कर पार्टी को कड़े कदम उठाने होंगे. यदि ऐसा नहीं हुआ तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी खड़ी नहीं हो पाएगी.


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