अजमेर. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 811वें उर्स के मौके पर देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में मलंग अजमेर पहुंचे हैं. यहां 811 वर्ष पहले ख्वाजा गरीब नवाज के पसंदीदा खलीफा (शिष्य) कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ने दरगाह में परचम लाने की परंपरा शुरू की थी. यह मलंग आज भी उस परंपरा को निभा रहे हैं. रविवार को सैंकड़ों मलंग ने छड़ी का जुलूस निकालकर ख्वाजा गरीब नवाज के प्रति अपनी आस्था प्रकट की.
दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी से हजारों मलंगों का जत्था शनिवार शाम को अजमेर पहुंचा. रविवार को ऋषि घाटी स्थित ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले से हजारों मलंग हाथों में परचम लेकर दरगाह के लिए जुलूस के रूप में रवाना हुए. मार्ग में कई जगह पर शहर के लोगों ने मलंगों का फूलों की वर्षा कर इस्तकबाल किया. इस दौरान मलंगों ने अपने हैरतअंगेज करतब भी दिखाए. किसी मलंग ने तीखे सरिए को अपनी आंखों में डाला तो किसी ने अपने शरीर को सरियों से छेद दिया. गंज से देहली गेट, दरगाह बाजार होते हुए मलंगों का जुलूस दरगाह के निजाम गेट पहुंचा. अपने साथ महरौली से छड़ी लेकर आए मलंगों ने दरगाह में छड़ी पेश कर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हाजरी लगाई.
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25 दिन पहले महरौली से होते हैं रवाना :मलंगों ने बताया कि देश के कोने-कोने से ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वाले मलंग उर्स से 25 दिन पहले महरौली में एकत्रित होते हैं. वहां से हक मोइन या मोइन, दम मदार बेड़ा पार के नारे लगाते हुए हाथों में परचम थामे पैदल अजमेर दरगाह के लिए रवाना होते हैं. बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज के खलीफा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी सबसे पहले परचम लेकर दरगाह आया करते थे. इस परंपरा को मलंग आज भी पूरी शिद्दत के साथ उसी अंदाज में निभा रहे हैं.
खास बात यह है कि मलंगों के जत्थे में शामिल लोग विभिन्न धर्मों से जुड़े हुए हैं. ये ख्वाजा गरीब नवाज की आस्था की डोर से हर साल अजमेर आते हैं. परचम के साथ कई मलंग तिरंगा झंडा लेकर भी जत्थे में शामिल हुए. मलंगों का मानना है कि ख्वाजा गरीब नवाज ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया. दुनिया को मोहब्बत और भाईचारे का संदेश दिया. इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म बताया. वह सफर में गरीब नवाज की इन्हीं शिक्षाओं का संदेश भी देते हैं.