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SPECIAL: डॉक्टर, इंजीनियर बनने का सपना देख रहे बच्चे बोले- 'हम कन्फ्यूज हैं'

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Published : Jul 2, 2020, 11:07 PM IST

कोटा में JEE और NEET का क्रैश कोर्स करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या हजारों में है. बड़ी उम्मीद के साथ स्टूडेंट्स यहां आते हैं. कड़ी मेहनत के बाद वो सिलेक्ट भी हो जाते हैं. लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते स्टूडेंट्स की पढ़ाई में व्यवधान आया है. दिक्कत ये है कि बच्चों के डाउट्स भी क्लियर नहीं हो पाए. देखें स्पेशल रिपोर्ट...

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JEE और NEET के विद्यार्थियों का नहीं क्लियर हो रहा डाउट

कोटा.जिलेमें पूरे देश भर से करीब दो लाख बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए आते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के संकट काल में अधिकांश बच्चे यहां से अपने घर चले गए हैं. अब यह सब बच्चे अपने घर पर हैं. अधिकांश स्टूडेंट ऐसे भी होते हैं, जो कोटा में क्रैश कोर्स करने ही आते हैं.

JEE और NEET के विद्यार्थियों का नहीं क्लियर हो रहा डाउट, देखें रिपोर्ट

जिसके जरिए वे सिलेक्ट भी हो जाते हैं, लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते यह भी नहीं हो पाया. इन सभी बच्चों के सामने अब डाउट क्लियर करने की भी समस्या आ रही है. हालांकि सभी कोचिंग संस्थान ऑनलाइन क्लासेज के जरिए बच्चों को डाउट क्लियर करवा रहे हैं, लेकिन कई स्टूडेंट्स का कहना है कि उनके डाउट क्लियर नहीं हो पाते हैं. वहीं, अब जेईई और नीट के परीक्षा की तारीख पास आ गई है. पूरे देश भर में करीब 11 लाख बच्चे ऑनलाइन होने वाली जेईई मेंस की परीक्षा में बैठेंगे. इसके साथ ही करीब 15 लाख बच्चे नीट एग्जाम को देंगे.

करोड़ों रुपए की होती है आय

एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा का कहना है कि करीब 1 से 2 हजार बच्चे कोटा में क्रैश कोर्स की तैयारी करने दूसरे राज्य या शहरों से आते हैं. यह बच्चे ब्रांड एंबेसडर भी बन जाते हैं, क्योंकि पढ़ाई के माहौल में कोटा की जानकारी वे वहां जाकर देते हैं. देव शर्मा के अनुसार करीब 20 से 22 हजार रुपए क्रैश कोर्स की फीस होती है, जिससे करोड़ों की आय होती है.

स्टूडेंट्स को इस से ज्यादा फायदा तो नहीं मिलता है, लेकिन वह यह समझ जाते हैं कि उन्हें मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश के लिए कितनी मेहनत और पढ़ाई करनी होगी. ऐसे में वे अपने भाई या परिचित को भी यह बात बता देते हैं और जो साल भर चलने वाले कोर्स में प्रवेश भी लेते हैं.

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फाइनल टच को बूस्ट करने में मददगार है क्रैश कोर्स

कोटा के करियर काउंसलर अमित आहूजा का कहना है कि क्लास के अंदर टीचर और स्टूडेंट का वन टू वन इंटरेक्शन होता है. इस दौरान डिस्कशन से स्टूडेंट अपने डाउट्स भी सॉल्व करता है. अब बच्चा घर पर आइसोलेट है, बाहर नहीं आ सकता हैं और क्लास नहीं हो रही है. ऐसे में बच्चे को ही पढ़ाई का एनवायरमेंट खुद बनाना होता है. अपना शेड्यूल उसे ही मैनेज करना है.

इस कारण अंतर आ रहा है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर क्लासेस दी गई है. टेस्ट भी हुए हैं, क्रैश कोर्स भी करवाए गए हैं, लेकिन जो रेगुलर क्लासरूम स्टडी से बच्चों की पढ़ाई में रिदम आता था, वह नहीं हो पा रहा है. क्रैश कोर्स के जरिए भी स्टूडेंट साल भर की पढ़ाई अच्छी हुई है, तो उसे फाइनल टच और बूस्ट देते हैं. लेकिन ऑनलाइन मोड में बच्चा प्रॉपर तरीके से इंटरेक्शन टीचर से नहीं कर पा रहा है.

घर पर नहीं बनता है टेस्ट का माहौल

कोटा में रहकर आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही बिहार निवासी अंजलि का कहना है कि फिजिक्स या फिर मैथ्स के कई प्रश्न सॉल्व करने में दिक्कत होती है. उसमें डिटेल में जाने पर ही क्लियर हो पाता है, जो मैं खुद नहीं कर पाती हूं. साथ ही कोचिंग संस्थान जो टेस्ट लेता था, वह घर पर हमें प्रश्न पत्र भेजकर करवाया जा रहा है, लेकिन माइंडसेट वैसा नहीं होता है. इससे पढ़ाई थोड़ी डिस्टर्ब है.

डाउट क्लासेज और काउंटर भी नहीं लग रहे

भोपाल की रितिका पटेल का कहना है कि वह नीट की तैयारी कर रही हैं. एग्जाम के पहले कोचिंग सेंटर में डाउट क्लासेस और काउंटर संचालित किए जाते थे, जहां पर जाकर वे डाउट्स को क्लियर कर लेते थे. कुछ एप्स भी इसके हैं, लेकिन कई बार एप्स के जरिए भी डाउट क्लियर नहीं हो पाते हैं. टीचर्स फोन पर उन्हें सॉल्यूशन देते हैं, लेकिन उसके बावजूद डाउट क्लियर नहीं होता. कई बार ऐसा होता है कि टीचर के सामने बैठकर प्रश्न को हल करवाया जा सकता है. लेकिन यह फैसिलिटी नहीं होने से परेशानी हो रही है.

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'ऑनलाइन क्रैश कोर्स में कुछ समझ नहीं आता'

झारखंड की पल्लवी का कहना है कि क्रैश कोर्स उसने कुछ दिन किया, लेकिन ऑनलाइन होने के चलते समझ नहीं आया. कम समय में ज्यादा पढ़ाई वहां पर करवाई जाती है. ऐसे में स्पीडली ऑनलाइन पढ़ा दिया जाता है. जिससे समझने में काफी दिक्कत होती है. कोर्स भी बहुत आगे चल रहा था, ऐसे में मुझे बीच में ही क्रैश कोर्स भी छोड़ना पड़ा है. पढ़ाई में भी काफी प्रॉब्लम हो रही है. वहीं, कोरोना महामारी के चलते फालतू की बातें दिमाग में आती हैं.

क्रैश कोर्स होता तो फायदा मिलता, शुरू ही नहीं हुआ

छात्र बताते हैं कि रेगुलर क्लास चलने से हमारा शेड्यूल बना रहता है. उसके बाद चार से 5 घंटे सेल्फ स्टडी भी हो जाती है. क्लासेज नहीं होने के चलते एक कमरे में अकेले ही बैठे रहते हैं. कभी-कभी मन नहीं लगता है, तो पढ़ाई नहीं हो पाती है. टाइम का पूरा यूटिलाइज नहीं कर पा रहे हैं. हमारा क्रैश कोर्स भी हो जाता, तो हमें इसका फायदा ही होता. अकेले पढ़ तो लेते हैं, लेकिन टाइम मैनेजमेंट नहीं बैठ पा रहा है.

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