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खेतों में जला रहे कृषि अवशेष: लाखों का मिल रहा अनुदान, फिर भी क्यों नहीं लेना चाह रहे किसान...

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Published : Apr 23, 2022, 9:20 AM IST

Farmers Engaged in illegal stubble burning in Kota

कोटा में कई किसान खेतों में गुपचुप तरीके से पराली को जला देते हैं, जबकि इस पराली जलाने की परंपरा (Air Pollution due to Stubble Burning) को खत्म करने के लिए कृषि विभाग किसानों को लाखों रुपए का अनुदान दे रहा है. जिनमें किसानों को रीपर, स्ट्रॉ रीपर और रोटावेटर उपलब्ध करवाया जाता है. हजारों की संख्या में किसान कोटा जिले में है, लेकिन इनमें से महज 215 किसानों ने ही बीते 2 सालों में अनुदान पर ये उपकरण लिए हैं.

कोटा.रबी के सीजन के अंत में फसलों की कटाई लगभग मार्च महीने में हो जाती है. अप्रैल में इन्हें बाजार में बेचने का क्रम शुरू हो जाता है. इसी माह में खेतों में फसल के अवशेषों यानी की पराली जलाने का भी कार्य किया जाता है, जिन पर वायु प्रदूषण के चलते रोक लगाई हुई है. इसके बावजूद भी कई किसान खेतों में गुपचुप तरीके से पराली को जला देते हैं, जबकि इस पराली जलाने की परंपरा को खत्म करने के लिए ही कृषि विभाग किसानों को लाखों रुपए का अनुदान दे रहा है.

जिनमें रीपर, स्ट्रॉ रीपर और रोटावेटर उपलब्ध करवाया जाता है. कोटा जिले में हजारों की संख्या में किसान हैं, लेकिन इनमें से (Stubble buring in kota) महज 215 किसानों ने ही बीते 2 सालों में अनुदान पर उपकरण लिया है. हालांकि किसानों (Measures to stop Stubble Burning by Farmers) का कहना है कि इसके लिए लंबी प्रक्रिया होती है और कई महीने लग जाते हैं. बजट नहीं होने के चलते कई बार उन्हें अनुदान पर भी कृषि यंत्र नहीं मिलते हैं.

कृषि विभाग से लाखों का अनुदान मिलने के बाद भी पराली जलाने की समस्या बरकरार

हजारों रुपए का मिल रहा अनुदान:खेत में खड़े हुए कृषि अवशेषों को तुरंत चारे में तब्दील कर देने वाले स्ट्रॉ रीपर और रीपर में भी किसानों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है. बीते दो सालों में रीपर केवल 8 किसानों ने अनुदान पर लिए हैं. जिनमें 2021 और 2022 में 4-4 ही रीपर लिए गए थे. जबकि स्ट्रॉ रीपर पर किसानों ने थोड़ी ज्यादा रुचि दिखाते हुए, 2021 में 35 स्ट्रॉ रीपर लिए थे. वहीं 2022 में महज 10 स्ट्रॉ रीपर लिए गए हैं. 2 सालों में 45 किसानों ने स्ट्रॉ रीपर लिए हैं, जो खेत मे ही वैज्ञानिक तकनीक से कृषि अवशेष को पशुओं के चारे में तब्दील कर देती है. इसके अलावा कृषि विभाग रोटावेटर पर भी सब्सिडी देता है. ये रोटावेटर जमीन पर बचे हुए कृषि के अवशेषों को मिट्टी में मिलाने का काम करता है.

बीते 2 सालों में केवल 162 रोटावेटर (2021 में 112 और 2022 में 50 रोटावेटर) ही जिले के किसानों ने सब्सिडी (Air Pollution due to Stubble Burning) पर लिए हैं. अनुदान की बात की जाए तो रीपर की लागत जहां पर 70 हजार है, इसका 40 फीसदी अधिकतम 30 हजार का अनुदान मिल रहा है. वहीं रोटावेटर पर जहां पर 40 फीसदी यानी 35 हजार तक अनुदान मिल रहा है. इसकी लागत एक लाख बताई जा रही है. इसी तरह 3 लाख रुपए लागत वाले स्ट्रॉ रीपर पर एक लाख 5 हजार का अनुदान है. हालांकि एससी, एसटी और महिला कैटेगरी के अनुसार ये सब्सिडी बढ़ जाती है.

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हजारों की लेबर से छुटकारा:कोटा जिले के रोटेदा गांव के किसान रामप्रताप कहते हैं कि पहले (Farmers Engaged in illegal stubble burning in Kota) फसल कटाई के लिए मजदूर लगाए जाते थे. एक दिन में 50 मजदूर लगते थे. इसके बाद फसल को सुखाया जाता था. बाद में गेहूं की फसल को थ्रेसर से निकालना पड़ता था. उसमें भी 10 मजदूर लगते थे. थ्रेसर से निकालने में 10 बीघा गेहूं में पूरी रात लग जाती थी. लेकिन अब 1 घंटे में 10 बीघा गेहूं कट जाते हैं, और आधे घंटे में ही ट्रॉली को भर दिया जाता है. ये भी कुछ मिनट में खाली हो जाती है. बचे हुए खेत के अवशेष को स्ट्रॉ रीपर से चारे में तब्दील कर दिया जाता है. जिसमें ज्यादा समय नहीं लगता है.

अवशेष जलाने से भूसे का हो रहा नुकसान:कुछ किसानों का मानना है कि खेत में कृषि अवशेषों को जलाने से जानवरों के का नुकसान हो रहा है. अभी सीजन में तो चारा नजर आ रहा है, लेकिन आने वाले समय में चारे की समस्या आ जाएगी. बीते साल भी चारे की समस्या का सामना करना पड़ा था. ऐसे में जानवरों का आधा भूखा रखकर भी पालना पड़ता है. हालांकि फिर भी कुछ किसान पराली जला रहे हैं. क्योंकि चारे को निकालने में भी काफी मेहनत लग जाती है और उनके पास उपकरण नहीं हैं.

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नहीं खत्म होती जमीन की उत्पादकता: कृषि अधिकारी सत्य प्रकाश मीणा का कहना है कि मशीन से फायदा है कि किसान कंबाइंड हार्वेस्टर से स्टडी पर से भूसा बनाते थे. पशु से चारा मिल जाता है और जलाने की समस्याओं से निजात मिल जाती है. खेत में कृषि अवशेष जलाने से फसलों को फायदा पहुंचाने वाले कीड़े मर जाते हैं, और वायु प्रदूषण भी होता है. पशुओं के लिए चारा भी नहीं बचता. ये प्रदूषण भी आसपास के इलाकों में फैलाता है. कई अलग-अलग स्कीम के जरिए किसानों को कृषि यंत्र के लिए अनुदान भी दिए जा रहे हैं. जिनमें प्राथमिकता और बजट के अनुसार सब्सिडी दी जाती है.

फसल अवशेष जलाने पर लग रहा जुर्माना:वायु प्रदूषण के चलते फसल के अवशेष को खेतों में जलाने पर रोक लगाई गई है. लेकिन कुछ किसान फिर भी ऐसा कर रहे हैं, उन पर जुर्माना भी लगाया जाता है. कनवास के एसडीएम राजेश डागा ने जिले के धुले गांव में गेहूं की फसल कटाने के बाद नौलाई में आग लगा दी थी. इसकी जानकारी मिलने पर एसडीएम डागा किसान बाबू लाल बैरवा पर 2500 रुपए का जुर्माना लगाया है. ये कार्रवाई प्रदुषण नियन्त्रण एवं रोकथाम अधिनियम के तहत की गई है. एसडीएम राजेश डागा ने बताया कि राज्य सरकार के नियमों के अनुसार 2 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों पर 2500, दो से 5 एकड़ तक पांच हजार और 5 एकड़ से अधिक जमीन वाले किसानों पर 15 हजार रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान है. कृषि अवशेष जलाने की रोकथाम के लिए ग्राम विकास अधिकारियों, कृषि पर्यवेक्षकों, बीट कॉन्स्टेबल और पटवारियों को निर्देशित किया हुआ है.

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