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राजस्थान में सियासी घमासान के पहले अध्याय पर विराम..अगले पड़ाव में और मुश्किल से गुजरेगी प्रदेश कांग्रेस

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Published : Nov 21, 2021, 8:23 PM IST

Updated : Nov 22, 2021, 2:59 PM IST

राजभवन में रविवार को नए मंत्रियों की शपथ के बाद राजस्थान कांग्रेस के बीच डेढ़ साल से जारी बवाल का खात्मा ऊपरी तौर पर दिख रहा है. लेकिन अब भी इस मसले के बीच सियासी खींचतान की गुंजाइश को राजनीति के जानकार तलाश रहे हैं. पढ़िए ब्यूरो प्रमुख अश्निनी पारीक की ये खास रिपोर्ट...

Challenges after cabinet reorganization in Rajasthan
Challenges after cabinet reorganization in Rajasthan

जयपुर. नेताओं के बयानों से परे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दफ्तर पर आयोजित स्वागत कार्यक्रम में पार्टी के प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने अपनी बात के बीच उठापटक की शंका को भाप लिया. लिहाजा उन्होंने रघु शर्मा, हरीश चौधरी और गोविंद डोटासरा की तर्ज पर आगे भी मंत्रियों की संगठन में शिफ्टिंग की बात कहीं और विस्तार के लिये गुंजाइश छोड़ दी.

जाहिर है कि ये पहली दफा है कि जब दूसरे विस्तार में ही सरकार के लिये मंत्रिमंडल की शत प्रतिशत कुर्सियां बुक कर ली गई है. मतलब जाति, क्षेत्र और वादों के समीकरण पूरे करने के बावजूद कांग्रेस की अंदरूनी सियासी रूपी ज्वालामुखी में लावा भीतर ही सुलग रहा है.

गहलोत-पायलट के बयान के मायने

शपथ ग्रहण समारोह के बाद मीडिया के सामने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि कैबिनेट अच्छे से बन गई है. जिसमें अनुसूचित जाति-जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक चेहरों को साथ लाने की कोशिश की गई है. गहलोत ने उम्मीद जताई कि विशेष परिस्थितियों में मंत्रिमंडल रिशफल हुआ है, लेकिन अब सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है. एक साथ मिलकर सरकार के जनता की अपेक्षाओं को पूरा करेगी.

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मतलब हालात के बीच ठीक-ठाक ही हुआ है. वहीं जब ईटीवी भारत ने सचिन पायलट से बात की थी, तो उन्होंने सरकार के कुनबे में विस्तार की कवायद को शुरुआत बताया था. लिहाजा ये भी साफ है कि उनकी नजर में अभी मसलों को सुलझाने के लिये दिल्ली का रास्ता कई बार नापना पड़ सकता है. इस सूरत में एक इनकार फिर से तकरार खड़ी कर सकता है.

नियुक्तियों के आसरे नेता

राजस्थान की मौजूदा परिस्थितियों में पहली दफा विधायक चुनकर आये नेताओं के चेहरे पर ताजा मंत्रिमंडल विस्तार की कसरत में निराशा ही नजर आई. अब ऐसे नेताओं को राजनीतिक नियुक्तियों में तवज्जो मिलने की आस है. लेकिन ये ख्वाहिश भी मुश्किल ही है. माना जा रहा है कि संगठन में भी अलग-अलग गुट के नेता है और चुनाव की वैतरणी को पार करने के लिये बिना इन नेताओं को खुश किये मिशन 2023 का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है.

इसलिये विधायकों से पहले संगठन में शामिल नेताओं को मलाईदार बोर्ड और नियुक्तियों में नवाजा जाएगा. एमएलए ऐसे हालात में संसदीय सचिव पद की आस में हैं, जिसका राजनीतिक धरातल पर वजूद तो नहीं है. लेकिन अहम की संतुष्टि के लिये फिलहाल ये पद भी काफी नेताओं की नजर में है.

मुख्यमंत्री के सलाहकार विधायक

सियासी हलकों में रविवार की सुबह सुलह के फॉर्मूले के बीच की चर्चाओं में एक नई नियुक्ति काफी लोगों की जुबान पर रही. मसला था कि कुछ विधायकों को मुख्यमंत्री के सलाहकार मंडल में शामिल किया जाएगा. ताकि बगावत के वक्त उनकी वफा को अब इनाम दिया जाये. जाहिर है कि निर्दलीय विधायकों की लंबी फौज, गैर कांग्रेसी दलों से आने वाले विधायकों का साथ और बहुजन समाज पार्टी के हाथी को छोड़कर हाथ थामने वाले विधायकों को सम्मान मिल सके. फिलहाल प्रस्तावित इस दल में सात विधायकों के बीच अपनी जगह तलाशने के लिये माननीय सदस्यों के बीच एक स्पर्धा देखी जा रही है.

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मिशन 2023 का लक्ष्य

आज के हालात में अगर कांग्रेस नेताओं की नजर में राजस्थान के नजरिये से कोई बात एक सीध में दिखाई पड़ती है तो वह है साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में एक-एक बार बीजेपी-कांग्रेस के बीच सत्ता के हस्तांतरण की रवायत को तोड़ने का लक्ष्य. प्रभारी अजय माकन, सीएम अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट से लेकर मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह तक सभी इस बयान को कई बार मीडिया में साझा कर चुके हैं.

रविवार के विस्तार को इसी अभ्यास का हिस्सा समझा जा रहा है. ऐसे में असंतोष के बिना आगे बढ़ने के लिये ऑल इज वैल का मैसेज जरूरी है. आलाकमान की नजर में बेहतर काम का आकलन जरूरी है. जरूरी है कि जनता की नजर में उनकी सरकार अपनी उलझन से निकलकर अवाम के मसलों को सुलझाये. ऐसा तभी होगा, जब अंतर्विरोध खत्म होंगे. जानकार मानते हैं कि राजस्थान का मौजूदा मंत्रिमंडल विस्तार फिलहाल यहीं सकेत दे रहा है कि संदेश देने के बाद शर्तों पर अमल की कवायद को परवान पहुंचाया जाये.

- अश्निनी पारीक , ब्यूरो प्रमुख

Last Updated :Nov 22, 2021, 2:59 PM IST

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