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14 जनवरी के दिन सीहोर में हुआ था जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार, शहीदों की समाधि स्थल पहुंचकर लोगों ने किया याद

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 14, 2024, 3:29 PM IST

Jallianwala Bagh Like Massacre in Sehore: अंग्रेजी शासन के खिलाफ मध्य भारत में चल रहे विद्रोह में सीहोर की बरबर्तापूर्ण घटना को जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह माना जाता है. 14 जनवरी के दिन 356 क्रांतिकारियों ने यहां शहादत दी थी.

massacre in Sehore on 14 January
सीहोर में जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार

सीहोर में शहीदों की समाधि स्थल पहुंचकर लोगों ने किया याद

सीहोर। जलियांवाला बाग की तरह बरबर्तापूर्ण घटना सीहोर में भी हुई थी. जिसे यादकर लोगों की आंखें नम हो जाती हैं. 1857 की क्रांति के बाद 14 जनवरी 1858 को यहां 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर गोलियों से भून दिया गया था. जनरल ह्यूरोज के आदेश पर यहां हुए विद्रोह को दबाने के लिए किया गया था. स्थानीय लोगों ने शहीदों की समाधिस्थल को सजाया और उन्हें श्रद्धांजलि देकर याद किया.

1857 की क्रांति

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखा जाता है. मेरठ से 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के रूप में शुरू हुई. इस क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका. ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों में असंतोष फैलता गया और धीरे धीरे इस आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया. पूरे देश के साथ ही मध्य भारत में भी अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को दबाने के लिए अनेक क्रांतिकारियों को गोलियों से भून दिया था.

जलियांवाला बाग की तरह बरबर्तापूर्ण घटना

अंग्रेजी शासन के खिलाफ मध्य भारत में चल रहे विद्रोह में सीहोर की बरबर्तापूर्ण घटना को जलियांवालाबाग हत्याकांड की तरह माना जाता है. 10 मई 1857 को मेरठ की क्रांति से पहले ही सीहोर में क्रांति की ज्वाला सुलग गई थी. मेवाड़, उत्तर भारत से होती हुई क्रांतिकारी चपातियां 13 जून 1857 को सीहोर और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गयी थी.

अंग्रेजों का झंडा उतारकर जला दिया

एक अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों को नए कारतूस दिए गए. इन कारतूसों में सुअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी. जांच में सुअर और गाय की चर्बी के उपयोग की बात सामने आने पर सैनिकों में आक्रोश और बढ़ गया. सीहोर छावनी के सैनिकों ने सीहोर कॉन्टिनेंट पर लगा अंग्रेजों का झंडा उतारकर जला दिया और महावीर कोठ और वलीशाह के संयुक्त नेतृत्व में स्वतंत्र बहादुर सरकार का ऐलान किया. जनरल ह्यूरोज को जब सीहोर की क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इसे बलपूर्वक कुचलने के आदेश दिए.

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356 क्रांतिकारियों ने दी थी शहादत

सीहोर में जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 जनवरी 1858 को 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में लाया गया. इन सभी क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था. जनरल ह्यूरोज ने इन क्रांतिकारियों के शव पेड़ों पर लटकाने के आदेश दिए और शवों को पेड़ों पर लटकाकर छोड़ दिया गया था. दो दिन बाद आसपास के ग्रामवासियों ने इन क्रांतिकारियों के शवों को पेड़ से उतारकर इसी मैदान में दफनाया था. मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को बड़ी संख्या में नागरिकों ने यहां पहुंचकर शहीदों की समाधि स्थल पर लाइटिंग की और उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की.

लोगों ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि

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