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देऊर कोठार घाटी में जोर से बोला तो 8 मील दूर ट्रैवेल करेगी आवाज, रीवा की वादियों में 5000 साल का संसार

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 16, 2024, 4:18 PM IST

Updated : Jan 18, 2024, 1:28 PM IST

deur kothar buddhist stupa
देऊर कोठार में 5000 साल का संसार

Deur Kothar Sound Travel 8 Miles: प्रयागराज से डेढ घंटे और रीवा से लगभग 70 किलोमीटर दूर है देऊर कोठार वैली जहां मिली है 5 हजार साल पुरानी विरासत. समूचे भारत में 2000 साल पुराने बौद्ध स्तूपों के लिए मशहूर इस जगह पर आवाज का रिफ्लेक्शन लोगों को दिवाना बना देती है.

रीवा।रीवा जिले के देऊर कोठार में प्राचीन गुफा और शैलचित्र अंकित हैं. बताया जाता है कि इन भित्ति चित्रों को आदि मानव के द्वारा उकेरा गया है. ये स्थान रीवा-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग में कटरा से 3.5 किलोमीटर की दूरी मौजूद है. 1999 से 2000 के बीच मध्यप्रदेश पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्खनन कार्य उपरांत बौद्ध स्थापत्य के अति महत्वपूर्ण पुरा अवशेष प्राप्त हुए थे. इनमें स्तूप और विहार के स्पष्ट अवशेष दिखाई देते हैं. इन पुरातत्विक महत्व के अवशेषों की खोज का श्रेय डॉ. फणिकांत मिश्र एवं स्थानीय शोधकर्ता अजीत सिंह को जाता है.

देऊर कोठार में है 5000 साल का संसार

प्रयागराज और रीवा दोनों से ही तकरीबन 72 और 70 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह अनूठी विरासत कम से कम 5000 साल पुरानी है. यहां की हरी भरी वादियों में मंदिर से लेकर बौद्ध स्तूप तक मौजूद हैं. जो भित्ति चित्र और शैल चित्र देऊर से मिले हैं उनकी उम्र कम से कम 5 हजार साल आंकी गई है और ये मौर्य काल की शैलचित्र हैं. यही नहीं यहां मिले बोद्ध स्तूपों की उम्र भी कम से कम 2 हजार साल की है. इस अनूठे संसार की पहली झलक साल 1982 में मिली थी और उसके बाद ही इसकी खोज शुरु हुई. 1999 के बाद ये राज राज न रहा और दुनिया को इसका ठीक-ठाक पता चल गया.

रीवा में 5000 साल का संसार

गुफाओं से 8 मील दूर से आवाज होती है रिफ्लेक्ट

देऊर कोठार की वादियों की सबसे बड़ी खासियत है यहां आवाज का रिफ्लेक्शन. अगर आप गुफाओं के आखिर में खड़े होकर वादियों की तरफ मूंह करके जोर से बोलेंगे तो कम से कम 8 मील दूर से आपकी आवाज वापस ट्रैवेल करके दुबारा सुनाई देगी. इसे आवाज का ईको होना भी कहते हैं. दरअसल प्रकृति की गोद में समाए इस इलाके की ज्योग्राफी ही कुछ ऐसी है कि जो यहां आता है उसे देऊर से प्यार हो जाता है.

स्थल को लेकर शोध

मौर्य एवं शुंग काल के यह अवशेष ईसा पूर्व दूसरी तथा तीसरी शताब्दी के मध्य के हैं. शोध से स्पष्ट हुआ है कि यहां पर बहुत बड़ा बौद्ध स्मारक मौर्य एवं शुंग काल में रहा होगा. बौद्ध भिक्षु यहां दीक्षा लेते रहे होंगे. यह पूर्व में व्यवसायिक मार्ग रहा है. इस स्थल का संबंध भरहुत और कौशांबी से भी रहा होगा. आदिमानव द्वारा निर्मित भित्ति चित्र, और दूसरी तीसरी शताब्दी मौर्य कालीन एक बड़े स्तूप मिला है. साथ ही कुल 40 स्तूप के अवशेष मौजूद हैं. इनमें से ईंट द्वारा निर्मित स्तूप क्रमांक-1 अत्यधिक महत्वपूर्ण है. यह स्तूप चौकोर चबूतरे के ऊपर निर्मित है, जिसके चारों ओर विशाल प्रदक्षिणा पथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. यहां ब्राह्मी लिपि में दानदाताओं के नाम भी उत्कीर्ण हैं.

2000 साल पुराना बौद्ध स्तूप

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लाल सफेद रंग से भित्ति चित्र

स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित स्तंभ के कुछ टुकड़े पाए गए हैं, जिनमें से एक टुकड़े पर भगवान बुद्ध को समर्पित 6 पंक्तियों वाला ब्राह्मी लिपि में लेख प्राप्त हुआ है. ऐसा माना जाता है कि स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र में प्रवेश द्वार रहा होगा. यहां पर कई शैलाश्रय भी हैं जहां आदिमानव द्वारा लाल सफेद रंग से भित्ति चित्र बनाए गए थे. यहां पर बौद्ध स्तूप शैलाश्रय और ब्राह्मी लिपि में दानदाताओं के नाम के अलावा भी कई ऐसी चीजें हैं जो इस पूरे क्षेत्र को आकर्षक बनाती हैं. यहां पर मौजूद हैं विशाल चट्टानें, हरे-भरे वन और ऊपर से नीचे की ओर दूर तक दिखाई देती हरियाली.

Last Updated :Jan 18, 2024, 1:28 PM IST

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