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MP News: प्रचार-प्रसार के अभाव में उपेक्षा के शिकार रायसेन स्थित सतधारा बौद्ध स्तूप

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Published : Jun 27, 2023, 8:28 AM IST

raisen lack of publicity in satdhara stupa
रायसेन में सतधारा बौद्ध स्तूप

रायसेन में स्थित सतधारा बौद्ध स्तूप प्रचार-प्रसार के अभाव में उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. सतधारा में सम्राट अशोक ने 272-238 ईसा पूर्व ईंटों का स्तूप-सतधारा में बनवाया था. बौद्ध सारिपुत्र और महागोपालन के अस्थि अवशेष उत्खनन के दौरान ही मिले थे.

एमपी में सतधारा बौद्ध स्तूप

रायसेन। प्रदेश में बौद्ध स्तूपों की बात हो तो सांची के अलावा दूसरा नाम ही नहीं दिखता, जबकि यही खासियत सतधारा स्तूप की भी है. इसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों में शामिल तो किया गया है. लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव के चलते ये बौद्ध स्तूप वीरान पड़े हुए हैं. वहीं साल 92 में यूनेस्को द्वारा यहां के विकास के लिए सर्वप्रथम 50 लाख रुपए की राशि दी गई थी, जिससे मात्र 1 बाहरी दीवार और सीढ़ियां बनाई गईं और इस निर्माण पर भी यूनेस्को ने आपत्ति दर्ज कराई थी. इसके बाद कई बार करोडों रुपए की राशि यहां के विकास के लिए आई और उस राशि से सतधारा बौद्ध स्तूप क्षेत्र में कई विकास कार्य करवाए गए हैं. इसके बाद भी सतधारा बौद्ध स्तूपों को सांची जैसी प्रसिद्ध नहीं मिल पाई.

यूनेस्को के विशेषज्ञ प्रभावित : भोपाल-विदिशा मुख्यमार्ग से 5 किमी की दूरी पर सतधारा के स्तूप हैं. पुरातत्व विभाग सतधारा के स्तूपों का अच्छे से प्रचार-प्रसार नहीं कर रहा है. वहीं यूनेस्को द्वारा प्रदत राशि से किया गया निर्माण कार्य भी संतोषजनक नहीं है. साल 99 में हुए इस जीणोद्धार के बाद जनवरी 2005 में यूनेस्को के पुरा-विशेषज्ञों के दल ने इस पर असंतुष्टि जताते हुए इस को तोड़कर दोबारा निर्माण करने के निर्देश दिए थे. एक विचित्र स्थिति यह भी है कि उक्त भूमि पहले वन विभाग के अधीन थी. काफी समय बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ट्रांसफर हुई है. यहां बिजली संचार एवं अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है.

सतधारा में ईंटों का स्तूप: 272-238 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने सतधारा में ईंटो का स्तूप बनवाया था. हलाली नदी के दाएं किनारे पहाड़ी पर स्थित बौद्ध स्मारक सताधारा की खोज ए कन्धिम ने की थी. मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए स्तूप का निर्माण कराया था. इस स्थल पर छोटे-बड़े कुल 27 स्तूप, 2 बौद्ध विहार और 1 चैत्य है. साल 1989 में इस स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया. ईसा पूर्व 272-238 में सम्राट अशोक ने सांची स्तूप निर्माण के समय ही सतधारा में ईंटों का स्तूप बनवाया था.
नहीं है बिजली की व्यवस्था: यहां पर जाने के लिए 1 करोड़ रुपए की लागत से नहर से लगकर सीसी रोड डाला गया था. वह भी घटिया निर्माण के चलते जगह-जगह से खराब हो गया है. वहीं सतधारा स्तूप परिसर में बिजली लाइट की व्यवस्था नहीं है. यहां पर रात भर सिर्फ 1 सोलर लाइट के भरोसे सुरक्षा व्यवस्था की जाती है. अभी गर्मी के मौसम में पर्यटक यहा नहीं आते हैं क्योंकि यहां पर छांव की कोई व्यवस्था भी नहीं है. पर्यटन विभाग को इस ओर ध्यान देकर सतधारा स्तूप क्षेत्र की व्यवस्थाएं बेहतर करनी चाहिए.

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सांची जैसी सुविधाएं क्यों नहीं: रघुवीर मीणा रातातलाई सरपंच का कहना है कि "पर्यटकों के बैठने के लिए सतधारा में लगभग 6 गजीफे बनाए गए थे. उनका भी घटिया निर्माण किया गया है, वो अभी से ही टूटने लगे हैं. यह स्थान सांची से कहीं अधिक सुंदर है. कुछ साल पहले सतधारा स्तूपों तक जाने के लिए सड़क नहीं थी. सड़क निर्माण तो हुआ लेकिन अब सड़क जगह-जगह से खराब हो चुकी है. पर्यटक सांची जितना यहां पर नहीं आते हैं.

पानी की नहीं कोई व्यवस्था: स्थानीय निवासी रोहित शाक्य का कहना है कि "प्रत्येक रविवार को लगभग 100 पर्यटक इतिहास और पुरातत्व का आनंद लेने सतधारा बौद्ध स्तूप आते हैं. चारों ओर हरियाली का मनमोहक दृश्य और शांत वातावरण पर्यटकों का मन मोह लेता है, लेकिन पर्यटकों का वहां मन फीका पड़ जाता है जब उन्हें पीने तक का पानी यहां नसीब नहीं होता है. ऐतिहासिक स्थल होने के बावजूद आज तक पुरातत्व विभाग द्वारा यहां पानी की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है. यहां पर सिर्फ एक हैंडपंप है, उसमें भी कभी पानी आता है कभी नहीं आता. शासन प्रशासन को यहां की व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए."

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