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जहां 27 दिनों तक हुआ श्रीकृष्ण-जामवंत युद्ध, युगों पुरानी है यहां जामवंत की गुफा

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Published : Jun 26, 2021, 2:34 PM IST

Jamwant's Cave in Raisen
रायसेन में जामवंत की गुफा ()

जामवंत की ये प्रसिद्ध गुफा नेशनल हाइवे 12 और खरगोन से 6 किलोमीटर दूर स्थित गांव जामगढ़ के पास 1500 सौ फीट ऊपर पहाड़ी पर स्थित है. दंतकथाओं के मुताबिक महाबली जामवंत त्रेता युग के रामायण काल मे भी थे और द्वापर युग के महाभारत काल मे भी. रामायणकाल में वे विष्णु अवतार श्रीराम के प्रमुख सहायकों में से एक थे तो वही महाभारत काल मे उन्होंने विष्णु अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध लड़ा.

रायसेन। एक ऐसी गुफ़ा जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच 27 दिन युद्व हुआ था. प्रसंग के अनुसार अपने ऊपर स्यमंतक मणि की चोरी का कलंक मिटाने के लिए श्रीकृष्ण ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया. धार्मिक ग्रंथ प्रेमसागर में इसका उल्लेख है. युद्ध के बाद जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण से कर स्यमंतक मणि उपहार में श्रीकृष्ण को दे दी. मान्यता है कि इस गुफा के दर्शन करने से मनुष्य के जीवन में अगर कोई कलंक है तो वो मिट जाता है.

जामवंत की प्रसिद्ध गुफा

जामवंत का बनाया मंदिर भी है मौजूद

वही गुफा से कुछ दूर एक मंदिर है जिस को रीछराज जामवंत ने केवल एक रात की अवधि में ही बना दिया था. मंदिर का निर्माण जामवंत नग्न होकर कर रहे थे,मंदिर का कलश बनना बाकी था. तभी जामवंत की बहन ने बेवजह रात में आट पीसने की चक्की चला दी. जामवंत चूंकि नग्न थे अत: वो चक्की की आवाज़ को किसी के आने की आहट समझ बैठे और खुद को छिपाने की गरज से वो अपनी गुफा की ओर दौड़ पड़े. आज भी इस दौड़ की निशानी के रूप में जामवंत के पदचिन्ह पत्थरों पर अंकित है.

गुफा समेटे है महाभारत काल के प्रमाण
जामवंत की ये प्रसिद्ध गुफा नेशनल हाइवे 12 और खरगोन से 6 किलोमीटर दूर स्थित गांव जामगढ़ के पास 1500 सौ फीट ऊपर पहाड़ी पर स्थित है. दंतकथाओं के मुताबिक महाबली जामवंत त्रेता युग के रामायण काल मे भी थे और द्वापर युग के महाभारत काल मे भी. रामायणकाल में वे विष्णु अवतार श्रीराम के प्रमुख सहायकों में से एक थे तो वही महाभारत काल मे उन्होंने विष्णु अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध लड़ा.

पुरातत्वविदों ने की है यहां खोज

गुफा के इतिहास को कुरेदने और किंवदंतियों की सचाई को जानने कई पुरातत्वविदों ने यहां और अध्ययन किया। फिलहाल देखरेख के अभाव में जामवंत की गुफा संकरी हो चुकी है. इस गुफा के आगे कई और छोटी गुफाएं हैं. इन गुफाओं की श्रृंखला प्राकृतिक शिव गुफा पर समाप्त होती है. यहां के स्थानीय दावा करते हैं कि ये जामवंत की ही गुफ़ा है.

सिद्ध मानी जाती है गुफा
स्थानीय मान्यताओं और यहां आने वाले पर्यटकों के मुताबिक ये गुफा सिद्ध मानी जाती है. कई साधु-महात्मा यहां तपस्या करते देखे जा चुके हैं. गुफा के पत्थरों में शिवलिंग त्रिशूल समेत भगवान की कई प्रतिमा अगल-अगल एंगल से देखने पर नज़र आती है.

दुर्गम है पहुंचने का रास्ता
यहां पहुँचने के लिए कटीले पेड़, पत्थर और चट्टानों से होकर गुजरना पड़ता है. दावा किया जाता है कि, ये गुफा 50 किलोमीटर दूर जाकर निकली हुई है. सरकार के ध्यान नहीं देने के कारण ये प्राचीन गुफा गुमनाम है. स्थानीय निवासी राजेश शर्मा बताते हैं कि, 'यहां पहुंचने का मार्ग जोखिम भरा है पर भगवान की कृपा से लोग पहुंच ही जाते हैं. वो खुद बपचन से आ रहे हैं. बहुत लोग आते है. आस पास से जो आता है निराश होकर नही जाता'.

बन सकता है टूरिस्ट-प्वाइंट

जामगढ़ से देवरी तक संसार के महत्वपूर्ण शैलाश्रय होने का उल्लेख पुरातत्वविद ए. रफीक ने किया है. डॉ. बी.एस. बांकड़ की पत्रिका शैलचित्र में इसके प्रकाशन से पुरातत्वविदों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ. पुरातत्वविद डाॅ. श्यामसुंदर सक्सेना ने इस क्षेत्र के पुरातात्विक वैभव को रेखांकित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया. इसके अलावा भारतीय इतिहास संकलन समिति मध्य भारत प्रांत द्वारा भी इन स्थानों के उद्धार और विकास के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन यह सभी प्रयास व्यक्तिगत होने के कारण सीमित ही है. यहां गुफाओं, मंदिरों और शैलचित्रों की विस्तृत शृंखला है. अगर पुरातत्व विभाग और सरकार ध्यान दे तो इस क्षेत्र में अच्छा टूरिस्ट-पॉइंट बनाया जा सकता है.

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