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8 साल की दिहाड़ीदार सेवा अवधि पूरी करने के बाद वर्कचार्ज स्टेट्स वाली याचिकाएं मंजूर, हाई कोर्ट का अहम फैसला

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Published : Jan 12, 2023, 8:57 PM IST

Himachal Pradesh High Court

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने दैनिक वेतन भोगियों से जुड़े मामले में अहम निर्णय सुनाया है. अदालत ने दैनिक वेतन भोगी पर आठ वर्ष पूरे करने पर वर्कचार्ज स्टेटस देने के आदेश दिए हैं. यही नहीं, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की तरफ से एकल पीठ द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दाखिल अपीलों व प्रशासनिक प्राधिकरण के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी खारिज कर दिया. पढ़ें पूरी खबर... (Himachal Pradesh High Court)

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने आठ साल की दिहाड़ीदार सेवा अवधि पूरी करने के बाद वर्कचार्ज स्टेट्स से जुड़ी याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है. हाई कोर्ट ने एक साथ सैकड़ों मामलों पर सुनवाई करने के बाद यह फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट की तरफ से पारित इस फैसले का लाभ उन हजारों कर्मचारियों को मिलेगा, जिन्हें 8 साल की दिहाड़ीदार सेवा अवधि पूरी करने के बाद वर्कचार्ज स्टेट्स नहीं दिया गया था. इस कारण ऐसे कर्मचारी पुरानी पेंशन का लाभ लेने से वंचित हो गए थे.

यही नहीं, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की तरफ से एकल पीठ द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दाखिल अपीलों व प्रशासनिक प्राधिकरण के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी खारिज कर दिया. इन मामलों पर अपना फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमजद एहतेशाम सईद व न्यायमूर्ति सबीना की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि अदालत के समक्ष आये कर्मचारियों को वित्तीय लाभ याचिका दाखिल करने से 3 वर्ष पूर्व से लागू माने जाएंगे. (Himachal Pradesh High Court) (high court daily wage workers order) (daily wage workers himachal) (hp high court order)

वहीं, राज्य सरकार ने इन सेवारत अथवा सेवानिवृत कर्मचारियों की मांगों का विरोध करते हुए कहा था कि इन कर्मचारियों ने समय रहते सक्षम अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटाया. राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि कर्मचारियों ने ट्रिब्यूनल के समक्ष वर्कचार्ज स्टेट्स देने के लिए मामले देरी से दाखिल किए. सरकार का यह भी कहना था कि 9 या 8 साल की दिहाड़ीदार सेवा के वर्कचार्ज स्टेट्स से वंचित किए गए कर्मचारियों को समय से अदालतों के समक्ष अपने अधिकारों की मांग करनी चाहिए थी. एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल एक्ट के प्रावधानों के मुताबिक वे इन मामलों को देरी से दाखिल नहीं कर सकते थे.

देरी से अपनी मांगों को उठाने के लिए कारण दिया जाना जरूरी था. राज्य सरकार की ओर से बहस पूरी होने के बाद प्रार्थियों की ओर से न्यायालय के समक्ष यह दलील दी गई कि उनके मामले प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित राकेश कुमार व अश्विनी कुमार के निर्णय के अंतर्गत आते हैं. ऐसे में यह राज्य सरकार का दायित्व बनता था कि वह समय पर अपने ही नीतिगत फैसले पर ईमानदारी से अमल करते हुए उन्हें नियमित करती. कल्याणकारी सरकार से यह उम्मीद नहीं की जा सकती की वह अपने कर्मचारियों को उनकी मांगों के लिए अदालत में जाने के लिए मजबूर करे.

हाई कोर्ट ने भी समय-समय पर ऐसे ही मामलों में कर्मचारियों के हक में फैसले सुनाए हैं और राज्य सरकार ने अनेक कर्मचारियों के पक्ष में हाई कोर्ट के निर्णय को लागू किया. प्रार्थियों ने विभिन्न अदालतों के फैसलों का हवाला देते हुए सरकार की अपीलें खारिज करने की मांग की थी. इस पर हाई कोर्ट ने दैनिक भोगियों की दलीलों से सहमति जताते हुए उपरोक्त आदेश पारित कर दिए. हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि विद्युत बोर्ड भी 8 साल की सेवा के बाद दैनिका वेतन भोगी कर्मचारी को वर्कचार्ज स्टेट्स देने के लिए बाध्य है.

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