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छावला गैंगरेप पीड़िता के न्याय के लिए निकाला गया कैंडल मार्च

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Published : Dec 17, 2022, 2:29 PM IST

निर्भया कांड की तरह छावला की निर्भया की घटना को भी दस साल हो गए हैं. लेकिन दोषियों को अब तक सजा नहीं हुई है. इसको लेकर पीड़िता के लिए न्याय की मांग करते हुए लगातार कैंडल मार्च निकाला जा रहा है.

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पीड़िता के न्याय के लिए निकाला गया कैंडल मार्च

नई दिल्ली: निर्भया कांड को पूरे 10 साल हो चुके हैं. देश के इतिहास में ये एक ऐसी घटना है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है. इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. दिल्ली ही नहीं पूरे देश से दोषियों को सजा दिलाने के लिए आवाज उठ रही थी. समय लगा, लेकिन पीड़िता को न्याय मिला और दोषियों को फांसी. लेकिन एक ऐसे ही मामले में छावला की निर्भया को अब तक इंसाफ नहीं मिल पाया है. इस घटना को 10 साल बीत गए हैं, लेकिन दोषियों को अब तक सजा नहीं हुई है. जिसके बाद पीड़िता के लिए न्याय की मांग करते हुए लगातार कैंडल मार्च निकाला जा रहा है, आज इसका 37 वां दिन है.

गैंगरेप के तीनों आरोपियों को बरी किये जाने से पीड़िता के परिजन में काफी रोष भी है. उनको यकीन नहीं हो पा रहा है कि जिन तीनों आरोपियों ने उनकी बेटी के साथ हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए उनकी हत्या कर दी थी वो आज खुले आम घूम रहे हैं. पिछले 37 दिन से लगातार कैंडल मार्च निकाला कर न्याय की गुहार लगा रहे पीड़िता के परिजन ने कहा कि वो मायूस जरूर हैं, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं टूटी है. इसलिए लगातार पिछले 37 दिनों से द्वारका के सेक्टर 19 स्थित निर्भया चौक पर उनके साथ इस मुहिम में खड़े लोग हर दिन यहां कैंडल मार्च निकाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब तक दोषियों को फांसी नहीं मिल जाती, तब तक उनका कैंडल मार्च हर दिन यूं ही दिल्ली के अलग-अलग इलाको में निकलता रहेगा.

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बता दें कि पीड़िता दिल्ली के छावला की निवासी थी और नौ फरवरी 2012 में ऑफिस से घर लौटने के दौरान कुतुब विहार से उसका अपहरण कर लिया गया था. अपहरण के तीन दिन बाद हरियाणा में उसका शव क्षत-विक्षत अवस्था में पाया गया था. इस मामले में तीनों आरोपियों राहुल, रवि और विनोद को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. जबकि 2014 में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट द्वारा उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा था. लेकिन हाई कोर्ट के बाद लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने साक्ष्यों की कमी का हवाला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला पलट कर उन्हें बरी कर दिया था.

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