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पाकिस्तान की फुटबॉल से खेला गया फीफा विश्वकप, जानिए इसे बनाने वाले कारीगरों का हाल

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Published : Dec 21, 2022, 5:23 PM IST

Updated : Dec 21, 2022, 5:30 PM IST

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में दो-तिहाई से ज्यादा फुटबॉल पाकिस्तान के सियालकोट शहर के अलग-अलग कारखानों से तैयार करके भेजी जाती है.

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पाकिस्तान की फुटबॉल तैयार करता कारीगर

नई दिल्ली : वैसे तो फीफा विश्वकप के आयोजन से आयोजक देश व खिलाड़ियों ने खूब कमाई की है, लेकिन जिस फुटबॉल से यह विश्वकप खेला गया, उसको बनाने वाले लोग अभी भी गरीबी का जीवन जीने को मजबूर होते हैं. यह हाल पाकिस्तान के उस शहर का है, जहां से दुनिया में दो-तिहाई से ज्यादा फुटबॉल अलग-अलग कारखानों से तैयार करके भेजी जाती है.

FIFA World Cup 2022 के लिए तैयार की गयी फुटबॉल की गेंदें पाकिस्तान के सियालकोट शहर में बनायी गयीं थीं. कहा जाता है कि दुनिया के दो-तिहाई देशों के लिए भेजी जाने वाली फुटबॉल का निर्माण यहीं पर होता है. कतर के फीफा विश्व कप 2022 में उपयोग में लायी जाने वाली ऑफिशियल फुटबॉल एडिडास अल रिहला को भी इसी सियालकोट शहर में तैयार कराया गया है.

पाकिस्तान की फुटबॉल की दुकान

पूरी दुनिया इस समय फुटबॉल के रंगने के लिए पाकिस्तान के सियालकोट शहर ने अपना बड़ा योगदान दिया है. यहां पर फुटबॉलों की सिलाई का काम प्रमुखता से किया जाता है. पाकिस्तान के पूर्वोत्तर में कश्मीरी सीमा से सटे शहर सियालकोट में फुटबॉल के काम के लिए एक्सपर्ट कारीगर व महिलाएं मिल जाती हैं.

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में दो-तिहाई से ज्यादा फुटबॉल इसी शहर के अलग-अलग कारखानों से तैयार करके भेजी जाती है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सियालकोट की आबादी का 8 प्रतिशत हिस्सा इस काम में लगा हुआ है. कहा जाता है कि करीब 60 हजार लोग फुटबॉल बनाने के काम में लगे हुए हैं. यहां बनी 80 प्रतिशत से ज्यादा गेंदों में हाथ से सिलाई की जाती है. खेल सामानों के एक्सपर्ट बताते हैं कि हाथ से बनी गेंद न सिर्फ ज्यादा चलती है, बल्कि यह एयरोडायनेमिक्स के उन नियमों को भी पूरा करती है. ऐसा माना जाता है कि हाथ से सिले फुटबॉल ज्यादा मजबूत व टिकाऊ होते हैं.

पाकिस्तान की फुटबॉल की फैक्ट्री

सियालकोट की एक फुटबॉल बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले लोगों को हालांकि पैसे कम मिलते हैं, फिर भी वह काम में मनोयोग से लगे रहते हैं. एक फुटबॉल बनाने वाले को करीब 160 रुपये दिए जाते हैं. एक फुटबॉल को तैयार करने में 3 घंटे तक का समय लग जाता है. इस हिसाब से 9 घंटे की शिफ्ट में 3 फुटबॉल ही एक आदमी तैयार कर पाता है. ऐसी स्थिति में उसकी मासिक आय बहुत ज्यादा नहीं हो पाती है.

कहा जाता है कि वर्ष 1997 तक यहां ट्रेंड कारीगरों की भरमार हुआ करती थी, लेकिन अब धीरे धीरे इसकी कमी होती जा रही है. इसकी वजह ये है कि 1997 से पहले इन फुटबॉल फैक्ट्रियों में 5 साल से कम उम्र के बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ आते थे. ऐसे में वह बचपन से ही फुटबॉल बनाना सीखने लग जाते थे, लेकिन बालश्रम के कानून बनने के बाद से उनकी एंट्री पर रोक लग गई और नई पीढ़ी इस तरफ नहीं आ रही है.

Last Updated :Dec 21, 2022, 5:30 PM IST

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