नई दिल्ली:डॉक्टरों को जहां भगवान का दिया दर्जा दिया जाता है, वहीं कई जगहों पर उनके साथ मारपीट की घटनाएं भी होती है. दरअसल, किसी मरीज की मृत्यु होने पर इसके लिए डॉक्टर को सीधे तौर पर जिम्मेदार माना जाता है और उनके साथ मारपीट की जाती है. ऐसी परिस्थिति में युवा डॉक्टरों को मरीजों की सेवा करने में परेशानी हो रही है. 24 जून को विश्व युवा डॉक्टर्स डे मनाया गया. इस दिन युवा डॉक्टरों ने खुलकर अपनी समस्याएं रखी और सरकार से अपने कार्यस्थल पर सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए एक बार फिर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग की.
डॉक्टर शाइस्ता बताती हैं कि राजस्थान के एक अस्पताल में एक मरीज की मौत होने पर जिस तरीके से डॉक्टर को जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और इससे आहत होकर डॉक्टर ने आत्महत्या कर ली. यह काफी डराने वाले बात है. इस घटनाक्रम को एक राजनीतिक रंग दिया गया. ऐसे में कोई युवा डॉक्टर कैसे निष्ठापूर्वक मरीजों की सेवा कर पाएंगे? यह कोई अकेली घटना नहीं है. इसके अलावा दिल्ली के एक अस्पताल में डॉक्टर को गोली मारी जाती है. चेन्नई के एक अस्पताल में डॉक्टर को बुरी तरह पीटा जाता है. अस्पतालों में तोड़फोड़ की जाती है. सबसे जरूरी बात यह है कि अगर डॉक्टर और मरीजों के बीच रिश्ते सही करने हैं तो इसके लिये डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. इसके लिए जरूरी है कि सरकार डॉक्टर की सुरक्षा के लिए मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को पूरी तरह लागू करें.
डॉक्टर शाइस्ता बताती हैं कि सरकारी अस्पतालों में मेडिकल उपकरण और सुविधाओं की भारी कमी होती है, जिसका खामियाजा युवा डॉक्टरों को भुगतनी पड़ती है. यहां तक कि डॉक्टरों के लिए गाउन और ग्लब्स भी नहीं होते हैं, जिसकी वजह से वह इंफेक्शन के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में मरीजों का क्या इलाज कर पाएंगे? मरीज जब अस्पताल में आते हैं तो उम्मीद करते हैं कि उन्हें सारी सुविधाएं मुफ्त में मिले, लेकिन यह सुविधाएं उन्हें तभी मिलेगी जब अस्पतालों के पास संसाधन हो.