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कर्बला में महिलाओं ने मांगी कोरोना से मुक्ति की दुआ

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Published : Aug 19, 2021, 10:11 PM IST

इस्लामिक मान्यताओं में मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी. इसे आशूरा भी कहा जाता है. इसलिए मुहर्रम के दसवें दिन को बहुत खास माना जाता है. हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में उसी जगह है, जहां इमाम हुसैन और यजीद की जंग हुई थी.

women prayed in Karbala
महिलाओं ने मांगी दुआ

नई दिल्ली : मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. यह महीना शिया और सुन्नी मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस माह के 10वें दिन को आशूरा कहा जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, पैगंबर-ए-इस्‍लाम हजरत मुहम्‍मद के नाती हजरत इमाम हुसैन को इसी मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था.

कर्बला की ये जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी. मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी. इसे आशूरा भी कहा जाता है. इसीलिए मुहर्रम के दसवें दिन को बहुत खास माना जाता है. उनकी याद में इस दिन जुलूस और ताजिया निकालने की रिवायत है. आशूरा के दिन मुसलमान रोजा रखते हैं.

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वहीं, दिल्ली स्थित लोधी कॉलोनी में स्थित कर्बला में मुहर्रम से एक दिन पहले कुछ मुस्लिम समाज की महिलाएं पहुंची. इस दौरान महिलाओं ने वहां पर मन्न मांगी और मत्था टेकी. ईटीवी भारत से बात करते हुए महिलाओं ने बताया कि हम यहां कई सालों से आते हैं और यहां पर दुआ मांगते हैं. हमारी दुआ कबूल हो जाती है. कोरोना काल के दौरान सब कुछ तबाह हो चुका है. हम यही दुआ मांगें हैं कि इन सब से आजादी मिले. फिर एक बार पहले की तरह हालात हो जाए.

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बता दें कि इस्लामिक इतिहास अनुसार, मुहर्रम के 10वें दिन पैगंबर मूसा ने मिस्र के फिरौन पर जीत हासिल की थी, जिसके याद में मुसलमान समुदाय रोज़ा रखते हैं. कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं, जो लोग पूरे 10 दिनों को रोजे नहीं रख पाते, वो 9वें और 10वें दिन रोजे रखते हैं. वहीं इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताजिया निकालते हैं.

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