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700 साल में पहली बार दरगाह हजरत निजामुद्दीन से नहीं निकाला जाएगा ताजिया जुलूस

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Published : Aug 27, 2020, 10:25 PM IST

दिल्ली में इस बार कोरोना के कारण मुहर्रम में ताजिया निकालने की अनुमति नहीं दी गई है. जिसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने महबूब ए इलाही दरगाहहजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलेही के चीफ इंचार्ज से खास बातचीत की.

Tajiya procession will not be taken out from the Dargah Hazrat Nizam Uddin due to Corona in Delhi
दरगाह हजरत निजाम उद्दीन

नई दिल्ली: महबूब ए इलाही दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह में स्थित ईमाम बारगाह से 700 साल के इतिहास में पहली बार ताजिया जुलूस नहीं निकाला जाएगा. कोरोना के कारण प्रशासन ने यहां से ताजिया जुलूस को निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया है. ताजियादारी के इतिहास में ये पहली बार होगा, जब हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से अली गंज यानी जोरबाग कर्बला ताजिया जुलूस नहीं जाएगा.

दरगाह हजरत निजाम उद्दीन से नहीं निकाला जाएगा ताजिया जुलूस

दरगाह के चीफ इंचार्ज ने की ईटीवी भारत से बातचीत

बता दें कि हजरत इमाम हुसैन की याद में दिल्ली के विभिन्न स्थानों से ताजिया जुलूस निकाले जाते थे, जो कर्बला जोरबाग पर जाकर समाप्त होते थे. इस सिलसिले में दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया के चीफ इंचार्ज सौय्यद काशिफ अली निजामी ने ईटीवी भारत को बताया कि हजरत निजामुद्दीन औलिया के जमाने से यानी करीब 700 सालों से निजाम उद्दीन की इमाम बारगाह से ताजिया जुलूस निकलता आ रहा था, लेकिन इस बार कोरोना के कारण आशूरा पर निजाम उद्दीन से ताजिया जुलूस नहीं निकाला जाएगा.

उन्होंने कहा कि 1947 में जब देश के हालात ठीक नहीं थे, तब भी हमारे बड़ों ने आशूरा पर ताजिया निकाला और कर्बला जाकर दफन किया.लेकिन इस साल प्रशासन ने जो गाइडलाइन जारी की है उसमें लिखा है कि इमाम बारगाह में और घरों मे रह कर आशूरा मनाई जा सकती है. लेकिन कोई भी ताजिया जुलूस की शक्ल में नहीं निकाला जा सकता.

महिलाएं रोजा रखकर जाती हैं कर्बला तक पैदल

काशिफ अली निजामी ने कहा कि बादशाह तैमूर लंग के जमाने में एक ताजिया दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया आया था, जो करीब 350 साल से इमाम बारगाह में रखा है. ये ताजिया हर साल कर्बला जाता है और वापस दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया में स्थित इमाम बारगाह में वापस आकर रखा जाता है. उन्होंने ये भी बताया कि ताजिया के जुलूस मे लंगर,शर्बत का विशेष इंतजाम रहता है. बड़ी संख्या में लोग सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोग ताजिया के जुलूस मे शामिल रहते थे और महिलाएं तो रोजा रख कर कर्बला तक पैदल जाती थी और वहीं रोजा इफ्तार करतीं हैं.

उन्होंने बताया कि कर्बला शरीफ मे बाकायदा मजार बनाये जाते थे, पूरी दिल्ली से अलग अलग स्थानों से ताजिया कर्बला पहुंचते थे. अब तो खानपुर और खजूरी में भी कर्बला बन गई है, लेकिन सब से पुरानी कर्बला अली गंज यानी कर्बला जोरबाग के नाम से प्रसिद्ध है.

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