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Pitru Paksha: पितृदोष से बचाव के लिए किन बातों का रखें ध्यान, जानिए

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Published : Sep 23, 2021, 6:21 AM IST

भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. पितृपक्ष सोमवार (20 सितंबर) से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक रहेगा. हिंदू मान्यता के अनुसार, पूरी श्रद्धा-भाव के साथ पितरों की पूजा-अर्चना और तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है. पितृ पक्ष में कैसे करें पितरों की पूजा जानने के लिए पढ़िये ये लेख.

what things need to do during Pitru Paksha
पितृदोष से बचाव के लिए किन बातों का रखें ध्यान, क्या करें और क्या न करें?

नई दिल्ली :कहते हैं अपने पितरों को प्रसन्न रखना है तो पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए पूजा-अर्चना और तर्पण करें. पितरों का तर्पण करने से मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान करते हैं. अश्विन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से अश्विन मास की अमावस्या तिथि तक पूरे 16 दिन पितरों को जलांजलि देने से पितर प्रसन्नता देते हैं और अपनी विशेष कृपा बनाए रखते हैं, लेकिन इन दिनों में कुछ बातें ऐसी हैं, जिनका ध्यान रखना बेहद आवश्यक है. जो न केवल आपको पितृ दोष से बचाता है, बल्कि आपके जीवन में सही फल और प्रगति भी देता है.

पंडित बृज गोपाल शुक्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि श्राद्ध के दिनों में घर में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है, लेकिन इन दिनों अपने घर में शांति बनाए रखने और घर को पवित्र रखना बेहद आवश्यक है. क्योंकि इससे पितृ प्रसन्न होते हैं. इन दिनों में कोई भी कार्य पितरों के निमित्त ही किया जाता है. इसके साथ ही खास तौर पर इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इन 16 दिनों में मांस- मदिरा शराब आदि का सेवन न करें. घर को पूरी तरीके से पवित्र रखें और जो चीज आपके पूर्वजों को पसंद नहीं है उन कार्यों को न करें.

भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है.

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पंडित जी ने बताया कि जिन लोगों के ऊपर पितृ दोष लगता है वह इन्हीं गलतियों के कारण होता है, क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती है और वह इन दिनों में मांस-मदिरा का सेवन कर लेते हैं. जिससे उनके पितृ नाराज हो जाते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि इन 16 दिनों में नियमित तौर पर पितरों को याद करते रहे. यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता नहीं हैं तो बेटे को अपने माता-पिता का श्राद्ध करना होता है. रोजाना सुबह उठकर स्नानादि करके तर्पण करना होता है. वहीं यदि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो गई है तो उसे अपने पति का श्राद्ध करना होता है. साथ ही श्राद्ध में पति-पत्नी दोनों मिलकर भी अपने बुजुर्गों की पूजा कर सकते हैं.

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