नई दिल्ली : कहते हैं अपने पितरों को प्रसन्न रखना है तो पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए पूजा अर्चना और तर्पण करें. पितरों का तर्पण करने से मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान करते हैं. अश्विन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से अश्विन मास की अमावस्या तिथि तक पूरे 16 दिन पितरों को जलांजलि देने से पितर प्रसन्नता देते हैं और अपनी विशेष कृपा बनाए रखते हैं.
पितृपक्ष में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है. सभी अपने-अपने पूर्वजों को स्नान करने के बाद जलांजलि देते हैं और उनका ध्यान करते हैं. घर का बड़ा अथवा छोटा बेटा अपने मृत माता-पिता को जल देता है. इसके बाद आखिरी दिन यानी 16वें दिन उनका पारण करते हैं.
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कैसे करें पितृ पूजा ?
पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण देने का विशेष महत्व होता है. पितरों का तर्पण करने का मतलब उन्हें जल देना होता है. इसके लिए प्रतिदिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुंह करके बैठ जाएं. सबसे पहले अपने हाथ में जल, अक्षत, फूल लेकर तीन बार 'ऊँ केशवाय नम:' 'ऊँ माधवाय नम:' 'ऊँ गोविंदाय नम:' के मंत्र के साथ आचमन करें. आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़कें. उसके बाद गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री बनाकर अनामिका अंगुली में पहनें. हाथ में जल लेकर सुपारी, फूल और सिक्का लेकर संकल्प करें. अपना नाम और गोत्र का उच्चारण करने के बाद- श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
इसके बाद पूर्व दिशा में मुंह कर के बैठक कर जल, कच्चा दूध, फूल, चावल को लेकर देवता और ऋषियों का आह्वान करें और उन्हें तर्पण दें. फिर उत्तर दिशा में मुंह करके बैठक कर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें. पितरों के आह्वान के लिए 'ऊँ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम' मंत्र का उच्चारण करें. उसके बाद अपने पीतरों को बारी बारी से अपने गोत्र के उच्चारण के साथ उन्हें तर्पण दें.
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पितरों को तर्पण देने की विधि
पिता को तर्पण देते समय अपने गोत्र का उच्चारण करने के बाद पिता का नाम लेकर उन्हें 'गोत्रे अस्मतपिता शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:' मंत्र के साथ तीन बार तर्पण करें. पितामह का गोत्र और उनका नाम लेकर उन्हें 'गोत्रे अस्मत्पितामह शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:' मंत्र के साथ तीन बार तर्पण करें. माता को तर्पण देते समय अपना गोत्र और माता का नाम लेकर 'देवी वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:' मंत्र के साथ तीन बार तर्पण करें. दादी को तर्पण देते समय उनके गोत्र का और उनका नाम लेकर 'देवी वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:' मंत्र के साथ तर्पण करें. इसी प्रकार जितने भी दिवंगत हैं उन्हें उनके गोत्र के साथ उनके नाम का उच्चारण करते हुए उन्हें तर्पण दें.
यदि आपको किसी का नाम नहीं याद है तो आप रुद्र, विष्णु और ब्रह्मा जी के नाम का उच्चारण करें और भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं और भगवान को धूप दिखाकर पांच भोग निकालें. गाय के लिए पत्ते पर भोग लगाएं, कुत्ते के लिए जनेऊ को कान पर चढ़ाकर पत्ते पर भोग लगाएं, कौओं के लिए पृथ्वी पर भोग लगाएं, देवताओं के लिए पत्ते पर भोग लगाएं और सबसे आखिर में पिपीलिका के लिए पत्ते पर भोग लगाएं. इसके बाद हाथ में जल लेकर 'ऊँ विष्णवे नम:' मंत्र को तीन बार पढ़कर इस कर्म को भगवान विष्णु को समर्पित करें. इस कर्म से सभी पितृ प्रसन्न होते हैं और आपके सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं.
तर्पण के बाद करें क्षमा याचना
पितरों के तर्पण के दौरान क्षमा याचना जरूर करनी चाहिए. किसी भी कारण हुई गलती के लिए आप पितरों से क्षमा मांग सकते हैं. पितरों की तस्वीर पर तिलक कर रोजाना नियमित रूप से संध्या के समय तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए. साथ ही अपने परिवार के साथ उनके श्राद्ध तिथि के दिन क्षमा याचना कर गलतियों की माफी मांगकर अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहिए.
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पितृपक्ष की तिथियों का महत्व
पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार, श्राद्ध किया जाता है. जिस तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है. अगर, मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. पितरों के श्राद्ध के दिन यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोज खिलाकर दान-पुण्य करना चाहिए.
पितृपक्ष में अपने पितरों के श्राद्ध के दौरान विशेष तौर पर इस बात का ध्यान रखें कि जब आप श्राद्ध कर्म कर रहे हों तो कोई उत्साहवर्धक काम न करें. घर में कोई शुभ काम न करें. इसके अलावा मांस, मदिरा के साथ ही तामसी भोजन का सेवन करने से परहेज करें. श्राद्ध में पितरों को नियमित रूप से जलांजलि दें.