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पितृ पक्ष में क्यों करते हैं गीता के सातवें अध्याय का पाठ, जानिए

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Published : Sep 20, 2021, 10:23 AM IST

Updated : Sep 20, 2021, 10:57 AM IST

Pitru Paksha
पितृ पक्ष

भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है, जो कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक कुल 16 दिन का होता है. पितृ पक्ष के इन सोलह दिन हम अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार इस दौरान सूक्ष्म रूप से हमारे पितर हमारे घर में विराजमान होते हैं और हमारे द्वारा किये गये श्राद्ध कर्म से तृप्त होते हैं.

नई दिल्ली: अपने पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया मुक्ति कर्म ही श्राद्ध कहलाता है और उन्हें तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं. तर्पण को ही पिंडदान भी कहा जाता है. श्रीमद भगवत गीता के 7वें अध्याय में श्राद्ध कर्म का उल्लेख मिलता है. श्राद्ध के दिन भगवत गीता के सातवें अध्याय का महात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए और उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए.

बता दें कि श्रीमद भगवत गीता का वो ज्ञान जो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था. इस गीता का सातवें अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा है. श्राद्ध पक्ष में गीता के सातवें अध्याय का पाठ किया जाता है. जिसका नाम है ज्ञानविज्ञान योग. शास्त्रों में इसे पितरों के कल्याण का सबसे सरल उपाय बताया गया है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष में श्रीमद भगवत गीता की कथा को सुनने मात्र से ही पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है. गीता का पाठ पितरों को मोक्ष दिलाने का अटूट साधन है.

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मान्यता है कि परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद अगर उसका अंतिम संस्कार भलीभांति नहीं किया जाता है या फिर उसकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है तो उसकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के इर्द गिर्द ही भटकती रहती है और वहीं अतृप्त आत्मा परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव बनाती है. ऐसे ही पितृ दोष को दूर करने के लिए हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु के बाद पुत्र द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म ही मृतक को वैतरणी पार कराता है.

पितृ पक्ष में भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करना सबसे प्रभावशाली होता है. गीता में श्रीकृष्ण ने खुद कहा है कि 'सर्व धमार्न परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज' अर्थात सभी परंपराओं और युक्तियों को छोड़कर जो व्यक्ति केवल श्रीकृष्ण की आराधना करता है. उसके लिए बाधाएं अवसर में और कांटे फूल में बदल जाते हैं. श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली वाणी का वर्णन है. इसीलिए जब संकट में भगवत वाणी का श्रवण करने से सभी संकट खुद-ब-खुद टल जाते हैं. मान्यताओं के अनुसार राजा परिक्षित से जब ऋषि शमीक का अपमान किया और ऋगी ऋषि के चलते सात दिन में सर्पदंश से मृत्यु का श्राप मिता तो सभी ऋषि-मुनियों ने श्राप से मुक्ति के जो उपाय बताए वे प्रभावहीन रहे और जब शुकदेव महराज ने उन्हें भागवत का परायण कराया तो कथा का विश्राम होते ही परीक्षित का भय दूर हुआ और उन्हें सदगति प्राप्त हुई.

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बता दें कि गीता में योग शब्द को एक नहीं, बल्कि कई अर्थों में प्रयोग हुआ है और हर योग अंतिम में भगवान से मिलने के मार्ग से जोड़ता है. योग का मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन है. गीता में योग के कई प्रकार हैं. लेकिन मुख्य रूप से तीन योग ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग का वास्ता मनुष्य से अधिक होता है. महाभारत के युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध भूमि में अर्जुन को बताया था कि जीवन का सबसे बड़ा योग कर्म योग है. उन्होंने बताया था कि कर्म योग से कोई भी प्राणी मुक्त नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि वह स्वंय अर्थात भगवान भी कर्म योग से बंधे हैं.

Last Updated :Sep 20, 2021, 10:57 AM IST
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