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CHAITRA NAVRATRI 2022 : महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि, इन मंत्रों के जाप से मिलेगा विशेष लाभ

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Published : Mar 31, 2022, 1:15 PM IST

Updated : Apr 1, 2022, 9:01 AM IST

ईटीवी भारत धर्म में आज हम आपको बताएंगे चैत्र नवरात्रि के विषय में. ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास से जानेंगे कि नवरात्रि में मां के किन स्वरूपों की होती है अराधना. जानेंगे कि आखिर इन दिनों में किन मंत्रों के भक्तों को विशेष लाभ की प्राप्ति होगी.

CHAITRA NAVRATRI POOJA
CHAITRA NAVRATRI POOJA

नई दिल्ली:महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि. तीन देवियों, महागौरी, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है. पहले तीन दिन मां गौरी के तीन स्वरूपों की, अगले तीन दिन मां लक्ष्मी के स्वरूपों की और आखिरी के तीन दिन मां सरस्वती के स्वरूपों की पूजा करते हैं. दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव-दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन है. इसमें देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले महादानवों से लोहा लिया इसका वर्णन आता है. यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानि नवदुर्गा के मन्दिर स्थपित हैं.

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं और जिनका समापन 11 अप्रैल को होगा. अबकी चैत्र नवरात्रि का आरंभ शनिवार को हो रहा है. इस बार मां दुर्गा का आगमन अश्व यानि घोड़े पर होगा. वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती है. हालांकि कि गुप्त नवरात्रि भी आती है, लेकिन चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि की लोक मान्यता ज्यादा है. साल में दो बार आश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत में नवरात्र उत्सव का माहौल होता है. सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो निम्न लिखित श्लोक के पाठ को पढ़ने से सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती और नवदुर्गा के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है.

सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।।

शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।।

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।।

देवी मंत्र

वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गा की स्तुति और पूजा-पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रह्मा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था. इसको देवी कवच भी कहते हैं. देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है. नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी ने इस प्रकार से किया है.

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।।

देवी के नौ रूप का वर्णन

उपरोक्त नौ दुर्गा ने देव-दानव युद्ध में विशेष भूमिका निभाई है. इनकी सम्पूर्ण कथा देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में लिखित है. शिव पुराण में भी इन दुर्गाओं के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन आता है कि कैसे हिमालय राज की पुत्री पार्वती ने अपने भक्तों को सुरक्षित रखने के लिए तथा धरती, आकाश और पाताल में सुख-शान्ति स्थापित करने के लिए दानवों, राक्षसों और आतंक फैलाने वाले तत्वों को नष्ट करने की प्रतीज्ञा की और समस्त नवदुर्गाओं को विस्तारित करके उनके 108 रूप धारण करने से तीनों लोकों में दानव और राक्षस साम्राज्य का अन्त किया. इन नौदुर्गाओं में सबसे प्रथम देवी का नाम है शैल पुत्रीजिसकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती है. दूसरी देवी का नाम है ब्रह्मचारिणीजिसकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन होती है. तीसरी देवी का नाम है चन्द्रघण्टा जिसकी पूजा नवरात्र के तीसरे दिन होती है. चौथी देवी का नाम है कूष्माण्डाजिसकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन होती है. पांचवीं दुर्गा का नाम है स्कन्दमाता जिसकी पूजा नवरात्र के पांचवें दिन होती है. छठी दुर्गा का नाम है कात्यायनी जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है. सातवीं दुर्गा का नाम है कालरात्रि जिसकी पूजा नवरात्र के सातवें दिन होती है. आठवीं देवी का नाम है महागौरी जिसकी पूजा नवरात्र के आठवें दिन होती है. नवीं दुर्गा का नाम है सिद्धिदात्रीजिसकी पूजा नवरात्र के अन्तिम दिन होती है. इन सभी दुर्गाओं के प्रकट होने और इनके कार्यक्षेत्र की बहुत लम्बी चौड़ी कथा और फेहरिस्त है. लेकिन यहां हम संक्षेप में ही उनकी पूजा अर्चना का वर्णन कर सकेंगे.

हर समस्या का समाधान हैं ये श्लोक :नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति का का सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है. नवरात्रि के दिनों में सविधि मां के कलश स्थापना के साथ शतचंडी, नवचंडी, दुर्गा सप्तशती और देवी अथर्वशीर्ष का पाठ किया जाता है. दुर्गा सप्तशती के पाठ के कई विधि-विधान है. दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वन्तर के देवी महात्म्य के 700 श्लोक का एक भाग है. दुर्गा सप्तशती में अध्याय एक से 13 तक तीन चरित्र विभाग हैं. इसमें 700 श्लोक हैं.

दुर्गा सप्तशती के 6 अंग 13 अध्याय को छोड़कर हैं. कवच, कीलक, अर्गला, दुर्गा सप्तशती के प्रथम तीन अंग और प्रधानिक आदि तीन रहस्य हैं. इसके अलावा और कई मंत्र भाग हैं जिसे पूरा करने से दुर्गा सप्तशती पाठ की पूर्णता होती है. इस संदर्भ में विद्वानों में मतांतर है. दुर्गा-सप्तशती को दुर्गा-पाठ, चंडी-पाठ से भी संबोधित करते हैं. चंडी पाठ में छह संवाद हैं.

महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को दुर्गा का चरित्र सुनाया. तदनंतर यही कथा महर्षि मार्कण्डेय के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि को सुनाई. यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी से कही. जैमिनी महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे. यही कथा संवाद महर्षि वेदव्यास ने मार्कण्डेय पुराण में यथावत क्रम वर्णन कर लोकोपकार के लिए संसार में प्रचारित की. इस प्रकार दुर्गा सप्तशती में दुर्गा के चरित्रों का वर्णन है.

मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परम गोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया, जो देवी के नौ मूर्ति-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नव दुर्गा' कहा जाता है. उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है. श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है, क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी है. यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है. यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है. सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्तोत्र एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है.

देवी का ध्यान मंत्र: देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य। प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।

देवी का ध्यान मंत्र

इस प्रकार भगवती से प्रार्थना कर भगवती के शरणागत हो जाएं. देवी कई जन्मों के पापों का संहार कर भक्त को तार देती है. वहीं जननी सृष्टि की आदि, अंत और मध्य हैं.

देवी से प्रार्थना करें:शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे! सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तु ते॥

देवी से प्रार्थना करें

सर्वकल्याण एवं शुभार्थ प्रभावशाली माना गया है: सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

सर्वकल्याण एवं शुभार्थ प्रभावशाली मंत्र

बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए: सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥

बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के मंत्र

सर्व बाधा शांति के लिए: सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।

सर्वाबाधा शांति का मंत्र

आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र जो स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया हैं:देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

अर्थात शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है. देवी से प्रार्थना कर अपने रोग, अंदरूनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थना भी करें. ये भगवती आपके रोग को हरकर आपको स्वस्थ कर देंगी.

विपत्ति नाश के लिए: शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे। सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते ।।

मोक्ष प्राप्ति के लिए: त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया। सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः।।

शक्ति प्राप्ति के लिए: सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।।

अर्थातः तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो. नारायणि! तुम्हें नमस्कार है.

रक्षा का मंत्र: शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।

अर्थातः देवी! आप शूल से हमारी रक्षा करें. अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें.

रोग नाश का मंत्र: रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।

अर्थातः देवी! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो. जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं उनको विपत्ति तो आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं.

दु:ख-दारिद्र नाश के लिए: दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। द्रारिद्रय दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकारणाय सदाह्यद्र्रचिता।।

ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति-मोक्ष के लिए: ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः। शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥

भय नाशक दुर्गा मंत्र: सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, भयेभ्यस्त्राहि देवी दुर्गा देवी नमोस्तुते।

स्वप्न में कार्य सिद्धि-असिद्धि जानने के लिए: दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके। मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय।।

अर्थात शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवी हम पर प्रसन्न होओ. संपूर्ण जगत माता प्रसन्न होओ. विश्वेश्वरी! विश्व की रक्षा करो. देवी! तुम्ही चराचर जगत की अधिश्वरी हो.

मां के कल्याणकारी स्वरूप का वर्णन: सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तु ते॥

अर्थात हे देवी नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो. कल्याणदायिनी शिवा हो. सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो, तुम्हें नमस्कार है. तुम सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो. नारायणी! तुम्हें नमस्कार है.

इस प्रकार देवी उनकी शरण में जाने वालों को इतनी शक्ति प्रदान कर देती है कि उस मनुष्य की शरण में दूसरे लोग आने लग जाते हैं. देवी धर्म के विरोधी दैत्यों का नाश करने वाली है. देवताओं की रक्षा के लिए देवी ने दैत्यों का वध किया. वह आपके आतंरिक एवं बाह्य शत्रुओं का नाश करके आपकी रक्षा करेगी. आप बारंबार उसकी शरणागत हो एवं स्वरमय प्रार्थना करें.

हे सर्वेश्वरी! तुम तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो. पुन: भगवती के शरणागत जाकर भगवती चरित्र को पढ़ने, उनका गुणगान करने मात्र से सर्वबाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्र से संपन्न होंगे. इसमें तनिक भी संदेह नहीं. भगवती के प्रादुर्भाव की सुंदर गाथाएं सुनकर मनुष्य निर्भय हो जाता है. मुझे अनुभव है कि भगवती के माहात्म्य को सुनने वाले पुरुष के सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं. उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित रहता है. स्वयं भगवती का वचन है कि मेरी शरण में आया हर व्यक्ति दु:ख से परे हो जाता है. यदि आप संगणित हैं और आपके बीच दूरियां हो गई हैं तो आप पुन: संगठित हो जाएंगे. बालक अशांत है तो शांतिमय जीवन हो जाएगा.

श्लोक: शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने। ग्रहपीड़ासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम।।

देवी का श्लोक

अर्थात सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रह जनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर माहात्म्य श्रवण करना चाहिए. इससे सब पीड़ाएं शांत और दूर हो जाती हैं. मनुष्यों के दु:स्वप्न भी शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाते हैं. ग्रहों से अक्रांत हुए बालकों के लिए देवी का माहात्म्य शांतिकारक हैं. देवी प्रसन्न होकर धार्मिक बुद्धि, धन सभी प्रदान करती हैं. स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगंधादिभिस्तथा ददाति वित्तं पुत्रांश्च मति धर्मे गति शुभाम्।

जाप विधि: नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रात: स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप, दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें. मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें. शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष या तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पांच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ कहें. पूरे नवरात्र जाप करने से वांछित मनोकामना अवश्य पूरी होती है. समयाभाव में केवल 10 बार मंत्र का जाप निरंतर प्रतिदिन करने पर भी माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं. दुर्गति नाशिनी जय जय। काल विनाशिनी दुर्गा जय जय ।।

श्लोक:नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्।।

देवी श्लोक

अर्थात देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है. प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है. हम लोग नियमपूर्वक जगदंबा को नमस्कार करते हैं. शैद्रा को नमस्कार है. नित्या गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है. ज्योत्सनामयी चंद्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है. इस प्रकार देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं. देवी मां दुर्गा अपनी शरण में आए हर शरणार्थी की रक्षा कर उसका उत्थान करती हैं. देवी की शरण में जाकर देवी से प्रार्थना करें, जिस देवी की स्वयं देवता प्रार्थना करते हैं. वह भगवती शरणागत को आशीर्वाद प्रदान करती हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि etvbharat.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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Last Updated : Apr 1, 2022, 9:01 AM IST

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