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Karnataka High Court ने कहा- निचली अदालतों को 'मरते दम तक कैद' की सजा देने का अधिकार नहीं

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Published : Jul 23, 2023, 8:33 AM IST

कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी अपराधी को उम्रकैद यानी 'मरते दम तक कैद' की सजा देने का अधिकार नहीं है. एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस तरह की सजा सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही दे सकता है. पढ़ें पूरी खबर...

Karnataka High Court
प्रतिकात्मक तस्वीर

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए एक व्यक्ति की 'मरते दम तक कैद' की सजा को माफ कर दिया है. हसन जिले के द्यावपनहल्ली निवासी हरीश और लोकेश ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी. याचिकार्ताओं को ट्रायल कोर्ट ने हत्या के लिए आजीवन कारावास यानी 'मरते दम तक कैद' की सजा सुनाई थी.

न्यायमूर्ति के. सोमशेखर और न्यायमूर्ति के. राजेश राय की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आजीवन कारावास जिसमें 'मरते दम तक कैद' की सजा दी गई हो वाले मामले सबसे नृशंस और दुर्लभ होने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अपराध एवं आपराधिक जांच सामान्य है. पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया है कि यह अपराध 'दुर्लभ' है.

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी अपराधी को 'मरते दम तक कैद' की सजा देने का विशेष आदेश सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही जारी कर सकता है. ट्रायल कोर्ट के पास ऐसी सजा देने का कोई अधिकार नहीं है.

हाईकोर्ट ने इस मामले के पहले आरोपी हरीश की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है. कोर्ट ने आरोपी लोकेश को यह मानते हुए बरी कर दिया गया है कि जांचकर्ता आरोपों को साबित करने और पर्याप्त सबूत देने में विफल रहे हैं. साथ ही आरोपी लोकेश को ट्रायल कोर्ट ने पहले आरोपी हरीश के बयान के आधार पर सजा सुनाई है. पीठ ने कहा कि केवल दूसरे आरोपियों के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी मान लेना ठीक नहीं है जबकि आरोपी के खिलाफ कोई उचित सबूत न हो. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हरीश को दी गई जमानत रद्द कर दी जाएगी और उसे अगले दो सप्ताह में सजा भुगतने के लिए ट्रायल कोर्ट में पेश होना होगा.

मामले की पृष्ठभूमि: 16 फरवरी, 2012 को हसन जिले के एक गांव में खेत में काम करते समय हरीश ने कुमार के सिर और छाती पर रॉड से वार करके डी.आर. कुमार की हत्या कर दी थी. हलेबिदु पुलिस स्टेशन के अंतर्गत यह मामला दर्ज किया गया था. बताया जाता है कि डी.आर. कुमार के आरोपी हरीश के कुमार की पत्नी राधा से अवैध संबंध थे. इस मामले में आरोप है कि हरीश ने अपने भाई लोकेश की मदद से शव को मालवाहक ऑटो रिक्शा में ले जाकर खाली जमीन में दफना दिया. 2017 में, मामले की सुनवाई करने वाली अदालत ने हरीश, राधा और लोकेश को दोषी ठहराया और सजा सुनाई. हत्या के जुर्म में हरीश को आजीवन कारावास और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई.

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साथ ही आपराधिक साजिश रचने और सबूत मिटाने के आरोप में 3 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. जुर्माने की राशि मृतक डी.आर. कुमार के बच्चों को देने का आदेश दिया गया. साथ ही सबूत मिटाने में योगदान देने वाले लोकेश को तीन साल की सजा सुनाई गई. इस पर सवाल उठाते हुए हरीश और लोकेश ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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