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70 से 21 के दशक तक हर बात पर बोले रजा मुराद, राज कुंद्रा मामले में कही ये बड़ी बात

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Published : Aug 11, 2021, 9:31 PM IST

'इंडिया इन माय वैंस' फिल्म की शूटिंग के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे फिल्म अभिनेता रजा मुराद ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत की. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने अपने फिल्मी करियर के अनुभव को साझा किया. साथ ही नोएडा में फिल्म सिटी बनाने के फैसले पर सरकार की तारीफ की. उन्होंने सरकार के कदम को सराहनीय बताया. उन्होंने राजकुंद्रा मामले पर भी खुलकर अपनी बात रखी.

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लखनऊ : राजधानी में बुधवार को बॉलीवुड अभिनेता रजा मुराद से ईटीवी भारत की टीम ने खास बातचीत की. बातचीत के दौरान शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा पर पूछे गए सवाल के जवाब में रजा मुराद ने कहा कि मामले की जांच चल रही है. मुझे नहीं लगता कि जब तक कोई आखिरी फैसला नहीं आ जाता तब तक किसी को कोई टिप्पणी करना चाहिए. आज हर घर में लोग खुद ही अदालत खोल लेते हैं और दोषी करार कर देते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए. हालांकि, इस मुद्दे पर पुलिस जांच कर रही है. आखरी फैसला आने का इंतजार करें.

बॉलीवुड अभिनेता रजा मुराद ने कहा कि वर्तमान में जितनी भी नई फिल्में आ रही हैं, उनकी स्क्रिप्टिंग सही नहीं होती. कहीं न कहीं कुछ कमी रह जाती है, जिसकी वजह से फिल्में कई बार फ्लॉप हो जाती हैं. रजा मुराद ने कहा कि अब की फिल्मों के खलनायक की एक्टिंग देखकर कई बार हंसी आ जाती है. मालूम हो कि बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में रजा मुराद ने 70 के दशक में एंट्री की थी, जिसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक सुपर-डुपर हिट 250 से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिसमें राम लखन, राम तेरी गंगा मैली, हिना और खुद्दार जैसी फिल्में शामिल हैं.

फिल्म अभिनेता रजा मुराद से खास बातचीत.

प्रश्न- आप फिल्म 'इंडिया इन माय वैंस' में किस भूमिका में हैं?
उत्तर- यह जो फिल्म हैं 'इंडिया इन माय वैंस' जिसके लिए वह लखनऊ आए हैं. इस फिल्म में एक कश्मीरी बुजुर्ग का रोल उन्होंने किया है. बुजुर्ग की पत्नी और एक बेटा है. बाप की बेटे से नहीं बनती है. एक जनरेशन गैप की वजह से दोनों बाप-बेटे में कहासुनी होती रहती है. मां सुहाग और औलाद के बीच में पिस जाती है. एक दिन बेटे से बाप की काफी बहस होती है और बेटा गुस्से में घर छोड़कर चला जाता है. इसी कहानी पर आधारित उनका रोल है.

प्रश्न- फिल्म इंडस्ट्री में 70 के दशक में और अब में क्या बदलाव हुआ?
उत्तर- बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में आए हुए उन्हें इस साल 50 साल पूरे हो गए हैं और वह गोल्डन जुबली मना रहे हैं, लेकिन कभी लगता नहीं है. ऐसा लगता है कि अभी सिर्फ 50 दिन ही हुए हैं. फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी तब्दीली आई है. कुछ अच्छी आई है, कुछ अच्छी नहीं आई है. आज पूरा का पूरा मामला डिजिटल हो गया है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था. अब कैमरे, टेक्निक अच्छी आ गई हैं. स्मार्ट फोटोग्राफर आ गए हैं, जो हर सिचुएशन में बेहतरीन शॉट और पिक्चर खींचते हैं. पहले के समय में लाइटिंग में बहुत समय लगता था. आज हर चीज पहचान हो गई है. अगर किसी चीज में कमी आई है तो लिखने में आई है. अब वैसे कहानियां नहीं लिखी जाती हैं, जैसे पहले होती थीं. पहले के जैसे कहानी, डायलॉग, संवाद और गीत नहीं लिखे जाते हैं. इस चीज में थोड़ी कमी आई है.

प्रश्न- फिल्म जगत में वॉयस के लिए निगेटिव किरदार पहचाना जाता था, आज खलनायकों में वो आवाज नहीं है?
उत्तर- देखिए आवाज तो ऊपर वाले की देन है. किसी को भारी आवाज देते हैं तो किसी को सॉफ्ट. पहले के जो खलनायक थे, उसके आते ही खलबली मच जाती थी, बच्चे डर जाते थे और उसकी एक बड़ी खतरनाक इमेज होती थी. खतरनाक प्लान होते थे. 2 तरह की फिल्मों में कैरेक्टर होते थे या तो ब्लैक या फिर व्हाइट. आज वो विलन का कैरेक्टर ब्लैक नहीं रह गया है, वह ग्रेस हो गया है. पहले जो विलन का खौफ हुआ करता था, वह आज नहीं है. वर्तमान में हीरो और हीरोइनों ने खलनायकों का रोल करना शुरू कर दिया है. गुप्त फिल्म में काजोल ने शानदार अभिनय किया था. अजय देवगन, अक्षय कुमार, शाहरुख खान सब ने विलेन का रोल किया है. अब क्या है कि पहले विलेन से जो खौफ का माहौल बनता था, वह आज नहीं बनता है.

प्रश्न- आप जब आज के दौर के खलनायक को देखते हैं तो आपको कैसा लगता है?
उत्तर- देखिये मैं उन सीनियर्स में से नहीं हूं, जो ये कहते थे कि जमाना तो हमारा था, फिल्में तो हमारी थीं और जलवा तो हमारा था. आज भी अच्छे एक्टर हैं. यह डायरेक्टर पर निर्भर करता है कि खलनायक को किस तरह से वह प्रेजेंट करता है. पहले के और अब के डायरेक्टरों में प्रेजेंटेशन का भी काफी फर्क है. कई बार विलेन के रोल पर हंसी भी आती है. अब विलेन का रोल ग्रेस हो गया है.

प्रश्न- क्या आपको नहीं लगता भोजपुरी फिल्मों में महिलाओं को इंटरटेनमेंट का पात्र न बनाकर फिल्में बनानी चाहिए?
उत्तर- यह एक विडंबना है कि वह डबल मीनिंग के डायलॉग, डबल मीनिंग के गाने गाते हैं. इन गानों को सुनकर शर्म आती है. वह लोग सिर्फ पैसा कमाने के लिए ऐसी ओछी हरकतें कर रहे हैं. दर्शकों का टेस्ट खराब कर रहे हैं. वह चाहते हैं कि दर्शकों को इसी तरह की अश्लील फिल्में अच्छी लगें. मैं समझता हूं कि यह सही नहीं है. अच्छी फिल्में बन सकती हैं. मुझे याद है कि पहली भोजपुरी फिल्म बनी थी, 'गंगा मैया तोहे पीयरी चढ़ाइबो व गंगा किनारे मोरा गांव'. ये हिट फिल्में हैं. किसी फिल्म में कोई अश्लीलता नहीं थी. फिल्म में दम होता है तो फिल्म चलती है. यह खामखा की गलतफहमी है कि एक गाने पर फिल्म चल गई या अश्लीलता पर चल गई. वहां पर भी तब्दीली आनी चाहिए, जो आ नहीं रही है या लोग आने नहीं दे रहे हैं.

प्रश्न- ओटीटी प्लेटफार्म में अश्लीलता बढ़ रही है, इस पर क्या कहना है? वो भी ऐसी सरकार में जो अश्लीलता को कभी बर्दास्त नहीं करती?
उत्तर- ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रोक लगनी चाहिए. इसके लिए आपको खुद सेंसर बोर्ड बनना है. आपको खुद ऐसी कमी नहीं दिखाना है, जिसकी सेंसर बोर्ड अनुमति नहीं देता है. आपको जो छूट मिली है, जो आजादी मिली है, उसका बड़ा गलत उपयोग कर रहे हैं. ऐसी फिल्में बनती हैं, जो आप अपने परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते हैं. हर बात की हद होती है, जब कोई भी बात हद पार कर जाती है तब उसका कोई न कोई इलाज जरूर होता है. अब कुछ ज्यादा ही हद हो रही है. गालियां, अश्लीलता और नग्नता भी दिखाई जा रही है. कहीं न कहीं इस पर अंकुश लगाना जरूरी हो गया है.

प्रश्न- अब वेब सीरीज का जमाना है, आपके समय में नहीं था तो कितना संघर्ष था उस दौर में?
उत्तर- बहुत संघर्ष होता था. उस समय टीवी ही नहीं था, आज तो टीवी है. टीवी सीरियल्स हैं, आज सेटेलाइट चैनल हैं, ओटीटी प्लेटफॉर्म खुल गया है. अब अपने आप को साबित करने के मौके बहुत हैं. हमारे जमाने में ऐसा कुछ भी नहीं था. आज अच्छी बात है कि आइए आप काम कीजिए, लेकिन आपकी पहचान बनना बहुत जरूरी है. अगर आप टीवी पर काम कर रहे हैं या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं तो लोग आपको देख रहे हैं. आपके चेहरे से आपको पहचान रहे हैं, लेकिन वह कोई पहचान नहीं है. पहचान आपके नाम से होनी चाहिए. पहचान ऐसी होनी चाहिए ताकि लोग आपको आपकी शक्ल और आपके नाम से भी जानें.

प्रश्न- बॉलीवुड में कभी नशाखोरी का मामला सामने आता है तो कभी अश्लील वीडियो का मामला? हाल ही में राज कुंद्रा का मामला सामने आया है.
उत्तर-पहले के जमाने में यह सब डिजिटल इनविटेशन था ही कहां, ये तो अब आया है. देखिए मैं एक बात मानता हूं कि मैं एक देश का नागरिक हूं और इस देश का कानून ये कहता है कि जब तक किसी मुजरिम पर आरोप सिद्ध नहीं हो जाता है तब तक वह बेगुनाह है. राज कुंद्रा पर आरोप लगे हैं. वह पुलिस की हिरासत में हैं और उन पर मुकदमा चलेगा. यहां क्या होता है कि हर आदमी अपनी अदालत खोल कर बैठ जाता है. खुद ही वकील है, खुद ही जज है और खुद ही फैसला सुना देते है.

लोगों से यही कहना चाहूंगा कि ठहर जाएं और फैसला अदालत को करने दें. ये तो अदालत तय करेगी कि वह बेगुनाह हैं या गुनहगार हैं. उस पर अदालत अपने तरीके से कार्रवाई करेगी. जुर्म साबित होना या बेगुनाह साबित करना यह अदालत का काम है. इस काम को हमें अदालत पर छोड़ देना चाहिए, बजाय इसके की हर घर में अदालत खुली हुई है और उस पर उंगली उठाई जा रही है. मैं उस पर यह नहीं कह रहा कि वह बेगुनाह है या गुनहगार है. मुझे कहने का कोई हक नहीं है. इस मामले में क्या दलीले हैं, वह अदालत में पेश होंगी. अदालत किस नतीजे पर पहुचेंगी, उसका हमें इंतजार करना चाहिए.

प्रश्न- आपने लखनऊ में कौन सी मुख्य शूटिंग की है, लखनऊ आना आपको कैसा लगता है?
उत्तर-एक शेर है लखनऊ के लिए, 'ए-शहरें लखनऊ तुझे मेरा सलाम है, तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है. बहुत प्यारा शहर है. नवाबों का शहर है और जो तहजीब तबस्सुम के लिए फेमस है. यहां वो रिवायत आज भी मौजूद है. किसी भी गली में चले जाइए, ऐसा लगता है कि वह हमारे ही लोग हैं. लखनऊ आना हमेशा मेरे लिए फक्र की बात है.

प्रश्न- नोएडा में फिल्म सिटी बन रही है, आप क्या कहेगें इस पर.. युवाओं को मौका मिलेगा?
उत्तर- देखिये ऐसा है कि यह जो कदम उठाया गया है, यह सरकार का सराहनीय कदम है. मैं इसकी तारीफ करता हूं. मैं कहता हूं कि जब आप इतनी सुविधाएं दे रहे हैं डायरेक्टर्स को तो इसमें एक चीज होनी चाहिए कि 20 प्रतिशत फिल्म में जो कैरेक्टर होंगे, वह आप यूपी के लोकल एक्टर्स को देंगे, जिनका ताल्लुक यूपी से है. अगर मौके यूपी के एक्टर्स को देंगे तो उसमें डायरेक्टर का फायदा यह है कि उन्हें मुंबई से आर्टिस्ट्स बुलवाने नहीं पड़ेंगे. यूपी के आर्टिस्ट को रोजगार मिल जाएगा. कलाकारों का ऑडिशन लीजिये आप, उनको सिलेक्ट कीजिए, उसके बाद आप उनको भी एक मौका दीजिए ताकि नए कलाकार को एक मौका मिल सके.

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