रायपुर: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों की मनोदशा को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं. आखिर आए दिन ये जवान क्यों आत्मघाती कदम उठा रहे हैं? जगदलपुर की घटना भी इसका ही एक उदाहरण है. जहां एक जवान ने सर्विस रिवॉल्वर से अंधाधुंध फायरिंग कर अपने ही एक साथी जवान को मौत के घाट उतार दिया. इस वारदात में एक अन्य जवान भी घायल हो गया. यह कोई पहली घटना नहीं है, जब जवान ने अपने साथियों पर फायरिंग की. इसके पहले भी कई घटनाएं देखने को मिल चुकी हैं.
अपने ही साथी के खून के प्यासे क्यों हो जाते हैं जवान?
सवाल यह उठता है कि जो जवान चुस्त-दुरुस्त होकर नक्सलियों से जंगलों में मोर्चा लेने को तैनात रहते हैं, बाद में वही जवान या तो आत्महत्या कर लेते हैं या फिर अपने ही साथी के खून के प्यासे हो जाते हैं. आखिर इसके पीछे मुख्य वजह क्या है. इस वजह को तलाशने की कोशिश की ETV भारत ने.. ईटीवी भारत ने मिलिट्री साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर वर्णिका शर्मा से खास बातचीत की. उनसे जानने की कोशिश की, कि आखिर जवान क्यों ऐसे घातक कदम उठा रहे हैं, इसके पीछे क्या वजह है और इसे रोकने के क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
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तनाव की हो सकती हैं कई वजहें
डॉ वर्णिका शर्मा ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था का संपूर्ण दायित्व सुरक्षाबलों की जवाबदेही होती है. केंद्र और राज्य शासन से अनुमोदित सुरक्षा बल ये कार्य करते हैं. संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में दायित्व निर्वहन अपेक्षाकृत चुनौतीपूर्ण होता है. नक्सलियों के कोवर्ट वॉर से सदैव फियर एंड शॉप का दबाव होता है. सघन भौगोलिक दशा तनाव के प्राथमिक कारण होते हैं. इसके अलावा दैनंदिनी से जुड़ी कई समस्याएं हैं, उन्हें लेकर अधिकारियों से सामंजस्य की कमी होना भी शामिल है. इसके अलावा सामान्य पारिवारिक जनजीवन से दूरी और संपर्क का अभाव तनाव का मुख्य कारण होता है.
मानसिक स्वास्थ्य का नहीं रखा जाता ख्याल
डॉ वर्णिका शर्मा ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों को ट्रेनिंग में तैयार कर दिया जाता है. उन्हें तैनाती के दौरान फिजिकल परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता. शारीरिक थकान जरूर इन जवानों को परेशानी में डाल देती है. अक्सर मोर्चों पर तैनात रहते हुए ये जवान मानसिक थकान से हार जाते हैं. उसके बाद या तो वे आत्मघाती कदम उठा लेते हैं या फिर उनके क्रोध का शिकार उनके साथी या आसपास के लोग होते हैं.