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छत्तीसगढ़ में बीजेपी की प्रचंड जीत, जानिए किन समीकरणों में उलझ गई कांग्रेस ?

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 3, 2023, 10:24 PM IST

Chhattisgarh Vidhan Sabha Chunav Result 2023 छत्तीसगढ़ में जैसा प्रदर्शन पिछली बार कांग्रेस ने किया था.ठीक वैसा ही प्रदर्शन इस बार बीजेपी ने किया है. बीजेपी ने अब तक के चुनाव इतिहास में छत्तीसगढ़ विधानसभा में 50 सीटों का आंकड़ा पार नहीं किया.लेकिन इस बार बीजेपी 50 प्लस सीटें लाकर विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया है. Meaning of BJP big victory in chhattisgarh

Meaning of BJP big victory
छत्तीसगढ़ में बीजेपी की प्रचंड जीत

रायपुर :छत्तीसगढ़ में बीजेपी 50 से ज्यादा सीटों पर काबिज हो चुकी है. इससे पहले कभी भी बीजेपी ने 50 का आंकड़ा पार नहीं किया था. वो भी तब जब पिछली बार 15 साल बाद बीजेपी 15 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी के लिए ये हार इतनी शर्मनाक थी कि इससे उबरने में उसे साढ़े चार साल का लंबा समय लगा. चुनाव से 4 महीने पहले तक बीजेपी 2023 की लड़ाई में कहीं नहीं थी.आलम ये था कि हर महीने एक नया प्रदेश प्रभारी को प्रदेश में काम करने का मौका मिलता. पहले डी पुरंदेश्वरी और फिर ओम माथुर को बीजेपी ने यहां का प्रभारी बनाया.ओम माथुर ने पूरे प्रदेश का दौरा करके हर विधानसभा से फीडबैक लिया.इसके बाद संगठन में बड़ा बदलाव किया गया.ऊपर से लेकर नीचे तक नए लोगों को पार्टी में जगह दी गई. चाहे मीडिया विभाग हो या फिर जिला संगठन हर जगह बीजेपी ने बदलाव किए.

किन समीकरणों में उलझ गई कांग्रेस ?:बीजेपी ने इसकी तैयारी इतनी खामोशी से की कि विरोधियों को इसकी भनक तक नहीं लगी. बीजेपी ने कार्यकर्ताओं की सुनी.क्योंकि पिछली बार के चुनाव में कार्यकर्ताओं ने ही पार्टी की लुटिया डुबोई थी.लेकिन इस बार पांच साल विपक्ष में रहने के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं को ये समझ आ गया कि अबकी बार मेहनत नहीं की तो पार्टी में पूछ परख खत्म हो जाएगी.इसी के साथ बीजेपी ने दूसरे राज्यों से ऑब्जर्वर बुलाकर संभाग की सीटों पर फीड बैक लिया.ताकि किसी भी तरह की कोई गलती ना हो.जब सारे विधानसभाओं से फीडबैक आ गया तो पार्टी ने टिकट बांटे.जिसमें जातिगत समीकरण, धार्मिक मुद्दा, एंटी इनकम्बेंसी और सरकार के कामकाज में कमी पर प्लानिंग की गई. जिसका नतीजा ये रहा कि प्रदेश में आज बीजेपी अपनी खोई ताकत वापस पाकर 50 से ज्यादा सीटों पर विजयी हुई है.

बीजेपी में नेताओं का बढ़ा कद : छत्तीसगढ़ में इस चमत्कार की उम्मीद बीजेपी को भी नहीं थी.सिर्फ कार्यकर्ताओं के भरोसे पार्टी ने चुनावी मैदान में उस टीम से लोहा लिया जो 75 प्लस का दावा कर रही थी. भूपेश शासन में योजनाएं और कर्जमाफी को लेकर काफी सकारात्मक माहौल बनाया गया था.बावजूद इसके हर संभाग के सांसदों और केंद्रीय पद के नेताओं को जमीन में उतारकर बीजेपी ने अपना खोया वजूद वापस पाने की लड़ाई लड़ी. जिसमें बिलासपुर में अरुण साव, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल, दुर्ग में विजय बघेल, सरगुजा में विष्णुदेव साय और बस्तर में लता उसेंडी को जिम्मेदारी दी गई.अब जब बीजेपी ने पहली बार 50 प्लस का आंकड़ा पार किया है तो प्रदेश में रमन सिंह, अरुण साव, विजय बघेल, बृजमोहन अग्रवाल, विष्णुदेव साय और लता उसेंडी का कद बढ़ेगा.

  1. रमन सिंह-राजनांदगांव जिले में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करके ये भरोसा दिलाया कि यदि एकजुट होकर मेहनत की जाए तो जीत पक्की है.रमन सिंह भले ही इस बार सीएम फेस का चेहरा नहीं थे.बावजूद इसके केंद्रीय नेतृत्व ने जब टिकट पर रायशुमारी की तो रमन सिंह से हर बार सलाह ली गई. इस बार टिकट वितरण में रमन सिंह का रोल ज्यादा था.
  2. अरुण साव-अरुण साव ने प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी बखूबी निभाई.टिकट बटवारे के बाद पार्टी के अंदर उठी विरोध की लहर को शांत किया.अरुण साव ने बिलासपुर सीट से दावेदारी की.बिलासपुर संभाग में कांग्रेस काफी मजबूत हो चुकी थी.लेकिन अरुण साव ने एक के बाद केंद्रीय मंत्रियों समेत पीएम मोदी का दौरा सही समय पर करवाया.जिसका नतीजा सबके सामने है.
  3. विजय बघेल- बीजेपी घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष रहे. जिसके कारण पार्टी को जनता से अच्छा रिस्पॉन्स मिला. टिकट मिलने के तुरंत बाद भूपेश बघेल पर हमलावर रहे.हर बार भूपेश बघेल को खुली चुनौती.यहां तक की पाटन विधानसभा में बड़ा माहौल तैयार किया.सीएम भूपेश बघेल को अपनी सीट बचाने के लिए वोटिंग के एक दिन पहले तक पाटन की गलियों में नजर आए. भूपेश बघेल ने आखिरी दिन तक कार्यकर्ताओं को रिचार्ज किया.ताकि अपनी सीट बचा सके.इसका असर ये हुआ कि दुर्ग संभाग की दूसरी सीटों पर सीएम का ध्यान भटका.वहीं जिसे दुर्ग संभाग की जिम्मेदारी दी गई वो खुद अपनी सीट बचाने में संघर्ष करते नजर आए.
  4. बृजमोहन अग्रवाल - बीजेपी के पुराने नेताओं में से एक बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर संभाग की सभी सीटों पर प्लान तैयार किया. पार्टी ने जिले की सातों विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की.बृजमोहन अग्रवाल बीजेपी के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. वोटिंग से पहले रायपुर की मुस्लिम बाहुल्य इलाके में बृजमोहन अग्रवाल पर हमला होने की बात सामने आई.जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा.आखिरकार दक्षिण विधानसभा में वोटों का ध्रुवीकरण हुआ.जिसका फायदा जिले की सातों सीटों पर पड़ा.
  5. विष्णुदेव साय - सरगुजा संभाग में बीजेपी का सूपड़ा साफ था. चुनाव से पहले ये कयास लगाए जा रहे थे कि मुकाबला फिफ्टी-फिफ्टी का होगा.लेकिन बीजेपी की तैयारी अलग थी.जब नतीजे आए तो संभाग से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो चुका था.इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस की आंतरिक कलह है.टीएस सिंहदेव ने जिन कांग्रेस नेताओं का टिकट कटवाया.उन्होंने ही कांग्रेस के लिए कुंआ खोद दिया. हालात ये हो गए कि टीएस सिंहदेव खुद अपना किला नहीं बचा पाए.उन्हें उन्हीं के शिष्य ने मामूली अंतर से चुनावी मैदान में धराशायी कर दिया.ये मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि वो चुनाव से पहले डिप्टी सीएम बनाए गए थे.साथ ही साथ काउंटिंग से पहले खुद को सीएम बनाने का दावा ठोक रहे थे.इन्हीं सभी चीजों को विष्णुदेव साय ने भाप लिया. इसके बाद कांग्रेस से नाराज कार्यकर्ताओं को साधने में साय की मदद से बीजेपी कामयाब हो गई. जिसका नतीजा सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर आ अप्रत्याशित जीत बीजेपी ने दर्ज की है.

प्रदेश प्रभारी ओम माथुर का बढ़ा कद :छत्तीसगढ़ चुनाव में सोई बीजेपी को जगाने के लिए पहले डी पुरंदेश्वरी और फिर ओम माथुर को प्रदेश प्रभारी बनाया गया. ओम माथुर संघ से जुड़े एक दिग्गज नेता हैं. जो राजस्थान के निवासी हैं. वर्तमान में ओम माथुर राजस्थान से ही राज्यसभा सांसद है. इससे पहले ओम माथुर राजस्थान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके थे. छत्तीसगढ़ के प्रदेश प्रभारी बनाए जाने से पहले ओमप्रकाश माथुर उत्तर प्रदेश के प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे.और इससे पहले ओम माथुर ने गुजरात और महाराष्ट्र के प्रभारी रहते हुए पार्टी को सत्ता में वापसी कराई थी. अब एक बार फिर ओम माथुर का मैजिक छत्तीसगढ़ में चला है. उनके प्लान और कार्यकर्ताओं को दिए गए टास्क को समय ने पूरा करवाया. जिसका नतीजा आज सभी के सामने है.

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