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कोंडागांव: छल कपट से जनजाति समाज के लोगों का कराया जा रहा धर्मांतरण: भोजराज नाग

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Published : Oct 25, 2020, 2:09 AM IST

बस्तर संभाग में सदियों से चली आ रही परंपराओं को नष्ट किया जा रहा है. इसे लेकर बीजेपी के पूर्व विधायक भोजराज नाग ने कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने कहा कि लोभ छल से जनजाति समाज के लोगों का धर्मांतरण कराया जा रहा है.

Bhojraj Nag accused of conversion
भोजराज नाग ने धर्मांतरण का लगाया आरोप

कोंडागांव:बीजेपी के पूर्व विधायक भोजराज नाग ने बस्तर संभाग में सदियों से चली आ रही परंपराओं को समाज सेवी संस्था पर नष्ट करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि समाज सेवी संस्था सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा की आड़ में जनजाति समाज के प्रथा को नष्ट कर रही है. जनजाति समाज के परंपराओं को लेकर अनर्गल भ्रम फैलाने का काम किया जा रहा है. पूर्व विधायक ने इस पर कार्रवाई करने की मांग की है.

भोजराज नाग ने धर्मांतरण का लगाया आरोप

भोजराज नाग ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र में जनजाति समाज को रूढ़ि परंपराओं के अनुसार पेसा कानून (विशेष ग्राम सभा) आरक्षण जैसा विशेष अधिकार मिला हुआ है. इसके बाद भी लोभ छल से धर्मांतरण कर चंगाई सभा में देवी देवताओं को शैतान, डायन जैसे अपशब्दों का प्रयोग किया जा रहा है. इतना ही नहीं अवैध रूप से चर्च का निर्माण भी कराया जा रहा है.

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मामले में बीजेपी के पूर्व विधायक भोजराज नाग ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के सरकार में जनजाति नेता स्वर्गीय कार्तिक उरांव लगभग 235 सांसदों का हस्ताक्षर करवा कर प्रस्ताव पारित करने का प्रस्ताव संसद में रखा गया था, लेकिन यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका. उन्होंने कहा कि स्वर्गीय कार्तिक उरांव के जयंती पर 2910-2020 को जनजाति सुरक्षा मंच के माध्यम से निम्न बिंदुओं पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा.

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  • जनजाति समाज के व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर अपने रूढी परंपरा को नहीं मानता है. ऐसे व्यक्तियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. तत्काल बंद किया जाए.
  • विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा 600 वर्षों से बस्तर संभाग के सभी समाज और राज परिवार के सहयोग से मनाया जाता है. यह सामाजिक समरसता और रूढी परंपरा का अद्भुत उदाहरण है.
  • आजादी के पहले से समाज प्रमुख, मांझी, मुखिया, पुजारी, गायता, पेरमा, सामाजिक प्रमुखों के साथ राज परिवार के द्वारा सदियों से चली आ रही है. इस व्यवस्था को दोबारा समाज प्रमुखों को सौंपा जाए. शासन प्रशासन का हस्तक्षेप समाप्त किया जाए.

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