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SPECIAL: संविधान सभा में आदिवासियों की आवाज उठाने वाले 'छत्तीसगढ़ के गांधी'

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Published : Jan 25, 2021, 11:27 AM IST

26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना. संविधान सभा में कई लोगों ने अपने विचार रखे. 2 साल 11 महीने और 18 दिन के मंथन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा संविधान बनकर तैयार हुआ. संविधान सभा में उस वक्त के अविभाजित मध्य प्रदेश के बस्तर का एक सपूत था, जिसके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. पढ़िए कहानी 'छत्तीसगढ़ के गांधी' की.

Constitution man of chhattisgarh
छत्तीसगढ़ के संविधान पुरुष

कांकेर: 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान के प्रारूप को स्वीकार किया था. जिसे डॉक्टर बीआर अंबेडकर की अध्यक्षता में ड्राफ्टिंग कमेटी ने तैयार किया था. इसी रूप में संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना. हालांकि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को ही अंगीकृत हुआ था. संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी. जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 अलग-अलग रियासतों के प्रतिनिधि थे.

छत्तीसगढ़ के गांधी

कांकेर रियासत (उत्तर बस्तर) के गांव कन्हारपुरी के रहने वाले स्वर्गीय रामप्रसाद पोटाई भी संविधान सभा के सदस्य थे. उन्हें रियासत के प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया था. उन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए संविधान सभा में आवाज उठाई. 1950 में वे कांग्रेस की ओर से सांसद मनोनीत हुए थे. बाद में भानुप्रतापपुर के विधायक भी रहे. कैबिनेट मिशन योजना के तहत भारतीय समस्या के निराकरण के लिए चुने गए थे.

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संविधान निर्माण में निभाई अहम भूमिका

रामप्रसाद पोटाई के पोते नितिन पोटाई ने ETV भारत से कहा कि स्व. रामप्रसाद पोटाई छत्तीसगढ़ के उन महापुरुषों में से एक है, जिन्होंने भारत के संविधान के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे भारतीय संविधान सभा में रियासत की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. बहुत सारे प्रावधान उस समय लागू हुए. खास तौर से पोटाई जी ने आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया. आज जिस सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय की बात विभिन्न संगठन करते हैं, उसे 70 साल पहले रामप्रसाद पोटाई ने कहा था. रामप्रसाद पोटाई श्रम कानून के जानकार थे. वो चाहते थे कि यहां के मजदूरों को उनके श्रम का वाजिब मूल्य मिले.

स्व. रामप्रसाद पोटाई

ग्रामीणों ने साझा की यादें

जब स्व. रामप्रसाद पोटाई संविधान सभा के सदस्य बने थे, तब गांववाले बेहद खुश हुए थे. इस दौर को याद करते हुए गांव के मोहनदास मानिकपुरी ने ETV भारत से कहा कि रामप्रसाद पोटाई इंग्लैंड से पढ़ कर आए थे. जब विधायक बने तब भी लोगों ने किसी त्योहार की तरह जश्न मनाया था.

रामप्रसाद पोटाई का घर

सरकार नहीं कर रही कोई पहल

स्वर्गीय रामप्रसाद पोटाई (1920-1962) ने अपने 42 साल के छोटे से जीवनकाल में आदर्श विद्यार्थी, सामाजिक नेता, सफल वकील, विधायक और संविधान सभा के सदस्य के रूप में कई बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की. लेकिन उनकी स्मृति को अमर बनाने और नई पीढ़ी को प्रेरणा देते के लिए सरकार कोई पहल नहीं कर रही है.

रामप्रसाद पोटाई का घर

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लोगों को नहीं पता पोटाई का इतिहास

कन्हारपुरी गांव के सोमनाथ ध्रुव कहते हैं कि इतने बड़े व्यक्ति का काम आज उनके गांव और आस-पास तक सीमित रह गया. दूसरी जगह उनका इतिहास बताया ही नहीं गया. बस्तर में ही आने वाली पीढ़ी को उनका इतिहास नहीं पता होगा. आदिवासी बाहुल्य बस्तर क्षेत्र से कोई आदिवासी सपूत संविधान सभा का सदस्य रहा हो, तो देश की राजधानी में उनका नाम होना चाहिए. सोमनाथ निराश होकर कहते हैं कि यहां तो छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही उनका नाम नहीं है. न ही कोई उनके नाम से कोई सरकारी संस्था है.

शिक्षा को दिया महत्व

स्वर्गीय रामप्रसाद पोटाई के जामने के स्कूल, पंचायत अब भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं. उस दौर में पढ़ाई कर रहे गांव के ग्रामीण सुदर्शन कहते हैं कि, पूरे क्षेत्र में इकलौता मीडिल स्कूल कन्हारपुरी में था. जहां 15 से ज्यादा गांव के बच्चे पढ़ने आते थे. रामप्रसाद पोटाई शिक्षा को काफी महत्व दिया करते थे. उन्होंने उस दौर में हेड मास्टर के लिए अलग से मकान बना के दिया था. ताकि बच्चों को पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो.

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स्वर्गीय रामप्रसाद पोटाई: संक्षिप्त परिचय

  • रामप्रसाद पोटाई का जन्म 1920 में हुआ.
  • 1945 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इकाई शाखा के पहले अध्यक्ष बने.
  • 1948 में भारतीय संविधान समिति के सदस्य के रूप में मनोनीत किए गए.
  • 1950 में कांकेर के प्रथम सांसद मनोनीत किए गए.
  • 1962 में कांकेर के भानूप्रतापपुर विधानसभा से पहले विधायक बने.
  • 6 नवंबर 1962 की अल्पायु में उनका देहांत हो गया.

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