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GGU Daily wage workers 14 साल की लड़ाई के बाद जीजीयू के कर्मचारियों की हुई जीत, हाई कोर्ट ने दिया नियमित करने का आदेश

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Published : Mar 14, 2023, 11:31 AM IST

गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की 14 साल बाद जीत हो गई. उन्हें हाईकोर्ट ने राहत पहुंचाते हुए यूनिवर्सिटी प्रबंधन के आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें उन्हें नियमित करने के बाद दोबारा दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी बना दिया गया था. अब हाईकोर्ट ने उन्हें फिर से नियमित कर्मचारी बनाने का आदेश देते हुए 26 अगस्त 2008 से सभी लाभ देने का फैसला सुनाया है.

GGU Daily wage workers
जीजीयू के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की जीत

बिलासपुर: गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दैनिक वेतन भोगी के रूप में 1991 से 1997 के बीच काम करने वाले कर्मचारियों से जुड़ा मामला है. राज्य शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने 22 अगस्त 2008 को 10 वर्ष से शासन में काम कर रहे दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी किया. सामान्य प्रशासन के बाद उच्च शिक्षा संचालक ने भी 26 अगस्त 2008 को शासन में कार्यरत ऐसे कर्मियों को नियमितीकरण और नियमित वेतन देने का आदेश दिया था.

सामान्य प्रशासन और उच्च शिक्षा संचालक के आदेश के बाद गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी भी नियमित हो गए थे और उन्हें नियमितीकरण का लाभ मिल गया था, लेकिन गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी के सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनने के बाद मार्च 2009 में इन कर्मचारियों को फिर से दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी बना दिया गया. सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रबंधन के इस निर्णय के खिलाफ दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संतोष कुमार तिवारी और अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं ने बताया था कि एक बार उन्हें नियमितीकरण का लाभ दे दिया गया था फिर कैसे उन्हें दैनिक वेतन भोगी किया जा सकता है.

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राज्य शासन ने किया था नियमित, सेंट्रल बना दिया था दैवेभो:छत्तीसगढ़ सरकार ने 26 अगस्त 2008 को 10 वर्ष तक दैनिक वेतन भोगी के रूप में सेवा दे चुके कर्मचारियों को नियमित कर दिया था. इसके दायरे में गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी के कर्मचारी भी आते थे और उन्हें भी नियमितीकरण का लाभ मिला था, लेकिन इसके बाद 15 जनवरी 2009 को गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बना दिया गया था, तब मार्च 2009 में कर्मचारियों को बिना सूचना दिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने फिर से उन्हें दैनिक वेतन भोगी कर दिया. साथ ही 19 फरवरी 2010 के नियमितीकरण आदेश को बिना नोटिस व सूचना के मौका दिए बिना निरस्त कर दिया गया.

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट को बताया था कि अब तक अधिनियम 2009 की धारा 27 के तहत प्रतिवादियों के वेतन और भत्तों को प्रभावित करने वाला कोई कानून नहीं बनाया गया है. 24 अक्टूबर 2010 के संकल्प को कानून के रूप में नहीं माना जा सकता है. याचिकाकर्ता के दिए तर्क के और मध्य प्रदेश के मीनाक्षी सुप्रा और डॉक्टर हरिसिंह गौर सुप्रा के मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस रजनी दुबे ने याचिकाकर्ताओं को दैनिक वेतन भोगी की जगह नियमितीकरण का लाभ दिए जाने के साथ ही 2009 से लेकर अब तक सेवा शर्तों की रक्षा के साथ सभी लाभ दिए जाने का आदेश दिया है.

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