सरगुजा: दुनिया भर में हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन मसीही समाज के लोग प्रभू यीशु का जन्मोत्सव मनाते हैं. क्रिसमस की धूम दुनिया भर में देखी जा रही है. आज हम आपको क्रिसमस में चरनी की मान्यता बताने जा रहे हैं. गिरजाघरो में या अपने घरों में लोग चरनी बनाते हैं. चरनी का धार्मिक महत्व क्या है, ये कैसे बनती है, इस विषय पर हमने धर्म प्रांत के वीकर जनरल फादर विलियम उर्रे सेम बात की है. जानिए क्रिसमस से जुड़ी कहानियों को लेकर उन्होंने क्या कहा ?
चरनी का धार्मिक महत्व: फादर विलियम बताते हैं, "चरनी का सबंध प्रभू यीशु के जन्म के दृष्य से है. 14वीं शताब्दी में यह चलन में आया. क्योंकि प्रभु यीशु का जन्म एक गौशाला में हुआ था, इसलिए उस समय के दृश्य चरनी में दिखाए जाते हैं. जिनमें मुख्य रूप से प्रभू यीशु उनके माता-पिता, गडरिये और अन्य लोगों को दर्शाया जाता है. चरनी को आकर्षक बनाने के लिये इसमे आर्टीफीशियल प्लांट, झालर, लाइट भी लोग लगाते हैं. मुख्य रूप से चरनी उस घटना क्रम को प्रदर्शित करती है, जिस स्थिति में प्रभू यीशू का जन्म हुआ."