पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बिहार के जातीय सर्वे में कुछ जातियों को कम और कुछ खास जातियों को उनकी उपजातियों को जोड़ कर ज्यादा दिखाने जैसी कई गंभीर शिकायतें मिल रही हैं. इसके निराकरण और जातियों का नया वर्गीकरण करने के लिए सरकार को हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में आयोग गठित करना चाहिए. यादव, कुर्मी की आबादी ज्यादा और बनिया, मल्लाह, बिंद कम करके दिखाया गया.
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"सर्वे में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर, सदगोप जैसी दर्जन-भर यदुवंशी उपजातियों को एक जातीय कोड यादव देकर इनकी आबादी 14.26 फीसदी दिखायी गई. कुर्मी जाति की आबादी को भी घमैला, कुचैसा, अवधिया जैसी आधा दर्जन उपजातियों को जोड़ कर 2.87 फीसदी दिखाया गया."- सुशील मोदी, उपमुख्यमंत्री
जातियों को उपजातियों में खंडित कियाः सुशील मोदी ने कहा कि क्या यह संयोग है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की जाति को उपजातियों-सहित गिना गया, जबकि वैश्य, मल्लाह, बिंद जैसी जातियों को उपजातियों में खंडित कर इनकी आबादी इतनी कम दिखायी गई कि इन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो. उन्होंने कहा कि बनिया (वैश्य) जाति की आबादी मात्र 2.31 फीसदी दिखाने के लिए इसे तेली, कानू, हलवाई, चौरसिया जैसी 10 उपजातियों में तोड़ कर दिखाया गया. यदि उपजातियों को जोड़ कर एक कोड दिया गया होता, तो बनिया की आबादी 9.56 प्रतिशत होती.
उपजाति जोड़ो और तोड़ो फार्मूलाः सुशील मोदी ने कहा कि मल्लाह जाति को 10 उपजातियों में तोड़ कर इनकी आबादी 2.60 फीसदी दर्ज की गई. उपजातियों को जोड़ने पर मल्लाह जाति की आबादी 5.16 फीसदी होती. उन्होंने कहा कि नोनिया जाति की आबादी 1.9 प्रतिशत दर्ज हुई, जबकि इनकी बिंद, बेलदार उपजातियों को जोड़ कर आबादी 3.26 प्रतिशत होती है. मोदी ने कहा कि कुछ चुनिंदा जाति-धर्म के लोगों की गिनती में सरकार ने एक साजिश के तहत उपजाति-जोड़ो फार्मूला लगाया, तो कई अन्य जातियें के लिए उपजाति-तोड़ो फार्मूला लगाया.