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BJP के खिलाफ मजबूत किलाबंदी की कोशिश में जुटा विपक्ष, बड़ा सवाल- तमिलनाडु की 'एकजुटता' 2024 तक टिक पाएगी?

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Published : Mar 1, 2022, 5:48 PM IST

2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी

हैदराबाद में तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (Telangana CM K Chandrashekhar Rao) से मुलाकात के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) ने चेन्नई में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन (Tamil Nadu CM MK Stalin) से मुलाकात की. जिसके बाद ये चर्चा तेज हो गई है कि क्या यह कदम 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों को एक छत के नीचे लाने का प्रयास है. आखिर इस बैठक के पीछे राजनीतिक मकसद क्या है, जिसमें तेजस्वी अपने पिता लालू यादव का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट...

पटना: बिहार विधानसभा में जिस दिन प्रदेश का बजट पेश हो रहा था, उसी दिन नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) चेन्नई में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन (Tamil Nadu CM MK Stalin) की आत्मकथा 'वन एमॉंग यू' के विमोचन कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे. बजट पर आत्मकथा विमोचन को तरजीह देने से ही समझा जा सकता है कि उनके लिए यह कार्यक्रम कितना महत्वपूर्ण था. दरअसल स्टालिन की आत्मकथा के विमोचन पर विपक्ष का जमावड़ा (Opposition Gathering at Release of Stalin Autobiography) लगा था. जहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं का जुटान हुआ था. इसे आम चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने की तैयारी (Preparing to Unite Opposition) के तौर पर देखा जा रहा है.

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पहले हैदराबाद में तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (Telangana CM K Chandrashekhar Rao) से मुलाकात और अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के कार्यक्रम में तेजस्वी की मौजूदगी इस बात को बल दे रही है कि 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी (Preparation for 2024 Lok Sabha Elections) विपक्ष की ओर से शुरू हो गई है. आरजेडी नेताओं का भी दावा है कि राष्ट्रीय स्तर पर 2024 चुनाव की तैयारी को लेकर विपक्ष के नेता एकजुट हो रहे हैं. बीजेपी को पटखनी देने के लिए संयुक्त विपक्ष का होना जरूरी है.

राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के प्रमुख नेताओं में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की भी पहचान है. उन्होंने कहा कि पहले यही भूमिका आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव की होती थी और अब इस भूमिका में तेजस्वी यादव नजर आ रहे हैं. उनकी कोशिश जरूर रंग लाएगी.

"तेजस्वी यादव अब देश के एक बड़े चेहरे के रूप में स्थापित हो चुके हैं. जो काम पहले लालू यादव किया करते थे. सभी विपक्ष को एकजुट कर देश में बीजेपी को गद्दी से हटाना है. 2024 की तैयारी में अभी से लगना है. 2024 की तैयारी में नेता प्रतिपक्ष की अहम भूमिका होगी. अब वे दूसरे प्रदेशों में भी लोकप्रिय हो चुके हैं, उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है"- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, बिहार आरजेडी

जानकार मानते हैं कि पहले केसीआर और अब स्टालीन से मुलाकात न केवल तेजस्वी के लिए व्यक्तिगत तौर पर अहम है, बल्कि विपक्षी एकजुटता के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है. उस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला के साथ-साथ केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन भी मौजूद थे. मतलब ये कि दक्षिण के 3 राज्यों तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्रियों से हाल के दिनों में तेजस्वी की मुलाकात हो चुकी है. केसीआर और स्टालिन जहां अपने-अपने दल के अध्यक्ष भी हैं, वहीं विजयन ही केरल में पार्टी का अहम फैसला लेते हैं. बंगाल चुनाव में तेजस्वी ममता बनर्जी का बिना शर्त समर्थन कर चुके हैं, जबकि यूपी में वे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ खड़े हैं. वहीं बिहार में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है, जिसके अघोषित बॉस वो खुद हैं. ऐसे में बीजेपी को रोकने की दिशा में मजबूत किलेबंदी की अहम कड़ी वे बन सकते हैं.

हालांकि विपक्षी एकजुटता में कई पेंच भी है, जिसे सुलझाना इतना भी आसान नहीं है. केरल में जहां विजयन का सामना कांग्रेस से होता है, वहीं, तेलंगाना में भी केसीआर के सामने कांग्रेस विपक्ष के तौर पर खड़ी है. बंगाल में ममता बनर्जी का कांग्रेस से संबंध बेहद तल्ख हैं. जम्मू-कश्मीर में भी अभी कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच दूरी है. यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. जिस बिहार में तेजस्वी राजनीति करते हैं, वहां भी कांग्रेस के साथ पिछले कुछ समय से उनकी दूरी बनी हुई है. पहले दो सीटों पर उपचुनाव और अब बिहार विधान परिषद का चुनाव दोनों अलग-अलग लड़ रहे हैं. हालांकि तेजस्वी और स्टालिन में एक बात पर सहमति है कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कोई भी मोर्चा कांग्रेस को बाहर नहीं कर सकता है. वहीं ममता बनर्जी और केसीआर अपने-अपने स्तर से लगातार तीसरे मोर्चे की कोशिश करते रहते हैं. ऐसे में एक मंच पर फोटो खिंचवाना और मिलकर बीजेपी को चुनौती देना वास्तव में 'दिल्ली दूर' जैसा ही है.

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