बिहार

bihar

तिरहुत के इतिहास में जुड़ा नया अध्याय, 162 वर्ष बाद वारिस अली को मिला शहीद का दर्जा

By

Published : Jan 23, 2021, 7:30 PM IST

Updated : Feb 3, 2021, 4:27 PM IST

राज्य में तिरहुत के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है. तिरहुत के 1857 की क्रांति में शामिल वारिस अली को आधिकारिक रूप से शहीद घोषित कर दिया गया है. उनका नाम इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रकाशित, भारत के स्वतंत्रता संग्राम (1857-1947) के शब्दकोश में शहीदों की सूची में शामिल किया गया है.

शहीद वारिस अली की प्रतिमा
शहीद वारिस अली की प्रतिमा

मुजफ्फरपुरः बिहार में तिरहुत के जमादार वारिस अली को अंततः शहीद का दर्जा मिल गया है. 1857 में वारिस अली को फांसी दी गई थी. लेकिन उस वक्त से अब तक उनका नाम गुमनामी में रहा. इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च (आईसीएचआर) की सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रकाशित डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स- इंडियाज फ्रीडम स्ट्रगल (1857-1947) में वारिस अली का नाम शामिल किया गया है. इस मुहिम को शुरू कर उसके अंजाम तक पहुचाने में शहर की संकल्प संस्था की सबसे अहम भूमिका रही है.

बरुराज थाने में थे जमादार, उन्हीं से की थी बगावत
अंग्रेजी शासन में मुजफ्फरपुर में बरुराज थाने में जमादार थे. जमादार रहते हुए वारिस अली ने अंग्रेजों से बगावत की थी. तिरहुत में नील की खेती करने वाले किसानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ वे विद्रोहियों के साथ मिलकर काम करने लगे थे. 1857 में बरुराज थाने में जमादार वारिस अली ने अपने अधिकारियों का विरोध किया.

देखें रिपोर्ट

कहा जाता है कि अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोहियों को एक पत्र लिखे जाने के कारण उन्हें विद्रोही साबित किया गया. उन्हें गिरफ्तार कर दानापुर छावनी में रखा गया. विद्रोहियों से मिल जाने के आरोप में 6 जुलाई 1857 में दानापुर छावनी में उन्हें फांसी दे दी गई.

वारिस अली की प्रतिमा

ये भी पढ़ें- खबर अच्छी है, बिहार में होगी बंपर बहाली

बदल गया बिहार के शहीदों का इतिहास
शहीदों की इस नई सूची के प्रकाशन के साथ, वारिस अली तिरहुत से पहले शहीद हो गए हैं. अब तक 1908 में फांसी की सजा पाने वाले उग्र क्रांतिकारी खुदीराम बोस को तिरहुत का पहला शहीद माना जाता था. खुदीराम को ब्रिटिश न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या के प्रयास के लिए फांसी दी गई थी. जिस गाड़ी से वे मुजफ्फरपुर की यात्रा करने वाले थे. उस पर बम फेंक कर उन्होंने गाड़ी उड़ा दी थी. उस घटना में दो ब्रिटिश महिलाओं की मौत हो गई थी.

लेखक विनायक दामोदर सावरकर की पुस्तक में भी मिलता है शहीद वारिस अली का नाम

ये भी पढ़ें- ऐसे में कैसे होगा सीमांचल से पटना तक 5 घंटे में सफर, सालों से NH का काम अधूरा

शहीद का दर्जा दिलाने में लगी थी कुछ संस्थाएं
गौरतलब है कि गुमनामी के अंधेरे में खो चुके शहीद वारिस अली को सम्मान दिलाने के लिए मुजफ्फरपुर की कुछ संस्थाएं लंबे अरस से संघर्ष कर रही थी. जिनकी मांग और साक्ष्य की उपलब्धता के आधार पर 7 जनवरी 2017 को मुजफ्फरपुर तात्कालीन डीएम धर्मेंद्र सिंह ने सामान्य प्रशासन विभाग और केंद्र सरकार को अपना अनुमोदन भेजा था. इस पर संज्ञान लेते हुए विभाग ने जांच पड़ताल कराई. जांच पड़ताल में वारिस अली का नाम क्षेत्र के सबसे पहले देश के लिए शहीद होने वालों में आया.

दो लाइनों में लिखा गया शहीद वारिस अली का इतिहास

ये भी पढ़ें- मंत्रियों के बंगले पर फिजूलखर्ची से बवाल, विपक्ष के निशाने पर सरकार

शहीद स्मारकों को संरक्षित करने की है जरूरत
अब वारिस अली को शहीद का दर्जा मिलने पर ईटीवी भारत ने संकल्प संस्था के अध्यक्ष मोहमद जमील अख्तर से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि अब वारिस अली को शहीद का दर्जा मिलने पर शहर के सभी लोग खुश हैं. लेकिन अब जिला प्रशासन को शहर में शहीद के नाम से जुड़े स्थलों को संरक्षित करने की जरूरत है. जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका से सभी लोग अवगत हो सकें. उन्होंने निगम के पुराने दस्तावेज के आधार पर स्टेशन रोड का नामकरण पुनः वारिस अली रोड नाम पर करने की मांग की.

Last Updated :Feb 3, 2021, 4:27 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details