जामताड़ा : पूरा संथाल परगना इन दिनों पलाश के फूलों से गुलजार है. पलाश के फूल अपनी खुशबू और खूबसूरती से प्रकृति की शोभा बढ़ा रहे हैं. पलाश का फूल न केवल पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि आदिवासी संस्कृति के साथ धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसका विशेष महत्व है. यह झारखंड के आदिवासी समाज और संस्कृति से जुड़ा हुआ है. आदिवासी समाज में पलाश के फूल का उपयोग उनके पारंपरिक रीति-रिवाजों और विवाह समारोहों में किया जाता है.
पलाश के फूलों के रंग से खेली जाती है होली
आदिवासी समुदाय जहां अपने विभिन्न विवाह समारोहों और धार्मिक अनुष्ठानों में पलाश के फूलों का उपयोग करते हैं, वहीं वे इसके फूलों से रंग भी बनाते हैं और रंगाई का काम भी करते हैं. यहां तक कि बाहा पर्व के दौरान भी, वे फूलों को रात भर पानी में डुबो कर रखते हैं. फिर सुबह में इसी पानी से होली खेली जाती है. आदिवासी समुदाय की महिलाएं पलाश के फूलों से श्रृंगार करती हैं. हालांकि, ऐसा कहा जाता है कि जबतक जाहेर थान में पूजा नहीं कर ली जाती, तब तक आदिवासी समुदाय की महिलाएं पलाश के फूलों से श्रृंगार नहीं करतीं.
पलाश से रोजगार
परंपरा के साथ ही पलाश का लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में भी काफी योगदान है. पलाश के पत्तों से दोना बनाया जाता है. इसके फूलों से रंगहीन गुलाल भी तैयार किया जाता है. ये अबीर-गुलाल होली में खूब प्रयोग किए जाते हैं. इसकी पत्तियों, फूलों, जड़ों और लकड़ी के कई उपयोग भी ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं.
पलाश के फूल का महत्व