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उज्जैन में परिवार करता है चूड़ियों का व्यवसाय, बेटी ने श्रृंगार प्रसाधन पर कर डाली पीएचडी - Ujjain Dr Salma Shine PhD degree

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 15, 2024, 2:55 PM IST

9 अप्रैल को उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में आयोजित हुए दीक्षांत समारोह में उज्जैन की डॉ. सलमा शाईन को भी पीएचडी की उपाधि से नवाजा गया. डॉ. सलमा शाईन ने स्त्री-पुरुष के श्रृंगार प्रसाधन, उनकी संस्कृति और साहित्यिक अभिव्यक्ति पर शोध किया है.

Ujjain Dr Salma Shine PhD degree
उज्जैन में परिवार करता है चूड़ियों का व्यवसाय, बेटी ने श्रृंगार प्रसाधन पर कर डाली पीएचडी

उज्जैन में परिवार करता है चूड़ियों का व्यवसाय, बेटी ने श्रृंगार प्रसाधन पर कर डाली पीएचडी

उज्जैन। देश में विद्यार्थी अलग-अलग विषयों पर पीएचडी करते हैं और उसकी उपाधि हासिल करते हैं, लेकिन उज्जैन की एक युवती ने स्त्री-पुरुष के श्रृंगार प्रसाधन, उनकी संस्कृति और साहित्यिक अभिव्यक्ति पर शोध कर देश की पहली पीएचडी उपाधि प्राप्त की है. उस युवती का नाम डॉ. सलमा शाईन है. बीते 9 अप्रैल को उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह का आयोजन हुआ था. इस 28वें दीक्षांत समारोह में मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल के द्वारा सभी विद्यार्थियों को उपाधि से नवाजा गया. इसी समारोह में डॉ. सलमा शाईन को पीएचडी की उपाधि से नवाजा गया.

विलुप्त श्रृंगारों में किया प्रकाश डालने का काम

इस बारे में डॉ. सलमा ने बताया कि ''मेरे शोध का शीर्षक मालवा के लोक साहित्य एवं संस्कृति में श्रृंगार प्रसाधन है. मेरे शोध के निर्देशक डॉ. प्रज्ञा थापक व डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा सर हैं." सलमा ने आगे बताया कि "मेरे शोध के माध्यम से मालवा के लोक साहित्य एवं संस्कृति में श्रृंगार प्रसाधन, जिसमें महिलाओं के श्रृंगार प्रसाधन व पुरुषों के श्रृंगार प्रसाधन सम्मिलित हैं. इस पर देश में पहली बार काम करने का प्रयास किया गया है. इस शोध के माध्यम से जो महिलाओं व पुरुषों के पारंपरिक श्रृंगार प्रसाधन हैं, जो आजकल प्रचलन में नहीं हैं और कुछ चीजें हैं जो गांवों में ही हैं और बहुत सी चीजें ऐसी हैं जो विलुप्त हो चुकी हैं उस पर प्रकाश डालने का काम किया गया है''.

उज्जैन में परिवार करता है चूड़ियों का व्यवसाय, बेटी ने श्रृंगार प्रसाधन पर कर डाली पीएचडी

पीजी की पढ़ाई के दौरान लिखा रिसर्च पेपर

डॉ. सलमा शाईन ने आगे बताया कि ''मेरे शोध के शीर्षक की प्रेरणा मुझे डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा के माध्यम से मिली थी, क्योंकि मैं जब एमए कर रही थी. तब मैं कुछ डॉक्यूमेंट में सिग्नेचर कराने गई थी. तब शर्मा सर को मेरा पूरा नाम सलमा शाईन मनिहार लिखा पता चला था, उन्हें तब पता चला था कि मैं मनिहार जाति से जुड़ी हुई हूं और चूड़ी व्यवसाय व इनके निर्माण कार्य से जुड़ी हुई हूं. फिर शर्मा सर ने मुझे इससे संबंधी रिसर्च पेपर लिखने के लिए प्रेरित किया था. वह रिसर्च (मनिहारी कला) भी देश की पहली रिसर्च थी और वो बहुत ज्यादा फेमस भी हुई थी और सर ने उसकी बहुत सराहना की. फिर जब मैंने पीएचडी करने की इच्छा जताई तो सर ने उसी विषय को विस्तृत रूप करके श्रृंगार प्रसाधन कर दिया''.

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डॉ. सलमा शाईन का परिवार मुख्य रूप से चूड़ी बनाने व विक्रय करने का व्यवसाय करता है. परिवार में मनिहार कला का काम पुरानी पीढ़ियों से चलता आ रहा है. लिहाजा, सलमा भी लाख, कांच, ब्रास की चूड़ियों के निर्माण और बिक्री यानी मनिहार कला में माहिर हैं. पीएचडी के दौरान उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के आभूषण, वस्त्र, सौन्दर्य पर विस्तृत रूप से अध्ययन किया है.

समय के साथ बदल गया शृंगार का स्वरूप

डॉ. सलमा ने इन सालों में पुरातन काल से अब तक के सौंदर्य संसाधनों व आभूषणों में आए बदलावों पर अध्ययन किया है. सलमा ने अपने शोध पत्र में जानकारी दी है कि कैसे समय के साथ श्रृंगार भी बदलता रहा और वर्तमान में कैसा श्रृंगार होता है. डॉ सलमा ने प्रो. प्रज्ञा थापक और प्रो. शैलेंद्र शर्मा के निर्देशन में मालवा, निमाड़ और मेवाड़ की लोक संस्कृति, साहित्य से अनुशीलन करते हुए शोध कार्य किया.

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