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होली यादों वाली: कभी सिंधिया राज घराने के रंगों से गुलजार होता था जनक ताल, बैलगाड़ियों से ढोया जाता था गुलाल - scindia royal family holi spot

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 24, 2024, 9:10 PM IST

एमपी का ग्वालियर कई ऐतिहासिक संपदाओं से घिरा है. राजा मानसिंह किले से लेकर मोती महल की इतिहास में अपनी जगह है. इन्हीं में से एक स्थान है जनक ताल. ये तालाब भले ही आज वीरान हो लेकिन कभी यह जगह रंगों से गुलजार हुआ करती थी. इसी तालाब पर सिंधिया स्टेट के महाराजा अपनी प्रजा के साथ होली खेलते थे. एक नजर डालिये ईटीवी भारत संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव की इस खास रिपोर्ट पर..

SCINDIA ROYAL FAMILY HOLI SPOT
कभी सिंधिया राज घराने के रंगों से गुलजार होता था जनक ताल, बेल गाड़ियों से ढोया जाता था गुलाल

सिंधिया राजघरानी की होली

ग्वालियर। ग्वालियर शहर के छोर पर स्थित जनक ताल आज वीरान हो गया है. अब यहां हर तरफ सन्नाटा पसरा रहता है. एक्का दुक्का लोगों के सिवा कोई यहां झांकने तक नहीं आता, लेकिन असल में इस जगह का इतिहास अपने आप में बहुत खूबसूरत है. क्योंकि यहां सिंधिया राज घराने के महाराजा होली खेलने आते थे. जी हां कभी यह जगह रंग-बिरंगे रंगों से गुलजार हुआ करता था. पढ़िए राजघराने की होली के बारे में...

सिंधिया राज घाराने का होली स्पॉट

पुरातत्व विभाग से रिटायर्ड और इतिहासकार लाल बहादुर सिंह सोमवंशी कहते हैं कि 'ग्वालियर एक ऐतिहासिक शहर है. जो कई विरासतों को समेटे हुए है. यहां पर्यटन की दृष्टि से भी इसका बड़ा महत्व है. यहां सिंधिया राजघराने का वर्चस्व रहा है. सिंधिया राजा महाराजों को बहुत शौक हुआ करता था परिवार के साथ जाकर कहीं त्योहार उत्सव मनाए.

जनक ताल सिंधिया परिवार का होली स्पॉट

बेहद सुंदर है जनक ताल की बनावट

ग्वालियर स्टेट के दौरान इस जनक ताल का निर्माण 200 वर्ष पूर्व जनकोजी राव सिंधिया ने कराया था. उन्हीं के नाम पर इसका नाम जनकताल पड़ा. इस ताल की बनावट भी बहुत सुंदर है. यहां पांच बारह दरियां हैं. जनक ताल के अंदर बारह दरी बनी हुई है. एक सीढ़ी बनी है. जिससे जनक ताल में उतरा जा सकता है.

खंडहर हालत में जनक ताल

पांच दिनों तक चलता था होली का उत्सव

स्थानीय इतिहासकार कहते है कि यहां होली खेलने के लिए जनकोजी राव सिंधिया आया करते थे. सिंधिया राज घराना यहां पांच दिनों तक रुका करता था. इस उत्सव में स्थानीय जागीरदार, राजा महाराजा सभी यहां रुकते थे. ये बताया जाता था कि बेलगाड़ियों से रंग और गुलाल और सभी सामान वहां ढोकर ले जाया जाता था. बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ होली मनाई जाती थी. उस होली का बड़ा ही विहंगम दृश्य होता था.

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बदल सकती जनकताल की तस्वीर

आज जनक ताल दरियां तो बनी हुई है, लेकिन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है. अगर उन पर थोड़ा ध्यान दिया जाये और आवागमन के साधन उपलब्ध हों. इसे पर्यटन विभाग अपने अन्तर्गत ले तो ये ग्वालियर के लिये एक बेहतरीन पर्यटनस्थल और पिकनिक स्पॉट बन सकता है, क्योंकि इस जगह का इतिहास और महत्व बहूत खूबसूरत रहा है.

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