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मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर का गढ़ा दाई मंदिर, आदिशक्ति की मूर्ति के बिना पूजा, गेरुए रंग से कांपने लगती है पहाड़ी ! - Mysterious Temple

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 16, 2024, 2:04 PM IST

Gadha Dai Temple एमसीबी के जनकपुर में स्थित गढ़ा दाई मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है. आपको जानकर हैरानी होगी कि गढ़ा दाई की कोई मूर्ति नहीं हैं लेकिन फिर भी दूर दूर से यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं. Mysterious Temple

GADHA DAI TEMPLE OF MANENDRAGARH
गढ़ा दाई का मंदिर

गढ़ा दाई का मंदिर

मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर:जंगल पहाड़ों के बीच भरतपुर में माता रानी का ऐसा शक्तिपीठ है जो आज भी विज्ञान के लिए रहस्य बना हुआ है. इस मंदिर में एक गुफा है जहां से शहनाई, ढोल नगाड़ों की आवाज आती हैं. ये मंदिर है प्राचीन गढ़ा दाई का मंदिर. इस मंदिर की सबसे खास बात ये हैं कि यहां माता को कोई मूर्ति नहीं हैं. यानी बिना मूर्ति के ही मंदिर में पूजा होती है. नवरात्रि पर ज्योत जलाए जाते हैं. जवारा बोया जाता है.

बिना मूर्ति के होती है पूजा

गढ़ा दाई भक्तों की पूरी करती हैं हर मन्नत: भरतपुर मुख्यालय जनकपुर से महज 45 किलोमीटर दूर बसे तितौली गांव के एक पहाड़ पर आदिशक्ति स्वरूप मां गढ़ा दाई का मंदिर है. इस मंदिर में लोग दूर दूर से अपनी मन्नत लेकर आते हैं. मां गढ़ा दाई उनकी सारी इच्छाएं भी पूरी करती है. कहते हैं कि जो इस गढ़ा माता रानी से सच्चे दिल से फरियाद करता है, माता रानी उसके सारे मन्नत पूरी करती हैं.

नवरात्रि पर हर साल जलाई जाती है ज्योत

7-8 साल से आ रहे हैं. गढ़ा दाई से जो भी मन्नत मांगे हैं सब पूरी हुई हैं.-कुसुम वर्मा,श्रद्धालु

बचपन से आ रहा हूं. यहां आने के बाद से मेरी जिंदगी पूरी बदल गई है. मेरे सभी काम पूरे हुए हैं. गढ़ा दाई के आशीर्वाद से चारों धाम के दर्शन भी हुए हैं-गुलजारी प्रसाद प्रजापति, श्रद्धालु

पहाड़ियों के बीच गढ़ा दाई मंदिर

मध्य प्रदेश के कई श्रद्धालु आते हैं गढ़ा दाई के दर्शन करने: सीमावर्ती राज्य मध्य प्रदेश की तो शहडोल से इसकी दूरी सिर्फ 60 किलोमीटर है जिससे मध्य प्रदेश के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में गढ़ा दाई मंदिर पहुंचते हैं. बताया जाता है कि जब भी गांव में कोई अनहोनी होने की संभावनाएं होती हैं तो गढ़ा मां मंदिर के पुजारी के माध्यम से इसके बारे में बता देती हैं.

छत्तीसगढ़ के आसपास के जिलों के साथ ही मध्य प्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु आते हैं.-रामनारायण गुप्ता, श्रद्धालु

बिना मूर्ति के होती है मंदिर में पूजा:इस शक्तिपीठ में शक्ति स्वरूपा मां गढ़ा दाई का मंदिर तो है लेकिन यहां उनकी कोई मूरत नहीं है यानी माता की कोई मूर्ति नहीं हैं. लोग यहां पहाड़ की ही पूजा करते हैं. मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे दिल से माता रानी से फरियाद करता है मां उसकी जरूर सुनती है.

मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. भक्त विश्वास से आते हैं, उनकी मुरादें पूरी होती है. पूर्वज बताते हैं कि किसी राजा की पालकी पत्थर के रूप में आज भी स्थापित है. -राममिलन यादव, सेवादार

हमारे पूर्वज इस मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं. श्रद्धालुओं की मुराद पूरी होती हैं नवरात्रि में हमेशा श्रद्धालु आते हैं लेकिन नए साल पर ज्यादा भीड़ रहती है. -रामलाल बैगा, पुजारी

गेरुआ रंग से पहाड़ी में होता है कंपन !:गढ़ा दाई मंदिर के बारे एक और मान्यता यहां प्रचलित है. कहा जाता है कि जब भी इस मंदिर पर गेरुआ रंग से पोता जाता है तो पूरा पहाड़ में कंपन होने लगता है. लोगों का कहना है कि आज से लगभग 40 साल पहले इस मंदिर में वन विभाग के फॉरेस्टर भागवत पांडे ने मंदिर में आने जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण काम कराया था. पत्थरों को कटवा कर सीढ़ियां बनाई गई. निर्माण कार्य पूरा होने के बाद बाद जब काम करने वाले लोगों ने मंदिर की लिपाई पुताई में गेरूआ रंग का उपयोग किया तो पहाड़ में कंपन होने लगा. जिसे देखकर काम करने वाले डर गए और वहां से भाग गए.

कहा जाता है कि इसके बाद मंदिर के पुजारी पर माता सवार हुई और उन्हें बताया कि इस मंदिर को कभी भी गेरुआ रंग से ना पोता जाए, तब से इस मंदिर में गेरुआ रंग से पुताई पर पाबंदी लग गई. आज भी इस मंदिर में गेरुआ रंग का उपयोग नहीं किया जाता.

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