कानपुर : 'अल्लाह के बंदे हंस दे, अल्लाह के बंदे.., जो भी हो कल फिर आएगा'. बॉलीवुड व सूफी गायक कैलाश खेर ने मंच से यह गीत गाया तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मौका था, कानपुर के गंगा किनारे स्थित बिठूर महोत्सव का. कैलाश खेर ने जैसे ही माइक संभाला लोग कैलाशा-कैलाशा का शोर मचाने लगे. रंग-बिरंगी लाइटों के बीच अपने चिर-परिचित अंदाज में कैलाश खेर ने जैसे ही रंग दीनी, रंग दीनी, रंग दीनी, पिया के रंग रंग दीनी, ओढ़नी गाया तो दर्शक झूम उठे.
कड़ाके की ठंड में मनमोहक प्रस्तुति से गरमाया माहौल :गंगा किनारे गलनभरी सर्दी लोगों को परेशान जरूर कर रही थी लेकिन, कैलाश खेर जिस जोश के साथ गा रहे थे उससे माहौैल गर्मा जा रहा था. लगभग पांच सालों बाद आयोजित बिठूर महोत्सव में कैलाश खेर ने 'कौन है कौन वो, कहां से आया'..., जय-जय कारा, जय-जय कारा, स्वामी देना साथ हमारा' जैसे अन्य गाने गाए. उनकी प्रस्तुतियों ने सभी का दिल जीत लिया. कैलाश खेर के कार्यक्रम के बाद कवि सम्मेलन का आयोजन भी हुआ. इसमें नामचीन कवियों ने अपनी प्रस्तुतियों से सभी को हंसने पर मजबूर किया.