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Basant Panchami 2024: जानिए मां सरस्वती की पूजन विधि और आज के दिन पाटी पूजन का महत्व

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 14, 2024, 7:12 AM IST

बसंत पंचमी आज है. इस पावन मौके पर माघ के संगम तट पर भोर से ही स्नान और दान चल रहा है. चलिए जानते हैं इस पर्व का महत्व.

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प्रयागराज में गंगा स्नान को उमड़े भक्त.

प्रयागराजःबसंत पंचमी के पावन मौके पर तीर्थराज प्रयागराज में भोर से ही स्नान और दान का सिलसिला शुरू हो गया है. भक्त त्रिवेणी के जल में स्नान कर माता सरस्वती को नमन कर पीले वस्त्र धारण कर स्नान और दान कर रहे हैं. आज का दिन छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. चलिए जानते हैं इस बारे में. मान्यता है कि आज के दिन जो भी छात्र अक्षर लिखना शुरू करता है उसे ज्ञान की देवी का आशीर्वाद जीवन भर मिलता है. उसे हर मंजिल पर सफलता मिलती है. इस वजह से ही आज के दिन पाटी पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है.

संगम में अदृश्य़ रूप में प्रवाहित हो रहीं सरस्वती
माघ स्नान का प्रमुख पर्व माघ स्नान की श्रृंखला में प्रमुख पर्व होने के कारण बसंत पंचमी के दिन स्नान व दान का महत्व तीर्थराज प्रयाग में अधिक है. यद्यपि प्रयाग में सरस्वती अदृश्य है परंतु इसके अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता. गंगा और यमुना के साथ
सरस्वती का नाम जुड़ने से ही त्रिवेणी का योग बनता है. आज के दिन सरस्वती में स्नान से विशेष फल मिलता है. विद्वानों के अनुसार सरस्वती पुण्यप्रदायनी, पुण्य की जननी तथा पवित्र तीर्थ स्वरूपा हैं. पापरूपी अज्ञान की लकड़ी को जलाने के लिए यह अग्निस्वरूपा है. अतएव वसंत पंचमी को सरस्वती के दिन स्नान-दान और पूजन करने से पापों का क्षय औरअविद्या का नाश होता है, मूर्ख भी बुद्धिमान बन जाता है. इस दिन प्रातःकाल स्नान करके नए वस्त्र मुख्यतः बसंती वस्त्र जो कि बसंत ऋतु का परिचायक है, पहने जाते हैं. साधारण व्यक्ति भी जिन्हें नए वस्त्र धारण संभव नहीं है, वे भी रूमाल, टोपी, आदि कोई न कोई बासंती वस्त्र ग्रहण करते हैं.

भगवान कृष्ण ने किया था मां सरस्वती का पूजन

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम माता सरस्वती का पूजन किया गया था.
आदौ सरस्वतीपूजा श्रीकृष्णेन विनिर्मिता यत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मूर्खो भवति पंडितः
ब्रह्म वैवर्तपुराण के प्रकृति खण्ड के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा पूजित होने पर माता सरस्वती सब लोकों में सबके द्वारा पूजी जाने लगीं जिनकी कृपा से मूर्ख भी पंडित हो जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती जी को यह वरदान दिया कि ब्रह्माण्ड में प्रत्येक माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव और आस्था के साथ तुम्हारी पूजा होगी. श्रीकृष्ण ने सरस्वती जी को इस तिथि को यह भी कहा, "मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय तक सभी तुम्हारी पूजा करेंगें. तब से सरस्वती जी सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा माघ शुक्ल पंचमी के दिन पूजित होने लगीं और यह दिन सरस्वती जयंती के नाम से भी जाना जाने लगा.

पूजन विधि
ब्रह्म मुहूर्त में नित्य कर्म से निवृत्त होकर तन और मन की शुद्धि कर लेनी चाहिए, तत्पश्चात् कलश की स्थापना करें फिर श्री गणेश, सर्यू देव, अग्निदेव, विष्णु, शिव तथा शिवा की पूजा और अर्चना के उपरान्त स्थापित किए गए कलश में विद्या की देवी माता सरस्वती का आवाहन एवं ध्यान करना चाहिए. विद्यार्थी, कवि, लेखक, पंडित, ब्राह्मण, ज्योतिषी, दार्शनिक, साहित्यकार, कहानीकार और रचनात्मक सृजनकर्ताओं की इष्ट देवी माता सरस्वती ही हैं. अतः इन सभी विज्ञ जनों को नित्य प्रति ही माता का पूजन-अर्चन तो करना
ही चाहिए वरन दिव्य मंत्रों से अभिभूत इस दिव्य कवच को भी अपने हृदय में धारण करना चाहिए. बसंत पंचमी पर किस मंत्र का करें जाप सरस्वती आराधना में सरस्वती के इस मंत्र का जप करना विशेष लाभदायक रहता है।

श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै नमः

पुरातन काल में भगवान् नारायण ने इसी मंत्र का उपदेश वाल्मीकि मुनि को दिया था. सूर्य ग्रहण के अवसर पर परशुराम जी ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को पुष्कर क्षेत्र में यह मंत्र दिया था. इस मंत्र के प्रभाव से याज्ञवल्क्य, कात्यायन, शृंगीऋषि, आस्तीक, भृगु, भरद्वाज, शाकटायन, पाणिनी, कवि कालीदास आदि मुनि विद्वान बन सके थे. इस मंत्र के सिद्ध हो जाने पर मानव बृहस्पति के समकक्ष प्रवीणता हासिल कर लेता है.


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